मोदी की तानाशाही पर ब्रेक, चुनाव आयुक्त बनाने का फैसला रद्द होगा!

देश के जुमलेबाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च दो हजार तेइस में पिछले दरवाजे से चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कर दी जो गैर संबैधानिक थी...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः देश के जुमलेबाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च दो हजार तेइस में पिछले दरवाजे से चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कर दी जो गैर संबैधानिक थी…… जिसको लेकर तमाम संगठनों इसका विरोध किया था… और सुप्रीम कोर्ट में मोदी के नियम को रद्द करने के लिए याचिका दाखिल की गई थी…. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उसे संविधान के विपरीत बताया था…. लेकिन मोदी की तानाशाही के चलते मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की नियुक्ति हो गई थी…. जिसके बाद अब राजीव कुमार अट्ठारह फरवरी को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं….. और उनके रिटायर होने से पहले एक एनजीओ संगठन ने फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुख्य चुनाव की नियुक्ति को लेकर मोदी सरकार के फैसलें को रद्द करने की मांग की है…. जिस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला चार फरवरी को आने वाला है….और मोदी का कानून रद्द होगा और उनकी तानाशाही का अंत होगा…. और उसी दिन से उनकी राजनीति पर ब्रेक लगना शुरू हो जाएगा,…. उसके बाद चुनाव आयोग भी पूरी निष्पक्षता से काम करेगा….

दोस्तों सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी ने पिछले दरवाजे से मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को नियुक्त करने या यूं कहें की उनको नौकरी देने का जो बिल लेकर आई थी…. उस बिल को अब रद्द किया जा सकता है…. जी हां दोस्तों सुप्रीम कोर्ट अब उस बिल को रद्द कर सकता है…. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार इसी साल अट्ठारह फरवरी को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं…. इससे पहले दिल्ली चुनाव की घोषणा कर दी गई है…. और दिल्ली में पांच फरवरी को मतदान है…. और आठ फरवरी को चुनावी नतीजे आएंगे…. जिसमें मोदी के इशारों पर काम करने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त जो किसी भी सवाल का जवाब शायरी से देते हैं वो बड़ा खेल कर सकते हैं उससे पहले ही मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर मोदी के बिल को रद्द करने की मांग की गई है…..

सुप्रीम कोर्ट ने दो हजार तेईस के कानून के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की….. इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि यह मामला कानून बनाने की विधायी शक्ति बनाम अदालत की राय होगा….. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई चार फरवरी तक टाल दी….. याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन की ओर से जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ को सूचित किया गया कि मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार अट्ठारह फरवरी को रिटायर होने वाले हैं….. और अगर अदालत ने हस्तक्षेप नहीं किया तो नये कानून के तहत एक नया CEC नियुक्त किया जाएगा….. जिसको लेकर वकील ने कहा कि अदालत ने दो मार्च दो हजार तेईस के अपने फैसले में CEC और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल करते हुए एक पैनल का गठन किया था……. लेकिन नए कानून के तहत चयन समिति में प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, नेता प्रतिपक्ष या लोकसभा में सबसे बड़े विरोधी दल के नेता शामिल होंगे….. और उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को चयन समिति से हटा दिया है….. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए चार फरवरी की तारीख तय करते हुए कहा कि वह देखेगी कि किसकी राय सर्वोच्च है….. पीठ ने कहा कि यह अनुच्छेद- एक सौ इकतालीस के तहत अदालत की राय बनाम कानून बनाने की विधायी शक्ति होगा……

बता दें कि मोदी ने जल्लवाजी में संसद में बिल पास करा लिया था…. उस समय मोदी का संसद में बहुमत था औऱ वो अपनी मनमर्जी से जो चाहे वो बिल पास करा लेते थे…. वहीं चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में जो प्रावधान था….. उसमें मोदी ने बदलाव किया था… और चयन पैनल से मुख्य न्यायाधीस को हटा दिया था…. और चयन पैनल में प्रधानमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री और विपक्ष का नेता या विपक्ष का एक बड़ा नेता उसमे शामिल था…. वहीं चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर दो मतों की जरूरत होती है…. जब मोदी के ही दो लोग अपना मत किसी एक व्यक्ति को कर देते हैं फिर विपक्ष का नेता कुछ भी कहता रहे कोई फर्क नहीं पड़ता है…. अब उसी तानाशाही पर ब्रेक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से इस बिल को रद्द करने की मांग की गई है….वहीं इस प्रावधान के अंतर्गत सारी शक्तियां मोदी के ही हाथ में थी….. विपक्ष का कोई मतलब ही नहीं था…. और मोदी जी अपनी मनमर्जी से मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को नियुक्त कर देते थे…. और फिर मुख्य चुनाव आयुक्त मोदी के इशारे पर काम करता था…. जिसकी बानगी आप हाल ही में हुए कई राज्यों के चुनाव में देख चुके हैं….

