‘हिंदू धर्म के ठेकेदार मत बनिये’, गरबा पर मॉरल पुलिसिंग करने की तालिबान से किया तुलना
गुजरात के प्रसिद्ध लेखक ने गरबा में मॉरल पुलिसिंग पर कड़ी प्रतिक्रिया दी... उन्होंने इसे तालिबान जैसी मानसिकता से जोड़ा…

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों नवरात्रि का मौसम आते ही गुजरात में गरबा और रास की धूम मच जाती है.. रंग-बिरंगे चनिया-चोली में सजी महिलाएं.. और पुरुष मां दुर्गा की भक्ति में डूबकर नाचते हैं.. लेकिन इस साल यह उत्सव न सिर्फ भक्ति और आनंद का प्रतीक बना.. बल्कि नैतिक पुलिसिंग की कड़वी बहस का केंद्र भी बन गया.. जी हां दोस्तों वडोदरा के एक बड़े गरबा आयोजन में एक एनआरआई दंपति के किस करने का वीडियो वायरल होने के बाद.. उठे विवाद ने पूरे गुजरात को हिला दिया.. इसी बीच गुजराती साहित्य के प्रसिद्ध लेखक जय वसावड़ा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो पोस्ट कर इस ‘तालिबानी मानसिकता’ पर तीखा प्रहार किया.. और उन्होंने कहा कि कुछ लोग बिना ग्रंथों का ज्ञान किए ही दूसरों की जिंदगी में दखल दे रहे हैं.. वहीं यह बयान न सिर्फ वर्तमान विवाद को छूता है.. बल्कि गुजराती संस्कृति की उदारता.. और सनातन धर्म की स्वतंत्र भावना को फिर से जिंदा करता है..
बता दें कि 28 सितंबर को जय वसावड़ा ने एक्स पर एक तीन मिनट का वीडियो पोस्ट किया.. और लिखा कि बारिश के कारण गरबा रुकने पर लोगों को ‘फुरसत’ मिली है.. इसलिए वे कहते हैं कि बस दो-तीन मिनट फालवो.. सुनो कि हमारे एक पुराने गरबे में सभी लिंगों के लिए समान राजनीति का कैसा अल्ट्रा-मॉडर्न मैसेज दिया गया है.. वीडियो का मुख्य फोकस गरबा में महिलाओं की ताकत और रिश्तों की स्वतंत्रता पर है..
जय वसावड़ा कहते हैं कि कुछ आधे-अधूरे मन वाले लोग आजकल बैठकर शोर मचाने में माहिर हो गए हैं.. लोगों को क्या पहनना चाहिए? पति-पत्नी को सार्वजनिक रूप से प्यार करना चाहिए या नहीं? त्योहार कैसे मनाएं? कैसे नाचें?” वे जोर देकर कहते हैं कि सनातन हिंदू धर्म में किसी ऋषि या मठाधीश को यह जिम्मेदारी नहीं दी गई.. कि वे दूसरों को बताएं कि ‘क्या मानना चाहिए.. फिर जिन लोगों ने उपनिषद या संस्कृत ग्रंथ पढ़े या देखे भी नहीं.. वे तालिबान के नकलची बन गए हैं.. यह बयान वीडियो की सबसे तीखी टिप्पणी है.. वे आगे कहते हैं कि तालिबान बने लोगों के लिए मानो उनकी अपनी मर्यादाएं ही देश में कानून की बजाय नियम हैं.. वे हुक्म से तालिबान के नकलची बन गए हैं..
वीडियो में जय वसावड़ा गरबा को शक्ति की ‘असली धारदार खुमारी’ बताते हैं.. वे एक पुराने गरबे का उदाहरण देते हैं.. जहां महिलाएं पुरुषों को ‘सहारा’ देती नजर आती हैं.. जो फेमिनिज्म का प्रतीक है.. यह न सिर्फ नाच है, बल्कि रिश्तों की मजबूती का संदेश है.. वीडियो 168 सेकंड लंबा है.. यह बयान वडोदरा की घटना के ठीक दो दिन बाद आया.. जब सोशल मीडिया पर महिलाओं के कपड़ों और व्यवहार पर ट्रोलिंग तेज हो गई थी..
