मतदाता प्रकाशन सूची पर रोक लगाने से ‘सुप्रीम’ इंकार

सुप्रीम कोर्ट में हलचल भरा दिन

  • मंत्री विजय शाह को कड़ी फटकार, मंशा पर सवाल
  • श्री बांके बिहारी मंदिर मामले में चीफ जस्टिस तय करेंगे बेंच
  • जस्टिस वर्मा कैश कांड, जज सार्वजनिक बहस का हिस्सा नहीं

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। आज का दिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय में बेहद हलचल भरा और संवेदनशील मामलों से भरा रहा। अलग-अलग राज्यों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई ने देशभर की कानूनी, राजनीतिक और धार्मिक हलचलों को प्रभावित किया। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अहम मामला एसआईआर पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को होने वाले इसके प्रकाशन पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। वहीं मध्य प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह के कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिये गये बयान पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाते हुए उनकी मंशा को संदेह के घेरे में रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मंत्री विजय शाह को फटकार लगाते हुए कहा कि आप हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। श्री बांके बिहार मंदिर मामले पर पर सीजेआई बेंच तय करेंगे। वहीं जस्टिस वर्मा कैश कांड पर सुनवाई के दौरान आज जस्टिस वर्मा से सवाल पूछे गये। बिहार की मतदाता सूची के प्रारूप प्रकाशन पर रोक लगाने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि चुनावी प्रक्रिया के इस अहम हिस्से को बाधित नहीं किया जा सकता, और 1 अगस्त को प्रस्तावित मतदाता सूची का प्रारूप निर्धारित समय पर प्रकाशित होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी को गति मिलेगी। 1 अगस्त को मतदाता सूची का प्रारूप प्रकाशित होगा, और इसके बाद दावा-आपत्ति की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी। फैसले के बाद बिहार की राजनीति गर्म हो गयी है। राजद चुनाव बहिष्कार की धमकी दे रही है विपक्षी दलों ने इसे सरकार और चुनाव आयोग की मिलीभगत करार दिया है। जबकि सत्तारूढ़ दल ने इसे बिहार चुनाव को अस्थिर करने की कोशिश बताया।

आधार कार्ड को सूची में शामिल करने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली तारीख पर चुनाव आयोग से कहा था कि वो आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को लिए जा रहे दस्तावेजों की सूची में शामिल करने पर विचार करे। चुनाव आयोग ने कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा कि ये तीनों दस्तावेज भरोसेमंद नहीं हैं, क्योंकि इन्हें गलत तरीके से फर्जी बनाया जा सकता है। जस्टिस सूर्यकांत ने आज सुनवाई के दौरान आयोग से कहा कि दुनिया का कोई भी पेपर जाली बनाया जा सकता है। आपकी लिस्ट वाले पेपर भी निर्णायक नहीं हैं। क्या वो आधार कार्ड और मतदाता फोटो पहचान पत्र स्वीकार करेगा। आयोग ने कहा कि उसे राशन कार्ड स्वीकार करने में दिक्कत है। वोटर आईडी तो फॉर्म पर पहले से प्रिंटेड है और फॉर्म में वोटर को आधार नंबर भरना है। आयोग ने कोर्ट को बताया कि अदालत का ही आदेश है कि आधार कार्ड नागरिकता की पहचान का दस्तावेज नहीं है। 1 अगस्त को आयोग ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी करेगा, जिस पर आपत्ति और दावा के जरिए छूटे नाम निर्धारित फॉर्म भरकर जोड़े जा सकेंगे या गलत नाम को हटाया जा सकेगा।

एसआईआर को रोकने की मांग को लेकर प्रदर्शन

संसद परिसर में सुबह विपक्षी सांसदों ने एसआईआर को रोकने की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किया है, जिसमें प्रियंका गांधी भी शामिल हुईं। विपक्ष लगातार वोटर लिस्ट रिवीजन के खिलाफ बोल रहा है। बिहार में इस मसले पर महागठबंधन ने बंद का भी आयोजन किया था जिसमें राहुल गांधी भी गए थे। इन दलों का कहना है कि चुनाव आयोग वोटरों का नाम काटने के लिए भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है।

