4300 करोड़ का गुमनाम चंदा! गुजराती पार्टियों को किसने दिया पैसा, मोदी से क्या है कनेक्शन?
4300 करोड़ का गुमनाम चंदा… आखिर कौन दे रहा है गुजरात की पार्टियों को इतना पैसा? क्या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है?

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों आज की राजनीति में पैसा एक बड़ा हथियार बन गया है….. चुनाव लड़ने के लिए, प्रचार करने के लिए और पार्टी चलाने के लिए दलों को चंदे की जरूरत पड़ती है….. लेकिन क्या हो अगर कुछ ऐसे दल हों जिनका नाम तक लोगों ने न सुना हो……. वे चुनाव में ज्यादा हिस्सा न लें……. लेकिन उन्हें हजारों करोड़ रुपये का चंदा मिल जाए….. जीं हां गुजरात में ठीक ऐसा ही हुआ है…… एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि राज्य में रजिस्टर्ड 10 गुमनाम से राजनीतिक दलों को 2019-20 से 2023-24 के पांच सालों में कुल 4300 करोड़ रुपये का चंदा मिला……. यह खबर चौंकाने वाली है क्योंकि इन दलों ने इस दौरान हुए तीन चुनावों में सिर्फ 43 उम्मीदवार उतारे…… और उन्हें कुल 54,069 वोट ही मिले……. चुनाव आयोग को सौंपी गई रिपोर्ट में इन दलों ने चुनावी खर्च सिर्फ 39.02 लाख रुपये बताया…….. जबकि उनकी ऑडिट रिपोर्ट में 3500 करोड़ रुपये का खर्च दिखाया गया है…..
वहीं यह मामला न सिर्फ राजनीतिक ईमानदारी पर सवाल उठाता है…… बल्कि भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और चुनावी फंडिंग की कमजोरियों को भी उजागर करता है……. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कहते हैं कि उन्होंने भ्रष्टाचार पर लगाम कसी है……. लेकिन ऐसे मामलों से सवाल उठता है कि इतना बड़ा चंदा इन दलों को किसने दिया और क्यों……. क्या यह पैसा वोटरों को खरीदने या नेताओं को लुभाने के लिए इस्तेमाल हुआ….. इस खबर में हम इस विषय पर तथ्यों के आधार पर विस्तार से बात करेंगे…… यह खबर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और चुनाव आयोग के डेटा पर आधारित है…..
भारत में राजनीतिक दलों को चंदा देने का सिस्टम लंबे समय से चला आ रहा है…… पहले चंदा नकद में दिया जाता था……. जिससे काला धन का इस्तेमाल आसान हो जाता था…… 2017 में सरकार ने चुनावी बॉन्ड स्कीम शुरू की…… जिसके तहत लोग बैंकों से बॉन्ड खरीदकर दलों को गुमनाम तरीके से चंदा दे सकते थे……. इसका मकसद था कि चंदा पारदर्शी बने और काला धन रुके…… लेकिन 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम को असंवैधानिक करार दिया…… और चुनाव आयोग को बॉन्ड्स का डेटा सार्वजनिक करने का आदेश दिया……. इसके बाद पता चला कि कई बड़े कॉरपोरेट्स ने दलों को करोड़ों रुपये दिए, कभी-कभी जांच एजेंसियों के दबाव में……
वहीं गुजरात का यह मामला इसी से जुड़ा लगता है…… यहां रजिस्टर्ड लेकिन अनरिकॉग्नाइज्ड पॉलिटिकल पार्टियां हैं…… जो चुनाव आयोग से रजिस्टर्ड हैं लेकिन राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं…… देश में ऐसी 2764 पार्टियां हैं….. और इनमें से 73 फीसदी अपनी फाइनेंशियल रिपोर्ट्स सार्वजनिक नहीं करतीं…… एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2019-20 से 2023-24 के बीच इन दलों की आय में भारी बढ़ोतरी हुई है……. खासकर 2022-23 में 223 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई……. गुजरात में ऐसी पार्टियां सबसे ज्यादा सक्रिय दिख रही हैं……. जहां टॉप 10 आरयूपीपी में से 5 गुजरात की हैं…… और उनकी कुल आय 1158 करोड़ रुपये से ज्यादा है…….
