वांगचुक से क्या डर गयी मोदी सरकार ?

- राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत किया गया गिरफ्तार
- गिरफ्तारी का विरोध शुरू, कांग्रेस ने वांगचुक की गिरफ्तारी को तानाशाही बताया
- क्षेत्रीय दलों ने भी गिरफ्तारी के विरोध में आवाज उठाना शुरू किया
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। एक ऐसा व्यक्ति जो जीवनभर शिक्षा, पर्यावरण और समाज सेवा के लिए जाना जाता रहा अचानक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है। लेह में हुई हिंसा के बाद सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून एनएसए के तहत गिरफ्तार किया जा चुका है और उनकी गिरफ्तारी की खबर ने पूरे देश की राजनीति को और ज्यादा गर्म कर दिया है।
सरकार का तर्क है कि वांगचुक की गतिविधियां कानून व्यवस्था को चुनौती दे रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या कोई सामाजिक कार्यकर्ता, जो जीवनभर शिक्षा, पर्यावरण और समाज सेवा के लिए जाना जाता है अचानक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा कैसे बन सकता है? या फिर यह गिरफ्तारी सरकार की नीतियों पर बढ़ते असंतोष और जनता की बेचैनी से उपजे डर का नतीजा है? खबर लिखे जाने तक कांग्रेस ने इस गिरफ्तारी का विरोध शुरू कर दिया है और वांगचुक की गिरफ्तारी को सरकार की नीतियों पर बढ़ते असंतोष और जनता की बेचैनी से उपजे डर का नतीजा बताया है।
वांगचुक पर हिंसा भड़काने का आरोप
सोनाम वांगचुक पर लद्दाख के लेह शहर में हिंसा भड़काने का आरोप है जिसके बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। वांगचुक 10 सितंबर को राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची में शामिल करने और लद्दाख के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी को असंवैधानिक करार देते हुए केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। अजय राय के मुताबिक सरकार महंगाई और बेरोजगारी पर से ध्यान भटकाने के लिए यह सब कुछ कर रही है।
गिरफ्तारी का विरोध शुरू
उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश दुबे ने गिरफ्तारी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार तानाशाही रवैया अपना रही है। अविनाश दुबे ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। आज पूरे देश में तानाशाही का माहौल है। लोकतंत्र में लोगों को कार्य करने और बोलने की आजादी है। अगर जनता की भावनाओं और उनकी मांगों को इस तरह दबाया जाएगा तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। सोनम वांगचुक की केवल यही मांग है कि लद्दाख की स्वायत्तता, जिसे एक राज्य के रूप में घोषित किया गया था को प्रभाव में लाया जाए। उन्होंने कहा कि वहां की जनता जिन समस्याओं और तकलीफों का सामना कर रही है उन्हें समझा जाना चाहिए। दुबे ने आरोप लगाया कि वहां सरकार नाम की कोई चीज नहीं है न कोई जिम्मेदारी लेने वाला है। अगर वांगचुक ने जनता की आवाज उठाई है तो पूरा देश उनके साथ खड़ा है। उनके सम्मान के साथ उनकी बातों को अहमियत दी जानी चाहिए न कि उनके साथ एक अपराधी जैसा सुलूक किया जाना चाहिए।
लेह के हर कोने में सन्नाटा, गिरफ्तारी के बाद इंटरनेट सेवाएं बंद
लद्दाख में बुधवार को हुई हिंसा के सिलसिले में जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों बाद, प्रशासन ने शुक्रवार को लेह में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दीं। इस हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। 59 वर्षीय वांगचुक ने केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया और लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की। नवप्रवर्तक-सुधारवादी वांगचुक ने केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के लिए राज्य का दर्जा देने की भी मांग की है, जिसे अगस्त 2019 में केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू और कश्मीर से अलग कर दिया गया था। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने वांगचुक द्वारा स्थापित एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीएमओएल) का विदेशी फंडिंग लाइसेंस भी तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। अपने आदेश में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि वांगचुक के एनजीओ ने नकद राशि प्राप्त की, जो विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम की धारा 17 का उल्लंघन है। गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया कि इसके अलावा एसोसिएशन द्वारा सोनम वांगचुक से एफसी दान के रूप में 3.35 लाख रुपये की राशि की सूचना दी गई है। हालांकि, यह लेनदेन एफसीआरए खाते में नहीं दिखाया गया है, जो अधिनियम की धारा 18 का उल्लंघन है।
नेशनल पालिटिक्स में लेह बना मुद्दा
लेह में लगी आग अब सिर्फ स्थानीय मुद्दा नहीं रहा। धीरे-धीरे यह उस राजनीति का आईना बनता जा रहा है जिसमें असहमति को अपराध बना दिया गया है। कांग्रेस ने इस गिरफ्तारी को तानाशाही करार दिया। उनका कहना है कि मोदी सरकार हर जगह विपक्ष को कुचलने की कोशिश कर रही है, चाहे वह संसद हो मीडिया हो या सड़क। लेह की घटना पर अब क्षेत्रिय दलों ने भी बोलना शुरू कर दिया है जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व के नेता भी चुप नहीं हैं। उनका कहना है कि अगर लद्दाख जैसे शांत इलाके में आवाज उठाने वालों को जेल भेजा जा सकता है तो देश में कोई भी सुरक्षित नहीं रहा। वहीं आम लोग अब यह पूछ रहे हैं कि जो सरकार पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, विश्वगुरु और विकसित भारत के नारे लगा रही है वही क्यों एक छोटे-से आंदोलन से डरकर एनएसए लगाने पर उतर आती है।
क्यों भड़की लेह में आग?
लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिले अब पांच साल से अधिक हो चुके हैं। जब अनुच्छेद 370 हटाया गया था तब लद्दाख को सीधे दिल्ली से विकास का सपना दिखाया गया। लोगों ने सोचा कि अब उनकी पहचान संस्कृति और पर्यावरण को और मजबूती मिलेगी। लेकिन हुआ ठीक उल्टा। लद्दाख की आबादी का बड़ा हिस्सा जनजातीय समुदाय से आता है। उनकी मांग है कि उन्हें छठी अनुसूची का संरक्षण मिले ताकि जमीन और संस्कृति सुरक्षित रह सके। लेकिन यह मांग लगातार टलती जा रही है। पर्यटन और सेना की छावनियों के बीच लद्दाखी युवाओं को नौकरी और रोजगार की संभावनाएं कम मिलीं। दिल्ली से आने वाले बड़े कॉर्पोरेट और ठेकेदार स्थानीय अर्थव्यवस्था पर हावी होने लगे। यही नहीं ग्लेशियर पिघल रहे हैं पानी की किल्लत बढ़ रही है। लेकिन सरकार के विकास मॉडल में इन मुद्दों की कोई जगह नहीं मिल पा रही। इन सबके बीच सोनम वांगचुक जैसे कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई। उन्होंने शांतिपूर्ण धरने, उपवास और जनसभाओं से सरकार को याद दिलाने की कोशिश की कि लद्दाख सिर्फ रणनीतिक क्षेत्र नहीं बल्कि जीवित संस्कृति और प्रकृति की धरोहर है।




