MP हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: दुष्कर्म पीड़िता को शिशु जन्म देने की अनुमति, सरकार उठाएगी 12वीं तक का खर्च
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़िता की अनोखी और साहसिक याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पीड़िता को गर्भपात की जगह बच्चे जन्म देने और उसकी परवरिश की अनुमति दे दी है।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़िता की अनोखी और साहसिक याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पीड़िता को गर्भपात की जगह बच्चे जन्म देने और उसकी परवरिश की अनुमति दे दी है। इस मामले में खास बात यह रही कि पीड़िता ने खुद बच्चे को जन्म देने और पालने का निर्णय लिया था, जिसके लिए उसने अदालत से अनुमति मांगी थी। कोर्ट ने न सिर्फ इस फैसले को स्वीकारा, बल्कि बच्चे की शिक्षा और परवरिश की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार को सौंप दी है। आदेश के अनुसार, अब राज्य सरकार बच्चे की 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई और आवश्यक खर्चों का वहन करेगी।
यह मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की वेकेशन बेंच के जस्टिस विनय सराफ के सामने पेश किया गया. जानकारी के मुताबिक मंडला जिले के एक गांव में कुछ समय पहले इस नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ था. आरोपी के खिलाफ मुकदमा चला और उसे दोषी ठहराते हुए सजा भी सुनाई गई. बाद में पता चला कि लड़की गर्भवती है. यह खबर सामने आने के बाद परिवार ने मिलकर फैसला लिया कि वह इस बच्चे को जन्म देकर उसका पालन-पोषण करेंगे.
यहां पीड़िता ने कोर्ट से गर्भपात की नहीं बल्कि बच्चे को जीवन देने की इजाजत मांगी. इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए न्यायमूर्ति विनय सराफ ने इस पर सहानुभूति से विचार किया. कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की देखरेख में लड़की को सुरक्षित डिलीवरी की इजाजत दी और आदेश दिया कि उसके स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी मेडिकल टीम उठाएगी.
12वीं तक की पढ़ाई सरकार कराएगी
हाई कोर्ट ने इस मामले में सिर्फ अनुमति देने तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि एक बड़ी पहल करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह ऐसे मामलों में पीड़ित महिलाओं और लड़कियों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और सुरक्षा की दिशा में ठोस और स्पष्ट नीति बनाए. साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इस नवजात बच्चे की 12वीं तक की पढ़ाई का पूरा खर्च राज्य सरकार वहन करेगी.
इस फैसले ने न्यायिक दृष्टिकोण में करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व की मिसाल कायम की है। जहां एक ओर यह फैसला पीड़िता के आत्मसम्मान और जीवन के अधिकार को सम्मान देता है, वहीं दूसरी ओर यह समाज के लिए एक संदेश भी है कि पीड़ितों को सहानुभूति, सहयोग और सुरक्षा की जरूरत होती है. यह मामला न सिर्फ कानूनी रूप से बल्कि मानवीय नजरिए से भी मिसाल बन गया है.



