एक बार फिर गिरा मोदी का स्तर, मंगलसूत्र, भैंस के बाद बेटियों को बनाया चुनावी हथियार?

महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.... जिसको लेकर सभी पार्टियां चुनाव मैदान में डट गई है... और चुनाव प्रचार कर रही हैं...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं…. जिसको लेकर सभी पार्टियां चुनाव मैदान में डट गई है… और चुनाव प्रचार कर रही हैं… बीजेपी नेता ताबड़तोड़ रैलिया कर रहें है… वहीं किसी भी तरह चुनाव जीतने के लिए बीजेपी नेताओं ने अपनी भाषा के स्तर को इतना गिरा दिया है… जिसकी कभी कल्पना भी नहीं कि जा सकती थी… बीजेपी के स्टार प्रचारकों में मोदी, हिमंता विस्वा सरमा समेत तमाम नेताओं के नाम है… जो जनता के बीच में पहुंचकर चुनाव प्रचार कर रहें है… और जनता के बीच में नफरत फैलाने का काम कर रहें हैं… बता दें कि मोदी देश के मुखिया है… और चुनाव को जीतने के लिए मोदी की भाषा का स्तर इस कदर गिर जाएगा… इसका किसी ने भी कल्पना नहीं की होगी… मोदी अपने पद की गरिमा को तार-तार करते हुए अब बेटी पर पहुंच चुके हैं… लोकसभा चुनाव में मंगलसूत्र, भैंस समेत तमाम अनर्गल बयानवाजी के बाद लोगों के मन में था… कि मोदी के भाषा का स्तर अब इससे अधिक नहीं गिरेगा…. लेकिन झारखंड में चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी के भाषा का स्तर इतना गिर गया कि उन्होंने विपक्ष पर बिना कुछ सोंचे- समझे ऐसा बोल दिया कि ये लोग आपकी बेटी छीन लेंगे… वहीं सोचों जब किसी देश के मुखिया की भाषा का स्तर इतना गिर सकता है… तो उनके नक्शे कदम पर चलने वाले नेताओं की भाषा तो और खराब होगी ही…

आपको बता दें कि असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्वा सरमा ने बयान देते हुए बाबरी और बाबर का जिक्र करते हुए कहा कि ये बाबरी और बाबर आपकी बेटी छीन रहें हैं… देश में हिंदू खतरे में हैं… वहीं जिन राज्यों में आपकी सरकार है… वहां पर आपने हिंदुओं को खतरे से बाहर लाने के लिए क्या कदम उठाए… आपकी ग्यारह सालों से केंद्र में सरकार है…. लगातार दूसरी बार उत्तर प्रदेश और लगातार तीसरी बार अमम और लगातार मध्यप्रदेश में आपकी सरकार है… राजस्थान में आपकी सरकार है… तो आपने हिंदुओं के लिए क्या किया… बीजेपी नेता सिर्फ वोट की राजनीति के लिए हिंदू- हिंदू करते हैं… और उनकी ही पार्टी के तमाम नेता टोपी लगाकर मुसलमानों के बीच में जाकर वोट मांगते हैं… वहीं सभी जगह बीजेपी की सरकार है… वहां पर भी हिंदू खतरें में हैं… तो मोदी सहित सभी मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा दे देना चाहिए… आपकी लगातार सरकार होने के बावजूद भी हिंदुओं के उत्थान के लिए आपने क्या किया… आपने नफरती भाषण देकर हिंदुओं के बेवकूफ बनाकर उनका वोट लेने का काम किया है… बीजेपी नेताओं के भाषण का स्तर इतना गिर जाएगा… किसी ने सोंचा भी नहीं था… आपको बता दें कि मोदी ने देश के साथ अपने पद की गरिमा का भी अपमान किया है… इनको देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए… और इनके बयान का जवाब जनता को महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में करारी हार दिलाकर इनकी बोलती बंद कर देनी चाहिए… बता दें कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद मोदी सदमें से गुजर रहे थे… लेकिन एक बार फिर से विधानसभा चुनाव में अपनी हार से बौखलाए मोदी शब्दों की गरिमा को भूल चुके हैं….

