CJI गवई का बड़ा बयान, कहा-सीमाओं को लांघने से बचना होगा

CJI गवई ने कहा, "न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी. हालांकि न्यायिक सक्रियता को न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए. ऐसे में कभी-कभी आप सीमाओं को लांघने की कोशिश करते हैं

4पीएम न्यूज नेटवर्कः CJI गवई ने कहा, “न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी. हालांकि न्यायिक सक्रियता को न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए. ऐसे में कभी-कभी आप सीमाओं को लांघने की कोशिश करते हैं, कभी वहां चले जाने की कोशिश करते हैं, जहां आमतौर पर न्यायपालिका को नहीं जाना चाहिए.”

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने इस बात पर जोर दिया है कि देश के न्यायिक सक्रियता बनी रहनी चाहिए, लेकिन इसे न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदला जाना चाहिए. संविधान की महत्ता का जिक्र करते हुए सीजेआई ने कहा कि यह स्याही में उकेरी गई एक शांत क्रांति और परिवर्तनकारी शक्ति है जो लोगों के अधिकारों की गारंटी देता है. सीजेआई गवई ने न्यायिक प्रक्रिया के दौरान लोगों से संयमता दिखाने की बात करते कहा कि न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल संयम के साथ किया जाना चाहिए और केवल तभी किया जाए जब कोई कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता हो.

एक कानूनी समाचार पोर्टल के सवाल के जवाब में मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी. हालांकि न्यायिक सक्रियता को न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए. ऐसे में कभी-कभी आप सीमाओं को लांघने की कोशिश करते हैं और ऐसे क्षेत्र में चले जाने की कोशिश करते हैं, जहां आमतौर पर न्यायपालिका को प्रवेश नहीं करना चाहिए.” जस्टिस गवई ने संविधान को “स्याही में उकेरी गई एक शांत क्रांति” और एक परिवर्तनकारी शक्ति का रूप करार दिया, जो न केवल लोगों के अधिकारों की गारंटी देता है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित लोगों का सक्रिय रूप से उत्थान भी करता है.

संविधान का समाज पर सकारात्मक असर
लंदन में ऑक्सफोर्ड यूनियन में मंगलवार को ‘प्रतिनिधित्व से लेकर कार्यान्वयन तक: संविधान के वादे को मूर्त रूप देना’ (From Representation to Realisation: Embodying the Constitution’sPromise) विषय पर बोलते हुए, देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले दूसरे दलित और पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश ने हाशिए पर पड़े समुदायों पर संविधान के सकारात्मक प्रभाव का जिक्र किया और इस बात को समझाने के लिए अपना उदाहरण भी पेश किया.

उन्होंने कहा, “कई दशक पहले, भारत के लाखों लोगों को ‘अछूत’ कहा जाता था. उन्हें बताया जाता था कि वे अशुद्ध हैं. उन्हें यह भी बताया जाता था कि वे इस समुदाय के नहीं हैं. उन्हें हिदायत दी जाती कि वे अपने लिए कुछ भी बोल नहीं सकते.” सीजेआई गवई ने अपना उदाहरण पेश करते हुए कहा, “लेकिन आज हम यहां हैं, जहां उन्हीं लोगों से संबंधित एक शख्स देश की न्यायपालिका में सर्वोच्च पद के धारक के रूप में खुलकर बोल रहा है.”

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