आपको बता दें कि विवाद की शुरुआत 26 सितंबर को वडोदरा के यूनाइटेड वे गरबा ग्राउंड्स में हुई.. एक ऑस्ट्रेलिया से आए एनआरआई दंपति गरबा नाच रहे थे.. वीडियो में पुरुष साथी महिला को उठाकर होठों पर चुंबन देता दिखा.. यह क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.. और लोगों ने इसे ‘अनुचित’ बताकर आलोचना की.. आयोजकों ने दंपति को माफी मांगने को कहा.. जिसके बाद वे ऑस्ट्रेलिया लौट गए..
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार दंपति ने 29 सितंबर को औपचारिक माफी जारी की.. हमने अनजाने में संस्कृति का अपमान किया.. हम गरबा का सम्मान करते हैं.. लाइवमिंट ने बताया कि वीडियो के बाद आयोजकों पर एफआईआर का दबाव बना.. लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.. वहीं कुछ ने इसे ‘पश्चिमी संस्कृति का घुसपैठ’ कहा.. आयोजकों का बयान है कि यह हमारे आयोजन की मर्यादा के खिलाफ था.. हम पारंपरिक मूल्यों का पालन करते हैं.. गुल्टे की रिपोर्ट कहती है कि दंपति ने नाच के जोश में ऐसा किया.. लेकिन ट्रोलिंग से डरकर देश छोड़ दिया.. इंडिया टुडे ने लिखा कि इंटरनेट यूजर्स महिलाओं के कपड़ों पर टिप्पणियों से ‘फ्यूरियस’ हो गए..
वहीं यह घटना अकेली नहीं है.. गुजरात में नवरात्रि के दौरान ‘ड्रेस कोड’ लागू करने के प्रयास बढ़े हैं.. कुछ आयोजकों ने ‘शॉर्ट चोली’ या ‘टाइट चनिया’ पर रोक लगाई.. 2024 में अहमदाबाद के एक गरबा में महिलाओं के कपड़ों की जांच की खबरें आईं.. ये घटनाएं नैतिक पुलिसिंग का रूप ले रही हैं.. जहां स्वयंसेवक या भीड़ दूसरों के निजी व्यवहार पर सवाल उठाती है..
नैतिक पुलिसिंग कोई नई समस्या नहीं है.. भारत में यह 1990 के दशक से चर्चा में है.. गुजरात में गरबा को लेकर 2010 से विवाद होते रहे है.. 2023 में यूनेस्को ने गरबा को ‘इंटैंजिबल कल्चरल हेरिटेज’ घोषित किया.. जो समानता और सामाजिक एकता का प्रतीक है.. लेकिन कुछ समूह इसे ‘पश्चिमी प्रभाव’ बता रहे हैं.. जय वसावड़ा के पुराने ट्वीट्स से पता चलता है कि वे लंबे समय से इस मुद्दे पर बोलते रहे.. 2022 में उन्होंने कहा कि लोग माइक्रोफोन से लेकर डिजिटल बैनर तक वेस्टर्न चीजों का इस्तेमाल करते हैं.. लेकिन गरबा में रोमांस पर एलर्जी क्यों.. वे तालिबान की तुलना कर चुके हैं.. उनकी किताबों और कॉलम्स में सांस्कृतिक उदारता पर जोर है..
भारत के अन्य हिस्सों में भी ऐसा होता है.. मुंबई में वेलेंटाइन डे पर ‘लव पुलिस’ की घटनाएं, या कर्नाटक में हिजाब विवाद का मामला हो.. विशेषज्ञ कहते हैं कि यह धार्मिक कट्टरता और सोशल मीडिया ट्रोलिंग का मिला जुला रूप है.. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो बिना संदर्भ के तेजी से फैलते हैं.. जय वसावड़ा गुजराती भाषा के प्रमुख लेखक, वक्ता और स्तंभकार हैं.. भावनगर में जन्मे और गोंडल में पले-बढ़े, वे सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी से पढ़े.. 1996 से वे गुजरात समाचार में कॉलम लिखते हैं.. उनकी किताबें ‘जेएसके’ और ‘स्पेक्ट्रोमीटर’, गुजराती पाठकों में लोकप्रिय हैं..
