शुरू हो गया डिजिटल वार चुप है मोदी सरकार

- भारत में कब चलेगा गूगल पर दंड का चाबुक
- चुप्पी पर विपक्ष के निशाने पर केंद्र सरकार
- नेपाली पीएम ओली ने तो चला दी गोली
- ट्रंप ने भी गूगल पर की कार्रवाई
- भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था विदेशी कंपनियों के इशारों पर नाच रही है
- डिजिटल इंडिया सिर्फ विदेशी कंपनियों के लिए बाजार खोलने का एक नारा बनकर रह गया ?
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। नेपाल जैसे छोटे देश ने गूगल को चुनौती देते हुए उसकी सेवाएं बंद कर दीं। अमेरिका ने भी गूगल पर भारी भरकम जुर्माना ठोंक दिया। लेकिन भारत में गूगल और अन्य टेक कंपनियों को एक तरह से विशेष छूट मिलती चली आ रही है। यहां न डाटा प्रोटेक्शन कानून सख्ती से लागू हो पाए, न इनकी एकाधिकार प्रवृत्ति पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई हुई है।
लाखों छोटे स्टार्टअप्स और भारतीय कंपनियां गूगल के विज्ञापन और प्ले-स्टोर फीस के चलते दबाव में आ जाती हैं। यह डिजिटल कॉलोनियलिज्म है जहां विदेशी कंपनियां भारतीय उपभोक्ताओं और व्यापारियों पर हावी हैं और सरकार चुपचाप तमाशा देख रही है।

डिजिटल गुलामी की ओर?
भारत 21वीं सदी में डिजिटल सुपरपावर बनने का दावा करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत का नारा देते हैं। लेकिन जब गूगल, मेटा (फेसबुक), अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट जैसी टेक कंपनियों की बात आती है तो तस्वीर एकदम उलट नजर आती है। ये कंपनियां भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था, डेटा और विज्ञापन बाजार पर एकाधिकार बनाए बैठी हैं और सरकार उनकी मेहरबानी पर निर्भर दिखती है। सवाल यह उठता है कि क्या भारत वाकई डिजिटल महाशक्ति बन रहा है या फिर यह डिजिटल गुलामी की ओर बढ़ रहा है?
सवालों के घेरे में पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंचों से तो आत्मनिर्भर भारत का सपना दिखाते हैं। लेकिन डिजिटल क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का कोई रोडमैप अभी तक पेश नहीं कर पाये हैं। क्यों भारतीय सरकार अमेरिकी टेक कंपनियों से टकराने की हिम्मत नहीं जुटा पाती? क्या वजह है कि भारत ने अब तक गूगल या मेटा पर वैसा जुर्माना नहीं लगाया जैसा यूरोप या अमेरिका ने लगाया? क्या वजह है कि नेपाल जैसे छोटे देश की तरह सेवाओं को सस्पेंड करने की हिम्मत भारत नहीं कर पाता? यह सवाल केवल विपक्ष ही नहीं बल्कि आम नागरिकों के बीच भी गूंज रहा है। लोग पूछ रहे हैं कि क्या मोदी सरकार वास्तव में विश्वगुरु बनाना चाहती है या फिर सिर्फ विदेशी कंपनियों के लिए भारत को सबसे बड़ा डिजिटल बाजार बनाना चाहती है?
कैसे पूरा होगा विश्व गुरू का दावा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दावा है कि भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है। मगर सवाल यह है कि क्या कोई भी देश विश्वगुरु तब बन सकता है जब उसकी डिजिटल अर्थव्यवस्था विदेशी कंपनियों के इशारों पर नाच रही हो? क्यों भारत अमेरिका की तरह कड़े कानून और जुर्माने लागू नहीं करता? क्यों नेपाल जैसे छोटे देश की तरह ठोस कदम नहीं उठाता? यह चुप्पी क्या डिजिटल इंडिया का असली चेहरा है। जहां जनता से तो आत्मनिर्भरता का नारा बुलंद करवाया जाता है लेकिन असल में आत्मनिर्भरता विदेशी टेक दिग्गजों के सामने घुटने टेक देती है?
गूगल का साम्राज्य और भारतीय स्टार्टअप्स का संकट
गूगल प्ले-स्टोर भारत में लाखों ऐप डेवलपर्स के लिए जीविका का जरिया है। लेकिन गूगल अपनी शर्तों के मुताबिक ऐप पर 15त्न से 30त्न तक का कमीशन काटता है। कई भारतीय स्टार्टअप्स और डिजिटल कंपनियां इस दबाव को झेल नहीं पातीं और दम तोड़ देती हैं। मेटा (फेसबुक) और गूगल मिलकर भारतीय डिजिटल विज्ञापन बाजार पर लगभग 80 फीसदी कब्जा रखते हैं। इसका मतलब यह है कि छोटे भारतीय प्लेटफॉर्म्स और मीडिया हाउस विज्ञापन के खेल से बाहर कर दिए जाते हैं। भारत सरकार के पास इस एकाधिकार को तोडऩे की ताकत है लेकिन सवाल यह है कि वह ऐसा क्यों नहीं करती क्या डिजिटल इंडिया सिर्फ विदेशी कंपनियों के लिए बाजार खोलने का एक नारा बनकर रह गया है?
अमेरिका व नेपाल का साहस, भारत की खामोशी
अमेरिका में हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने गूगल और दूसरी बड़ी टेक कंपनियों पर अरबों डॉलर का जुर्माना ठोंका। कारण एकाधिकार और डेटा प्राइवेसी उल्लंघन। वहीं नेपाल जैसे छोटे देश ने गूगल की सेवाओं को चुनौती दी और कई एप्स बंद कर दिए। ये दोनों उदाहरण यह दिखाते हैं कि किसी भी राष्ट्र की डिजिटल संप्रभुता उसके राजनीतिक साहस पर निर्भर करती है। इसके उलट भारत की स्थिति देखें। यहां गूगल को करोड़ों भारतीय यूज़र्स का डेटा बिना किसी पारदर्शिता के इक_ा करने मनमाने शुल्क वसूलने और छोटे डेवलपर्स को दबाने की खुली छूट मिली हुई है। सरकार न तो इन पर जुर्माना लगाती है और न ही किसी तरह की सख्त जवाबदेही तय करती है।



