4PM के संपादक संजय शर्मा ने की पीआईएल और झुक गयी योगी सरकार!

- आखिर जेपीएनसी के दिन बहुरे पर छिप गया संजय सेठ का भ्रष्टाचार
- करोड़ों की बिल्डिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर खा रहा था जंग
- जेपीएनआईसी सेंटर का संचालन अब एलडीए के हवाले
- कैबिनेट की अहम बैठक में लिया गया फैसला
- चारों तरफ हो रही थी बदनामी
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। भाजपा सांसद संजय सेठ के भ्रष्टाचार की कहानी कह रहे जेपीएनआईसी के दिन अब बदलने वाले हैं। योगी कैबिनेट ने इसे एलडीए के हवाले करने का मन बना लिया है। इस खंडहर हो रही बिल्डिंग को बनाने के लिये 4पीएम के संपादक संजय शर्मा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका डाली थी जिसके बाद सरकार को नोटिस जारी हुआ तो हड़कंप मच गया था।
सैकड़ों करोड़ की ये बिल्डिंग बनाने का काम संजय सेठ की शालीमार कंपनी को मिला था। सरकार बदलते ही सीएम योगी ने इसकी जांच के आदेश कर दिये थे। इसके बाद भ्रष्टाचार की गंगा में नहा रहे संजय सेठ एक डील करके भाजपा में चले गये और उसके बाद जांच तो खत्म हो गयी पर ये बिल्डिंग खंडहर होती चली गयी। इसके बाद संजय शर्मा हाईकोर्ट गये और फिर तय हो गया कि इस बिल्डिंग के दिन बदल जायेंगे।
संजय सेठ के भ्रष्टाचार पर एलडीए करेगा प्लास्टर
कैबिनेट बैठक के फैसले से संजय सेठ के भ्रष्टाचार पर एलडीए के प्लास्टर लगाने का रास्ता साफ कर दिया है। हुआ यह कि 4पीएम के संपादक संजश शर्मा की पीआईएल के बाद आनन-फानन में इस भव्य इमारत को चमकाने का प्लान सरकार को मजबूरी में बनाना पड़ा। कोर्ट की ओर से सरकार को जवाब देने का नोटिस जारी हुआ था। अब सरकार कोर्ट को जवाब के तौर पर बताएगी कि इमारत की जिम्मेदारी अब लखनऊ विकास प्राधिकरण की है और वह इसे ठीक ठाक करेगा। सैकड़ों करोड़ की ये बिल्डिंग बनाने का काम संजय सेठ की शालीमार कंपनी को मिला था। सत्ता परिवर्तन के बाद जहां सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के बहुत से ड्रीम प्रोजेक्ट बंद कर दिये गये थे वहीं इस बिल्डिंग के भी जांच के आदेश योगी सरकार ने दिये थे। जांच शुरू होते ही अरबपति संजय सेठ ने बीजेपी में साठकांठ करके डील कर ली और भाजपा में चले गये और उसके बाद जॉच तो खत्म हो गयी पर ये बिल्डिंग खंडहर होती चली गयी।
संजय शर्मा ने दाखिल की थी पीआईएल
जेपीएनआईसी सेंटर को लेकर 4पीएम न्यूज नेटवर्क के संपादक संजय शर्मा ने भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने सेंटर की बदहाली और दूसरे कई अहम मुददों को दृष्टिगत रखते हुए पीआईएल दाखिल की थी। पीआईएल पर सुनवाई जारी थी और कोर्ट के निर्देश भी आने वाले थे। लेकिन उससे पहले योगी सरकार ने कैबिनेट के जरिये सरकार के लिए एक सम्मानजनक रास्ता निकाल लिया।
सपा प्रमुख ने बदहाली पर उठाया था सावाल
पिछले कुछ वर्षों में अखिलेश यादव लगातार जेपीएनआईसी की बदहाली पर सवाल उठाते रहे हैं। उन्होंने कई बार ट्वीट करके या प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया कि भाजपा सरकार समाजवादी सरकार की योजनाओं को जानबूझकर तबाह कर रही है। उनका आरोप था कि उसके फंड रोक दिए गए हैं और स्टाफ की कटौती कर दी गई है। यहां तक कि उन्होंने यह भी कहा कि जेपीएनआईसी को खंडहर बनने दिया जा रहा है क्योंकि यह समाजवादी सोच का प्रतीक है।
इस फैसले के हैं राजनीतिक मायने
अब जब सरकार ने जेपीएनआईसी के संचालन का जिम्मा एलडीए को सौंपा है तो इसे एक प्रशासनिक सुधार के तौर पर पेश किया जा रहा है। सरकारी तर्क है कि एलडीए के पास अधिक संसाधन, तकनीकी विशेषज्ञता और बेहतर प्रबंधन क्षमता है जिससे जेपीएनआईसी को पुनर्जीवित किया जा सकता है। परंतु राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय दरअसल एक राजनीतिक कॉन्सॉलिडेशन है।
4पीएम ने जेपीएनआईसी की बिल्डिंग की दुर्दशा पर खबर भी प्रकाशित की थी
4पीएम ने जेपीएनआईसी की बिल्डिंग के खंडहर होने की खबर भी प्रकाशित की थी। साथ ही अपने सामाजिक दायित्वों के तहत इसको बचाने के लिए संपादक की ओर से हाईकोर्ट में रिट भी दायर की गई थी। संजय शर्मा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि नौ सौ करोड़ की बिल्डिंग खंडहर हो रही है। ज्ञात हो कि जेपीएनआईसी का काम सपा सरकार में शुरू हुआ था। इस काम को पूरा करने की जिम्मेदारी शालीमार गु्रप को दिया गया था । 2017 में सरकार बदलते ही इस काम को रोक दिया गया था। इस बीच जांच से बचने के लिए शालीमार के मालिक संजय सेठ भाजपा में शामिल हो गए थे। सेठ तो बच गए पर बिल्डिंग जो कि आमजनता के टैक्स के पैसे से बनी थी वह धीरे-धीरे खंडहर हो रही थी। छह साल से जांच होने की बात चल रही है पर अब जाकर उम्मीद की जा रही है कि लखनऊ की एक उम्दा इमारत फिर संवर कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करेगी।