मंदिर राज्य की संपत्ति या ट्रस्ट नहीं है: याचिकाकर्ता

मथुरा के वृंदावन में स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। श्री बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति ने यूपी सरकार के अध्यादेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सीजेआई अब यह तय करेंगे कि इस मामले की सुनवाई कौन सी बेंच करेगी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने श्री बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले को मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के समक्ष भेजने का निर्देश दिया है। जस्टिस सूर्यकांत की बेंच में बताया गया कि इससे जुड़ी एक और याचिका दूसरी बेंच में लंबित है। इसके चलते कोर्ट ने मामले को मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के समक्ष भेजने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीजेआई अब यह तय करेंगे कि इस मामले की सुनवाई कौन सी बेंच करेगी। दरअसल, श्री बांके बिहारी मंदिर के वर्तमान प्रबंधन ने उत्तर प्रदेश सरकार के श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस अध्यादेश के तहत मंदिर का प्रशासनिक नियंत्रण एक नवगठित ट्रस्ट को सौंपा गया है, जिसे याचिकाकर्ताओं ने मंदिर के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि यह मंदिर के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के समान है। मंदिर राज्य की संपत्ति या ट्रस्ट नहीं है।

‘श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्थान’

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्थान है, जो स्वामी हरिदास के वंशजों और लगभग 360 सेवायतों द्वारा संचालित होता रहा है। 1939 में बनाई गई प्रबंधन योजना के तहत मंदिर का संचालन होता है, जिसका यह अध्यादेश उल्लंघन करता है। इस प्रबंधन अधिग्रहण को इलाहाबाद हाई में भी चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। राज्य द्वारा प्रबंधन और नियंत्रण अपने हाथ में लेने के लिए कोई कारण नहीं दिया गया।

विजय शाह की मंशा पर शक, लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा कि मंत्री विजय शाह की मंशा पर अदालत को शक है। शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि क्या विजय शाह ने अब तक अपने बयान के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है। कोर्ट ने एसआईटी (विशेष जांच टीम) से पूछा कि आखिर विजय शाह के बयान से जिन लोगों की भावनाएं आहत हुईं, उनके बयान अब तक क्यों नहीं लिए गए? एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जांच के दौरान अब तक 27 लोगों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं और वायरल वीडियो क्लिप की जांच भी की जा चुकी है। एसआईटी ने कहा कि वह फिलहाल सभी रिकॉर्ड का विश्लेषण कर रही है और जांच रिपोर्ट को 13 अगस्त तक अंतिम रूप दिया जाएगा। एसआईटी के इस जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई स्थगित कर दी है। इस मामले में कोर्ट अब 18 अगस्त को सुनवाई करेगी। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि एसआईटी के एक सदस्य को स्टेटस रिपोर्ट के साथ 18 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा।

जस्टिस वर्मा से पूछे गये सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा से कैश कांड पर सवाल किया जिन्होंने जांच रिपोर्ट के खिलाफ याचिका दायर की है। जस्टिस दीपांकर दत्त और एजी मसीह की बेंच ने जस्टिस वर्मा से कई सवाल पूछे। वरिष्ठ एडवोकेट कपिल सिब्बल ने जस्टिस वर्मा का पक्ष रखते हुए कहा कि जज सार्वजनिक बहस का हिस्सा नहीं हो सकते। जस्टिस वर्मा ने इन-हाउस जांच रिपोर्ट को गलत बताया है। वरिष्ठ एडवोकेट कपिल सिब्बल ने जस्टिस वर्मा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में उनका पक्ष रखा। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 124 का हवाला देते हुए कहा कि जज सार्वजनिक बहस का हिस्सा नहीं हो सकते हैं।

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