अब यह समझना जरूरी है कि ये दल क्यों बनाए जाते हैं…… कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि ये पार्टियां मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल होती हैं…… चंदा के नाम पर काला धन सफेद किया जाता है……. और टैक्स छूट का फायदा लिया जाता है…… राजनीतिक दलों को चंदे पर 100 फीसदी टैक्स छूट मिलती है…… अगर वे अपनी रिपोर्ट्स सही से जमा करें…… लेकिन अगर रिपोर्ट्स में गड़बड़ी हो, तो जांच होनी चाहिए…… गुजरात के इन 10 दलों का मामला ठीक यही दिखाता है….. रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में रजिस्टर्ड ये 10 दल ऐसे हैं जिनका नाम आम लोग नहीं जानते…… इनमें से कुछ के नाम और चंदे की डिटेल्स उपलब्ध हैं…..
जिसमें लोकशाही सत्ता पार्टी सबसे ज्यादा चंदा पाने वाली है….. 2019 से 2024 के बीच इसे 1045 करोड़ रुपये मिले…… ऑडिट रिपोर्ट में चुनावी खर्च 22.82 करोड़ रुपये दिखाया गया है…… लेकिन इस दल ने चुनाव में ज्यादा उम्मीदवार नहीं उतारे….. भारतीय जन परिषद को चंदा मिला और ऑडिट में चुनावी खर्च 177 करोड़ रुपये बताया गया…… यह गुजरात का एक छोटा दल है…… जो लोकल इश्यूज पर फोकस करता है….. लेकिन चुनावी प्रदर्शन कमजोर रहा है…… सौराष्ट्र जनता पक्ष के ऑडिट रिपोर्ट में चुनावी खर्च 141 करोड़ रुपये हैं….. और यह दल सौराष्ट्र इलाके से जुड़ा है…. लेकिन वोट बैंक बहुत छोटा है…… सत्यवादी रक्षक पार्टी को चंदा मिला, और चुनावी खर्च 10.53 करोड़ रुपये दिखाया….. इसके वर्किंग प्रेसिडेंट बिरेन पटेल ने कहा कि वे आने वाले नगरपालिका चुनाव में 80-90 उम्मीदवार उतारेंगे…… यह दल 2022 में बना, और जल्दी ही बड़ी रकम जुटा ली….. एडीआर रिपोर्ट में इसे 416 करोड़ की आय दिखाई गई है……
मदार लैंड नेशनल पार्टी के ऑडिट में चुनावी खर्च 86.36 लाख रुपये है…… यह दल भी गुमनाम है….. और चुनाव में भी सक्रिय नहीं है…… न्यू इंडिया यूनाइटेड पार्टी को 2022-23 में ही 407 करोड़ रुपये का चंदा मिला…… इसके नेशनल प्रेसिडेंट अमित चतुर्वेदी ने कहा कि चुनाव खर्च की रिपोर्ट अपलोड की जाती है……. लेकिन छोटी पार्टी होने से 15 दिनों में हटा दी जाती है…… वहीं रिपोर्ट में बाकी 4 दलों के नाम स्पष्ट नहीं बताए गए…… लेकिन कुल 10 दलों को 4300 करोड़ मिले…… एडीआर की रिपोर्ट में गुजरात की 5 पार्टियों को 2316 करोड़ की आय बताई गई है…… जो सिर्फ 22,000 वोट पाईं…… इनमें भारतीय नेशनल जनता दल को 957 करोड़ मिले, जो टॉप पर है…… ये दल 2018 के बाद बने हैं….. और जल्दी अमीर हो गए…… चंदा 23 राज्यों से आया जो दिखाता है कि फंडिंग नेटवर्क बड़ा है…..
वही ये सभी दल गुजरात में रजिस्टर्ड हैं……. लेकिन उनका असर पूरे देश में है…… कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि बड़े कॉरपोरेट्स या अमीर लोग इन दलों के जरिए पैसा ट्रांसफर करते हैं…… क्योंकि इन पर कम नजर रखी जाती है…… अब बात चुनाव की करते हैं…… 2019 लोकसभा, 2022 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनाव में गुजरात में इन 10 दलों ने कुल 43 उम्मीदवार उतारे……. इतने बड़े राज्य में जहां 26 लोकसभा और 182 विधानसभा सीटें हैं…… वहां 43 उम्मीदवार बहुत कम हैं…… इन उम्मीदवारों को कुल 54,069 वोट मिले…… जो कुल वोटों का बहुत छोटा हिस्सा है…….. 2022 विधानसभा चुनाव में गुजरात में कुल वोट 1.9 करोड़ से ज्यादा पड़े…… लेकिन इन दलों को सिर्फ हजारों वोट मिले…..
