अंतरिक्ष में भारत की बड़ी तैयारी: 52 डिफेंस सैटेलाइट्स लॉन्च की योजना, मिलिट्री स्पेस डॉक्ट्रिन अंतिम चरण में

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सामने आई दुश्मन के इलाकों पर निरंतर और गहन निगरानी की जरूरत ने भारत को अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को और गति से विकसित करने के लिए प्रेरित किया है।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः वैश्विक स्तर पर बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के बीच भारत अपनी रक्षा रणनीतियों को नए आयाम देने में जुटा है। देश अब अंतरिक्ष क्षमताओं को और अधिक मजबूत करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सामने आई दुश्मन के इलाकों पर निरंतर और गहन निगरानी की जरूरत ने भारत को अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को और गति से विकसित करने के लिए प्रेरित किया है। इसी के तहत सरकार ने 52 स्पेशल डिफेंस सैटेलाइट्स (SDS) लॉन्च करने की योजना को तेज करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही भारत की एक व्यापक ‘मिलिट्री स्पेस डॉक्ट्रिन’ भी तैयार हो रही है, जो अब अंतिम चरण में है। यह डॉक्ट्रिन भविष्य में भारत की अंतरिक्ष नीति और सैन्य इस्तेमाल के नियमों को दिशा देगी।

कैबिनेट की मंजूरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) ने पिछले वर्ष अक्टूबर में स्पेस बेस्ड सर्विलांस (SBS) प्रोग्राम के तीसरे चरण को मंज़ूरी दी थी। इस चरण के अंतर्गत 26,968 करोड़ रुपये की लागत से कुल 52 उपग्रह तैयार और लॉन्च किए जाने हैं।

इसरो और निजी कंपनियों की साझेदारी
इस परियोजना में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को 21 उपग्रह बनाने का जिम्मा सौंपा गया है, जबकि बाकी 31 उपग्रहों का निर्माण देश की तीन प्रमुख निजी रक्षा कंपनियों द्वारा किया जाएगा। इससे न केवल भारत की सैन्य क्षमता बढ़ेगी, बल्कि अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी को भी नया बल मिलेगा।

2029 तक अंतरिक्ष में तैनाती की प्लानिंग
इसके तहत पहला सैटेलाइट अगले साल अप्रैल तक लॉन्च कर दिया जाएगा और 2029 के अंत तक पूरे 52 सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में तैनात कर दिए जाएंगे. यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट रक्षा मंत्रालय के इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (IDS) के तहत डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) की निगरानी में पूरी होगी. सूत्रों के मुताबिक, इन सैटेलाइट्स को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) और जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में तेजी से भेजने की तैयारी चल रही है. निजी कंपनियों को भी अपने काम में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं ताकि चीन और पाकिस्तान के बड़े इलाकों पर कम समय में बार-बार निगरानी की जा सके.

HAPS एयरक्रॉफ्ट खरीदने की तैयारी में भारत
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने कार्टोसैट जैसे घरेलू सैटेलाइट्स के साथ-साथ विदेशी कमर्शियल सैटेलाइट्स का भी इस्तेमाल किया था ताकि पाकिस्तान में सैन्य गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. सूत्रों के अनुसार 52 सैटेलाइट्स की यह नई सीरीज हमारे OODA (Observe, Orient, Decide Act) लूप को और तेज करेगी. भारतीय वायुसेना भी 3 हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम (HAPS) एयरक्रॉफ्ट खरीदने की तैयारी कर रही है. ये बिना पायलट के विमान होते हैं जो स्ट्रेटोस्फेयर में लंबे समय तक खुफिया निगरानी मिशन पर काम करते हैं.

अंतरिक्ष क्षेत्र में ताकत बढ़ाने में जुटा चीन
दूसरी ओर, चीन अंतरिक्ष क्षेत्र में लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है. साल 2010 में सिर्फ 36 सैटेलाइट्स से शुरू हुआ चीन का सैन्य अंतरिक्ष कार्यक्रम 2024 तक 1,000 से ज्यादा सैटेलाइट्स तक पहुंच चुका है, जिनमें 360 सैटेलाइट सीधे निगरानी और खुफिया कार्यों के लिए हैं. चीन ने पिछले साल PLA Aerospace Force का गठन कर यह साफ कर दिया कि आधुनिक युद्ध में अंतरिक्ष को अल्टीमेट हाई ग्राउंड माना जा रहा है.

चीन के सैटेलाइट्स अब LEO में डॉगफाइटिंग जैसी जटिल युद्ध रणनीतियों का अभ्यास भी कर रहे हैं, ताकि दुश्मन के स्पेस एसेट्स को ट्रैक और खत्म किया जा सके. यही वजह है कि भारत अब अपनी सैन्य निगरानी क्षमताओं को नया कवच देने में जुट गया है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की यह तैयारी भविष्य में चीन और पाकिस्तान जैसे कट्टर पड़ोसी प्रतिद्वंद्वियों से निपटने में गेमचेंजर साबित होगी.

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