विकिवांड के अनुसार, जय वसावड़ा प्रगतिशील विचारों के लिए जाने जाते हैं.. वे गुजराती फिल्मों में काम कर चुके हैं.. और विश्वविद्यालयों में गेस्ट लेक्चर देते हैं.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक होने के बावजूद.. वे मोरारी बापू जैसे राम कथाकारों का सम्मान करते हैं.. गुजराती भाषा पर उनकी गहरी समझ है.. फेसबुक प्रोफाइल बताती है कि वे 25 साल से कॉलम लिख रहे हैं.. उनकी पहचान एक ऐसे लेखक की है जो परंपरा और आधुनिकता का संतुलन साधते हैं.. 2019 के टेडएक्स टॉक में उन्होंने कहा कि यूनिवर्स मेरी यूनिवर्सिटी है.. गुजरात लिटरेचर फेस्टिवल में वे स्पीकर रह चुके हैं..
जय वसावड़ा के वीडियो में चोली शब्द पर खास चर्चा है.. वे कहते हैं कि चनिया शब्द पैरों में पहने जाने वाले चरण या पांव से बना है.. लेकिन चोली, यह भी एक खास तरह का सामान्य ज्ञान की रोचकता का विषय है.. जब जिज्ञासा जगी है.. तो शोध होता है और फिर ऐसे ही देखने, सोचने-समझने से एक अभिनव भारत का निर्माण होता है..
विकिपीडिया के अनुसार चोली प्राचीन ‘स्तनपट्ट’ से विकसित हुई.. संस्कृत शब्द ‘चोलिका’ से आया.. जो पहली शताब्दी ईस्वी में उत्तरिया (ऊपरी वस्त्र) का रूप था.. गुजरात और राजस्थान की लोक परंपरा में चनिया-चोली नवरात्रि का प्रतीक है.. पर्नियास पॉपअप शॉप के अनुसार, यह स्त्रीत्व और फ्लेयर का प्रतीक है.. वहीं नव्या बाय निराली की रिपोर्ट कहती है कि यह दैनिक जीवन से जुड़ा है.. जर्नी ऑफ ऑब्जेक्ट्स के मुताबिक, चोली अनसिले हुए कपड़े से सिले हुए ब्लाउज बनी.. फेसबुक पोस्ट में रावमंगो संजय गर्ग कहते हैं कि यह स्टनपट्ट से विकसित हुई.. टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, चनिया-चोली गुजराती लोक परंपरा का हिस्सा है..
जय वसावड़ा कहते हैं कि क्या संस्कृति के नाम पर सड़ी-गली सलाह देने वालों को भारत की वास्तविक विरासत का कोई ज्ञान है.. वे चोली को जिज्ञासा का प्रतीक बताते हैं.. जो छोटी सोच वालों को महाशक्ति भारत बनाने से रोकती है.. जय वसावड़ा सही कहते हैं कि सनातन में कोई ‘मोरल पुलिस’ नहीं.. उपनिषद स्वतंत्र चिंतन सिखाते हैं.. खजुराहो मंदिरों में कामुक मूर्तियां जीवन का उत्सव दिखाती हैं.. गरबा कृष्ण-राधा के रोमांस से जुड़ा है.. यूनेस्को की मान्यता इसे जेंडर इक्वालिटी का प्रतीक बताती है..
जिसको लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि नैतिक पुलिसिंग धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या है.. यह तालिबान जैसी कट्टरता लाती है.. जो हिंदू धर्म की उदारता के विपरीत है.. जय वसावड़ा के शब्दों में दूसरों का मालिक बनने की चाहत रखने वाले छोटी सोच वाले लोग भारत को महाशक्ति नहीं बना सकते.. गुजरात में 2024 नवरात्रि में सूरत के गरबा में ‘ड्रेस कोड’ विवाद हुआ.. सोशल मीडिया पर महिलाओं के वीडियो ट्रोल हुए.. राष्ट्रीय स्तर पर 2023 में बेंगलुरु में पब कल्चर पर हमले हुए.. ये घटनाएं महिलाओं की स्वतंत्रता को प्रभावित करती हैं..