आपको बता दें कि महाराष्ट्र के चुनावों में हमेशा ही बागियों की जबर्दस्त फसल होती है…. इस चुनाव में भी पैदाइश जबर्दस्त है…. महाराष्ट्र विधानसभा की दो सौ अट्ठासी सीटों के लिए सात हजार नौ सौ पांच उम्मीदवारों के दस हजार नौ सौ आवेदन दाखिल किए गए थे…. वहीं नाम वापसी के आखिरी दिन हजारों उम्मीदवारों ने अपना आवेदन वापस ले लिया….. इसका मतलब यह नहीं है कि बागियों की बगावत थम गई है…. बता दें कि दो सौ अट्ठासी सीटों पर अभी भी उम्मीदवारों की भारी भीड़ है….. निर्दलीय, छोटे दल, जिलास्तरीय गठबंधन और यहां तक कि असंतुष्टों द्वारा भरे गए आवेदन अभी भी मौजूद हैं….. मनोज जरांगे ने भी सबसे पहले चुनाव लड़ने…. और कुछ को उखाड़ फेंकने के अपने ‘प्लान’ की घोषणा की….. लेकिन अंत में उन्होंने फैसला किया कि चुनाव न लड़ना ही बेहतर है….. अन्यथा उनके प्रत्याशी भी मैदान में होते…. कुल मिलाकर महाराष्ट्र में दो प्रमुख गठबंधन और कई अन्य उम्मीदवार मैदान में हैं…. मैदान में इस भीड़ से लोकतंत्र ढह तो नहीं जाएगा…. ऐसा डर लगने लगा है…. जहां एक ओर दिवाली के पटाखे फूट रहे थे तो वहीं महाराष्ट्र में सर्वदलीय बगावत के पटाखे भी फूटे…. पूर्व भाजपा सांसद गोपाल शेट्टी जैसे लोगों ने ‘बगावत’ का नाटक किया… और नामांकन पत्र दाखिल करने की कोशिश की….

लेकिन जैसे ही फडणवीस ने ‘ईडी’ की चाल चली…. गोपाल राव की सारी नौटंकी बंद हो गई.. और वह पीछे हट गए….. इस दौरान असंतुष्टों और बागियों को किस-किस तरह के प्रलोभन दिए गए होंगे…. पीछे हटने के लिए मान-मनौवल किया गया होगा…. और उनमें से कई लोगों को उनके दल के नेताओं ने ‘विधान परिषद’ महामंडल आदि के आश्वासन दिए होंगे….. जिसकी कोई गिनती नहीं होगी…. सैकड़ों लोगों ने सिर्फ इस आश्वासन पर कि ‘इस बार उन्हें विधान परिषद में भेज ही दिया जाएगा…. इस हिसाब में राज्य विधान परिषद में विधायकों की संख्या पांच सौ तक बढ़ानी होगी और हजार तक एक हजार महामंडलों का निर्माण करवाना पड़ेगा….. लोकतंत्र अब चुनावों तक ही सीमित है…. और चुनाव अब आम आदमी की पहुंच में नहीं रह गए हैं…. चुनाव जनता के नाम पर सभी द्वारा की जाने वाली सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत राष्ट्रीय धोखाधड़ी है…. इस धोखाधड़ी की यह तस्वीर गढ़ रहे हमारे राजनेता लोकतंत्र और चुनाव को कितनी गंभीरता से लेते हैं….. यह ‘इस धोखाधड़ी से यही पता चलता है…. लोकतंत्र का जन्म किसी कानून की किताब या अदालत में नहीं होता…. बल्कि यह जनता की इच्छा से खिलता है…. लेकिन जनता की इच्छाओं को कुचला जा रहा है…. जनता की इच्छा पर पैसे और लालच द्वारा हमला किया जाता है…. और अंतत: सारा लोकतंत्र बर्बाद हो जाता है…. विश्वासघात से बनी सरकारें पुलिस तंत्र का इस्तेमाल कर चुनाव में डराने-धमकाने का रास्ता अपनाती नजर आ रही हैं… और चुनाव आयोग मूकदर्शक बना हुआ है….

बता दें कि भारतीय चुनावों में पाखंड और कदाचार को लेकर चुनाव आयोग गंभीर नहीं है…. आज की सरकार तो इस पर कभी गंभीर नहीं थी…. झारखंड में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि चाहे कुछ भी हो, समान नागरिक संहिता लाएंगे….. हमें गृह मंत्री से कहना है, चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक निकायों को पहले कानून के अनुसार कार्य करने के लिए कहें…. जो कानून है उसका पालन आप करवा नहीं सकते, कानून का पालन नहीं कर सकते और चले हैं…. समान नागरिक कानून का शिव धनुष उठाने….. रश्मि शुक्ला को गैरकानूनी तरीके से महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक के रूप में बिठाया गया… और फडणवीस और अन्य ने उन्हें चुनाव के सूत्र सौंपे…. विपक्ष के बार-बार आवाज उठाने के बाद कल चुनाव आयोग ने फडणवीस की लाडली ताई साहब को पद से दूर किया….. किसी भी लोकतंत्र में चुनावों का अद्वितीय महत्व है… और इसकी निगरानी और नियंत्रण एक निष्पक्ष और सक्षम प्रणाली द्वारा किया जाना चाहिए…. क्या आज भी हमारे देश में ऐसी निष्पक्ष व्यवस्था कायम है… अगर चुनाव निष्पक्ष तरीके से नहीं हुए तो बाकी संस्थाओं की क्या कहें…. चुनाव एक गरमा-गरम बाजार बन गया है…. सबके विचार जहर की तरह उबल रहे हैं….