आपको बता दें कि प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को नियंत्रित नहीं कर सकती…. क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए खतरा होगा….. और उन्होंने कहा कि हमारा विचार है कि सरकार मुख्य न्यायाधीश को उस चयन समिति से नहीं हटा सकती……. जिसके गठन का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दो मार्च दो हजार तेइस को दिया था…… याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि सरकार ने दो मार्च दो हजार तेइस के फैसले का आधार नहीं बदला है….. और एक नया कानून बनाया है….. शंकरनारायणन ने कहा कि केंद्र के पास फैसले से बचने का एकमात्र तरीका संविधान में संशोधन करना…. और कानून पर अमल नहीं करना था….. सुप्रीम कोर्ट ने पंद्रह मार्च दो हजार चौबीस को दो हजार तेइस के उस कानून के तहत नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था….

वहीं क्या था मामला और क्या था मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति को लेकर मोदी का मनसूबा इसको हम आपको पूरा विस्तार से बता रहे हैं…. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त….. और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा….. इस पैनल में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष (सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल रहेंगे….. जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति पर आश्चर्य भी जताया…… जस्टिस जोसेफ ने अपने फैसले में लिखा कि हम इस बात से थोड़ा हैरान हैं कि अधिकारी ने अट्ठारह नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कैसे किया था……. अगर उन्हें नियुक्ति के प्रस्ताव के बारे में पता नहीं था….. हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने गोयल को हटाने को लेकर कोई फैसला नहीं सुनाया….. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने इस बात पर विशेष रूप से फोकस किया कि चुनाव आयुक्त पद पर उसी व्यक्ति की नियुक्ति को प्राथमिकता दें…… जो छह साल तक इस पद पर रह सके…… कोर्ट ने कहा कि जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कानून नहीं बना लेती है….. तब तक कोर्ट फैसले के तहत ही नियुक्ति की जाएगी…..

वहीं साल दो हजार पंद्रह में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी…… याचिका में कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का अधिकार अभी केंद्र के पास है….. जो संविधान के अनुच्छेद-चौदह व अनुच्छेद तीन सौ चौबीस (दो) का उल्लंघन करता है…… इसी मामले में एक अन्य याचिका भी दाखिल किया गया था…… जिसमें चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल बनाने की मांग की गई थी….. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने तेईस अक्टूबर दो हजार अट्ठारह को इस संबंध में दाखिल सभी याचिकाओं को क्लब कर दिया था…… और संवैधानिक बेंच में मामला ट्रांसफर कर दिया था….. नवंबर दो हजार बाइस में इन याचिकाओं पर लगातार सुनवाई हुई थी…… जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था…..

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई के दौरान सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच जोरदार बहस हुई थी…… याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने सुनवाई के बीच अरुण गोयल के नियुक्ति को लेकर सवाल उठाया…. वहीं अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि पहले के बनाए गए सारे नियमों का पालन किया जा रहा है….. इसलिए इस याचिका को खारिज कर दिया जाए….. कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि टीएन शेषन जैसे चुनाव आयुक्त की देश को जरूरत है….. सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा था कि मान लीजिए प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत दाखिल की जाती है….. और आयुक्त कमजोर है….. तो कैसे कार्रवाई करेगा….. आपको लगता है, यह सही है? हम चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाना चाहते हैं…..

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनाव आयोग को कार्यपालिका की अधीनता से अलग करना होगा…… कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखी जानी चाहिए…. वरना इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे….. जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वोट की ताकत सुप्रीम है…. और इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं….. इसलिए वोट देने के माध्यम चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना जरूरी है….. कोर्ट ने आगे कहा कि चुनाव आयुक्तों को हटाने का आधार वही होना चाहिए जो मुख्य चुनाव आयुक्त का है….. कोर्ट ने आयुक्तों को मुख्य आयुक्त की तरह सुरक्षा देने का भी निर्देश दिया…… सर्वोच्च अदालत ने इस दौरान दुख जताते हुए कहा कि सत्तर साल बाद भी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं है….. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के इस फैसले के बाद चुनाव आयोग में क्या बदलाव होगा….. और भविष्य में इसका क्या असर हो सकता है….. इसे विस्तार से जानते हैं…….

आपको बता दें कि उन्नीस सौ नवासी तक देश में एक चुनाव आयोग में एक ही आयुक्त होते थे……. लेकिन राजीव गांधी की सरकार ने एक मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान कर दिया….. वहीं उन्नीस सौ नब्बे में वीपी सिंह की सरकार आई तो सिंह ने फिर से एक आयुक्त के नियुक्ति की प्रक्रिया बहाल कर दी…… इसके बाद चुनाव आयुक्त बने टीएन शेषण….. शेषण के खौफ से सभी पार्टियां त्रस्त रहने लगी…… और उन्नीस सो तिरानबे में फिर से एक संशोधन कर केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान कर दिया…… इसके पीछे वजह मुख्य चुनाव आयुक्त के फैसले पर वीटो लगाना था….. आपको बता दें कि साल दो हजार उन्नीस में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की गई थी…… उस वक्त एक चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मामले में पीएम को दोषी माना….. लेकिन तत्कालीन सीईसी सुनील अरोड़ा और एक अन्य चुनाव आयुक्त ने पीएम को क्लीन चिट दे दिया…. वहीं अब तक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट अप्वाइंटमेंट कमेटी आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजती थी…. जिसे राष्ट्रपति मंजूर करते थे…..

 

 

 

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