4PM को जनसमर्थन : संजय शर्मा की दमदार वापसी

  • चार दिनों में एक लाख से ज्यादा लोगों ने सब्सक्राइब किया
  • लोगों की जुबान पर चढ़ा 4पीएम यूपी
  • सुप्रीम कोर्ट में चल रही है सुनवाई
  • बिना नोटिस के सरकार ने बंद कर दिया था 4पीएम नेशनल यूट्यूब चैनल
तू सोच रहा था, खत्म हुआ मैं,
तेरे फरमान से डर गया मैं।
पर तू भूल गया, मेरे पीछे हैं लोग,
अब तू देख फिर उठ खड़ा हुआ मैं।

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। जनता की आवाज और जज्बात बन चुके एडिटर संजश शर्मा ने 4पीएम यूपी यूट्यूब चैनल के जरिये शानदार वापसी की है। 4पीएम यूपी यूट्यूब चैनल पर महज चार दिनों में एक लाख सब्सक्राइबर का आंकड़ा पार हो जाना इस बात की तस्दीक करता है कि जनता के हक़ में आवाज बुंलद करने वाले संजय शर्मा की आवाज को बंद नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि लाखों सब्सक्राइर और फालोवर वाले 4पीएम नेशनल यूट्यूब चैनल को बिना नोटिस के बदं कर दिया गया था। सरकार समझ रही थी कि वह चैनल को बंद कर आवाज को दबा देगी। लेकिन लेकिन जितनी तेज़ सरकारी चाबुक थी उतनी ही मज़बूत निकली जनता की आवाज़ और यही आवाज़ अब इस लड़ाई को एक नई दिशा दे रही है। 4पीएम की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में एक दौर की सुनवाई सोमवार को पूरी हो चुकी है। कोर्ट ने सरकार और यूट्यूब को इस संदर्भ में अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया है।

चार दिन, एक लाख सब्सक्राइबर

4पीएम यूपी को महज चार दिनों में एक लाख से ज़्यादा लोगों ने सब्सक्राइब किया। यह आंकड़ा सिर्फ सब्सक्रिप्शन का नहीं है बल्कि विश्वास का प्रतीक है। एक ऐसे समय में जब मीडिया के बड़े हिस्से सरकार की भाषा बोलते हैं तब एडीटर संजय शर्मा की सच्ची बातों ने लोगों के दिलों में जगह बनाई है। संजय शर्मा के मुताबिक यह केवल मेरा नहीं बल्कि जनता के अधिकारों का मामला है। अगर आज सरकार मुझे चुप करा सकती है, तो कल किसी को भी। संजय शर्मा ने यह बात अपने पहले वीडियो में कही थी। उनका यह वीडियो वायरल हुआ और लाखों लोगों ने सोशल मीडिया पर प्तस्टैंड विद4पीएम हैशटैग के साथ उनका समर्थन किया और लाखों लोगों ने उनको सुनने के लिए 4पीएम यूपी चैनल को सब्सक्राइक किया। यह आंकड़ा तेजी से आगे बढ़ रहा है और उम्मीद है कि कुछ ही दिनों में हम वही पहुंच जांएगे जहां थे।

इस लड़ाई में अकेले नहीं है हम

इस पूरी लड़ाई में 4पीएम कभी भी अकेला नहीं रहा। जनता, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड और वरिष्ठ पत्रकारों का इसे हमेशा साथ मिला। इस पूरे प्रकरण के बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पर 4पीएम के समर्थन में आम लोगों से लेकर पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता तक उतर आए। कई नामी पत्रकारों ने खुलकर इस मामले को मीडिया की स्वतंत्रता का टेस्ट केस बताया। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने लिखा कि अगर 4पीएम की आवाज़ को यूं दबाया गया तो अगला नम्बर किसका होगा?। आल्ट न्यूज़ और द वायर जैसे मीडिया प्लेटफार्म ने भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। एक समय था जब मीडिया सत्ता को आइना दिखाता था अब वही सत्ता उसे चुप कराना चाहती है। लेकिन यह प्रकरण बताता है कि जनता की चेतना अब सिर्फ अख़बारों पर नहीं बल्कि डिजिटल स्क्रीन पर भी पल रही है और वह जानती है कि किसकी आवाज असली है और किसकी नकली।

पत्रकारिता पर हमले का नया तरीका?

वर्तमान राजनीतिक वातावरण में स्वतंत्र और आलोचनात्मक पत्रकारिता करने वाले डिजिटल चैनलों पर कार्रवाई बढ़ती जा रही है। यह न तो पहला मामला है और न ही अंतिम। सोशल मीडिया एक्सपर्ट की मांग है कि इस दिशा में मुकम्मल तौर पर कोर्ट सरकार को ऐसी गाइडलाइसं दे जिससे कि फिर सरकार किसी चैनल का गला न घोट सके। इस घटना के बाद लोगों में आक्रोश सीधे तौर पर देखा गया। शायद यह कारण है कि क्रिया की प्रतिक्रया वाले फार्मूले के तहत दोगुने बल के साथ लोगों का समुंदर 4पीएम से जुड़ा और लगातार जुड़ रहा है। जनता ने जिस तरह से संजय शर्मा और उनके नए चैनल को समर्थन दिया है वह इस बात का प्रमाण है कि सच्ची पत्रकारिता को दबाया जा सकता है मिटाया नहीं जा सकता। संजय शर्मा का संघर्ष और 4पीएम की वापसी लोकतंत्र की आत्मा को जीवित रखने वाले उन प्रयासों में से है जो न केवल प्रेरणा हैं, बल्कि प्रेस के भविष्य के लिए एक सबक भी।

तत्काल सुधारों की मांग कर रहे हैं लोग

उधर पूरे देश से 4 पीएम के पक्ष में माहौल उसी दिन से बनले लगा था जब इस पर बैन लगा था। सभी ने सरकार से ब्लॉकिंग आदेश को वापस लेने और यह सुनिश्चित करने का आह्वान करते हैं कि इस तरह के निर्णय कभी भी राजनीतिक दबाव या मनमाने मानकों से प्रेरित न हों, बयान में कहा गया। प्रेस की स्वतंत्रता पर चिंताएं बढऩे के साथ ही इस घटना ने डिजिटल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण की सीमा पर बहस को फिर से हवा दे दी है। अधिवक्ता अब पत्रकारिता की स्वतंत्रता की रक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को बनाए रखने के लिए तत्काल सुधारों की मांग कर रहे हैं।

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