फिर सवाल है, इतना चंदा क्यों….. अगर चुनाव लड़ने के लिए नहीं…. तो किस लिए…… एडीआर के प्रोफेसर जगदीप छोकर कहते हैं कि यह मनी लॉन्ड्रिंग का संकेत है…… दल चंदा लेते हैं, खर्च दिखाते हैं…… लेकिन असल में पैसा कहीं और जाता है…… इन दलों ने 17 उम्मीदवार लोकसभा में और कुछ विधानसभा में उतारे, लेकिन कोई जीता नहीं….. सबसे चौंकाने वाली बात खर्च की है….. चुनाव आयोग को सौंपी गई रिपोर्ट में इन दलों ने चुनावी खर्च सिर्फ 39.02 लाख रुपये बताया…… यह रकम बहुत छोटी है…… क्योंकि एक उम्मीदवार का खर्च भी लाखों में होता है…… लेकिन ऑडिट रिपोर्ट में कुल खर्च 3500 करोड़ रुपये दिखाया गया है…… चुनावी खर्च का मतलब प्रचार, रैलियां, पोस्टर आदि से है….. जो ईसीआई को बताना जरूरी है…… लेकिन ऑडिट रिपोर्ट आय-व्यय का पूरा हिसाब है…… जो टैक्स डिपार्टमेंट को जाती है……
आपको बता दें कि भारतीय जन परिषद ने ऑडिट में 177 करोड़ चुनावी खर्च दिखाया……. लेकिन ईसीआई रिपोर्ट में बहुत कम है…… कुछ दलों ने रिपोर्ट्स सही फॉर्मेट में नहीं दीं…… गुजरात चुनाव ऑफिस के एक अधिकारी ने कहा कि ईसीआई दलों को डीरजिस्टर कर सकता है…… लेकिन योगदान रिपोर्ट्स गोपनीय हैं क्योंकि जांच चल रही है…….. आयकर अधिकारी भी कहते हैं कि यह टैक्स चोरी का मामला हो सकता है….. वहीं यह कमी दिखाती है कि पैसा चुनाव में नहीं लगा…… बल्कि कहीं और इस्तेमाल हुआ….. क्या नेता खरीदे गए? या वोटर प्रभावित किए गए? या पैसा विदेश भेजा गया? इस सवालों के जवाब बिना जांच के मिल पाना संभव नहीं है…..
रिपोर्ट बताती है कि चंदा 23 राज्यों से आया…… गुजरात से सबसे ज्यादा, लेकिन महाराष्ट्र, यूपी, दिल्ली आदि से भी आया….. चुनावी बॉन्ड डेटा से पता चला कि कई कंपनियां छोटे दलों को चंदा देती हैं….. लेकिन इन दलों में दानकर्ताओं का नाम छिपाया जाता है…… क्योंकि 20,000 रुपये से कम चंदे पर नाम बताना जरूरी नहीं…… एडीआर कहती है कि टॉप 10 आरयूपीपी को 1581 करोड़ का चंदा मिला, जो राष्ट्रीय दलों से ज्यादा है….. वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े बिजनेसमैन इन दलों के जरिए पैसा घुमाते हैं…… एक पार्टी को 2020-21 में 8000 रुपये आय थी…… लेकिन 2022-23 में 220 करोड़ हो गई…… यह अचानक बढ़ोतरी संदेहास्पद है……
इस खबर पर राजनीतिक हलचल मच गई…… कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने X पर पोस्ट किया कि गुजरात में कुछ ऐसी अनाम पार्टियां हैं जिनका नाम किसी ने नहीं सुना…… लेकिन 4300 करोड़ का चंदा मिला…… ये हजारों करोड़ आए कहां से? चला कौन रहा है इन्हें? और पैसा गया कहां? क्या चुनाव आयोग जांच करेगा?…… उन्होंने हैशटैग #VoteChori इस्तेमाल किया, जो वोट चोरी का संकेत है….. बता दें कि चुनाव आयोग इन दलों को रजिस्टर करता है…. लेकिन निगरानी कमजोर है…… ईसीआई 5 साल से निष्क्रिय दलों को डिलीट कर सकता है, लेकिन ऐसा कम होता है…… एडीआर सुझाव देती है कि फाइनेंशियल डिस्क्लोजर अनिवार्य करें, बड़े चंदे वाले दलों की जांच करें…… और स्टेट सीईओ वेबसाइट्स पर रिपोर्ट्स 24 घंटे में अपलोड करें….. वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ईसीआई ने बॉन्ड डेटा जारी किया….. लेकिन आरयूपीपी पर फोकस कम है….. अगर जांच हो, तो सच्चाई सामने आएगी…..



