इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा पर मंडराया महाभियोग का खतरा, कैश कांड में फंसे होने का आरोप

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद के मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने की तैयारी की जा रही है।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद के मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने की तैयारी की जा रही है। यदि यह प्रस्ताव लाया जाता है, तो यह इलाहाबाद हाईकोर्ट के 1948 में स्थापना के बाद पहली बार होगा जब किसी मौजूदा न्यायधीश के खिलाफ इस तरह की संवैधानिक कार्रवाई होगी।

कैश कांड से जुड़ा मामला

सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस वर्मा कैश कांड में उस समय संदेह के घेरे में आए जब वह दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत थे। बताया जा रहा है कि 14 मार्च को उनके सरकारी आवास पर आग लगने की सूचना पर पहुंची दमकल टीम को एक कमरे से भारी मात्रा में नकदी मिली। यह मामला तब सुर्खियों में आया और गंभीर सवाल उठे।

तबादला और कार्यभार से रोक
इस घटना के बाद विवाद और आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ। परिणामस्वरूप, उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से स्थानांतरित कर उनके मूल न्यायलय इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया। इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट को निर्देश दिया था कि जस्टिस वर्मा को कोई भी न्यायिक कार्य न सौंपा जाए।

क्यों लगेगा हाईकोर्ट पर ‘दाग’?
बाद में जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की जांच के लिए मार्च-अप्रैल 2025 के दौरान एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई गई जिसमें उनके खिलाफ लगे आरोप सही पाए गए. भारत के पूर्व प्रमुख न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई में तीन न्यायाधीशों की समिति गठित बनी जिसने 45 मिनट तक घर का निरीक्षण करके दिल्ली पुलिस व फायर ब्रिगेड से मिली जानकारी जुटाई. फिर उपरोक्त फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने मई 2025 में अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेज दी. कमेटी की रिपोर्ट के 2 हफ्तों बाद यह सूचना आई कि केंद्र सरकार यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू कर सकती है.

अब अगर जस्टिस वर्मा, महाभियोग के जरिये अपने पद से हटाए गए तो इलाहाबाद हाईकोर्ट के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब यहां के किसी न्यायाधीश को इस तरह से पदच्युत किया जाएगा. सन्, 1948 में स्थापित इलाहाबाद हाईकोर्ट में नियुक्त कोई भी न्यायाधीश, आज तक ऐसी प्रक्रिया से नहीं गुजरा है. अगर वर्मा महाभियोग के रास्ते पद से हटे तो हाईकोर्ट के इतिहास में यह ‘दाग’ पहली बार लगेगा. हालांकि जस्टिस यशवंत वर्मा की ओर से कहा गया कि उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप निराधार हैं. खुद के घर में बरामद कैश को उन्होंने साजिश करार दिया.

अभी तक देश में पांच न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू हुई या मांग की गई. सबसे पहले वर्ष 1993 में वी. रामास्वामी जे के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया, दो तिहाई बहुमत न मिलने की वजह से प्रस्ताव गिर गया. फिर वर्ष 2011 में सौमित्र सेन जे के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया कि जो कि पास हो गया था. इसी तरह वर्ष 2015 में राज्यसभा के 58 सदस्यों ने जस्टिस जेबी पादरीवाला के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया था.

इसी वर्ष में राज्यसभा के 50 सदस्यों ने जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव पर दस्तखत किए थे.फिर वर्ष 2017 में राज्यसभा सांसदों ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी जे के खिलाफ प्रस्ताव दिया था. साल 2018 में भी विपक्षी दलों ने एक मसौदे पर दस्तखत किए थे जिसमें तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई की मांग की गई थी.

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