वहीं इसमें न तो राष्ट्र का हित है और न ही महाराष्ट्र का हित है…. चुनाव लड़ना है इसी ईर्ष्या से लोग चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरते हैं…. विचार आदि गर्त में चले गए…. उम्मीदवार क्या बात करें…. यहां थोक में दल-बदल और बगावत होती रहती है…. उम्मीदवारों की भीड़ उसी तरह की है…. जिस तरह दो सौ कांस्टेबल पदों के लिए लाखों बेरोजगार आवेदन करते हैं… और भर्ती के स्थान पर या साक्षात्कार के समय भारी धक्का-मुक्की होती है…. वैसे ही महाराष्ट्र विधानसभा की दो सौ अट्ठासी सीटों के लिए हजारों बेरोजगारों के आवेदन आए हैं…. उससे पहले लाखों लोगों ने अपने-अपने पार्टी दफ्तरों में इंटरव्यू दिए…. फिर उसमें से जो फेल हो गए वे नाराज, बागी, झुंडबाज मैदान में उतरते हैं…. उनमें से कुछ ईमानदार होते हैं…. लेकिन बागियों के शोर में ईमानदारी खो जाती है…. फिर भी, वापसी का दिन शांति से बीत गया…. अब अखाड़े के पहलवानों का भविष्य जनता तय करेगी….

बता दें कि यह माना जा रहा था कि महाराष्ट्र की लड़ाई में भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे मुश्किल मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते मराठों की नाराजगी हो सकती है…. फिर जब मराठा आरक्षण की अलख जगाने वाले जरांगे पाटील ने अपने प्रत्याशी खड़े करने की घोषणा कर दी… तो एक बार ऐसा लगा कि अब तो कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) को नुकसान होना तय है…. बदलने घटनाक्रम में अब पाटील ने अपने प्रत्याशियों को हटा लिया…. और मराठों को अपने विवेक के आधार पर किसी को भी वोट देने की अपील कर दी है…. देखने में तो ऐसा लग रहा है कि यह बीजेपी के लिए खुशखबर है… पर वास्तव में ऐसा नहीं है…. कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) भी इसे अपने लिए एक खुशखबरी ही मान रही है…. क्या ऐसा संभव है कि जरांगे पाटील का मैदान से हटना दोनों ही गठबंधनों के लिए फायदेमंद हो…. आइये जानते हैं कि पाटील के फैसले से किसे फायदा हो सकता है और किसका नुकसान हो सकता है…

आपको बता दें कि मराठा समुदाय महाराष्ट्र की जनसंख्या का लगभग बत्तीस फीसदी है…. जरांगे पाटील के नेतृत्व में चलने वाला मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते ऐसा माना जा रहा था कि महा विकास अघाड़ी को बहुत फायदा होने वाला है…. जैसा कि अभी कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में देखा गया था…. एमवीए ने मराठवाड़ा में आठ में से सात सीटें जीतीं…. जो मराठा आंदोलन का केंद्र है…. मराठों की नाराजगी के चलते ही कई प्रमुख भाजपा नेता भी हारे थे…. दो हजार उन्नीस के चुनावों में, भाजपा ने इन आठ लोकसभा सीटों में से चार पर जीत हासिल की थी…. जबकि उसके सहयोगी शिवसेना (तब एकजुट) ने तीन पर जीत दर्ज की थी…. कांग्रेस-एनसीपी को तब कोई सीट नहीं मिली थी… आपको बता दें कि मनोज जरांगे-पाटील ने किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करने का चौंकाने वाला निर्णय लिया है…. पहले उन्होंने अपने उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया…. फिर उसे भी बदल दिया है… और उन्होंने मराठा समुदाय से अपील की कि वे केवल उन उम्मीदवारों को हराने के उद्देश्य से मतदान न करें, जो आरक्षण का विरोध करते हैं…. उन्होंने यहां तक कहा है कि मराठा आरक्षण की मांग का समर्थन करने वाले भाजपा नेताओं को वोट देने के लिए लोग स्वतंत्र हैं…. भाजपा ने तुरंत जरांगे पाटील के इस निर्णय की सराहना की… और इसे उनके मराठा आरक्षण आंदोलन के लिए समझदारी भरा, उचित और स्वस्थ कदम बताया है….

हालांकि यह महायुति के लिए केवल खयाली पुलाव भर है…. मराठे कभी भी बीजेपी को वोटर नहीं रहे हैं…. पिछले सभी चुनाव बीजेपी ओबीसी वोटर्स के बदौलत चुनाव जीतती रही है…. इस बार भी बीजेपी के लिए ठीक यही रहेगा कि चुनाव में मराठे, पिछड़े-दलित वोट बंट जाएं….. जैसा कि हरियाणा में हुआ…. बीजेपी जिस तरह से ओबीसी और दलित वोटों पर खुद को फोकस किए हुए है….. उसके चलते संदेह है कि मराठों का वोट उसे शायद ही मिले…. वहीं बीजेपी ने इसी रणनीति के तहत ही पार्टी में किसी बड़े मराठा नेता को बहुत आगे नहीं किया है….. पार्टी के पास दिखावे के लिए भी कोई बड़ा मराठा नेता नहीं है….

 

 

 

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