क्या रिहा होंगे वांगचुक!

  • गीतांजलि ने पति की गिरफ्तारी को दी चुनौती
  • वांगचुक की गिरफ्तारी का मामला ‘सुप्रीम’ चौखट पर
  • वांगचुक की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की हैबियस कार्पस याचिका

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। लद्दाख की बर्फीली घाटियों से उठी सोनम वांगचुक की आवाज अब सुप्रीम कोर्ट की सीढिय़ों तक पहुंच चुकी है। हिंसा के बाद एनएसए में गिरफ्तार सोनम वांगचुक की पत्नी ने उनकी रिहाई के वास्ते सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की है। यह कोई आम मामला नहीं है बल्कि लोकतंत्र अधिकार और असहमति की लड़ाई का वह मोड़ है जहां कानून, सरकार और जनता आमने-सामने खड़े दिखाई दे रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण योद्धा सोनम वांगचुक जिन्हें कभी वैश्विक स्तर पर आइस स्टूपा मैन कहकर सराहा गया आज राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की जंजीरों में जकड़े पड़े हैं। सरकार उन्हें देशद्रोही कह रही है जबकि हजारों लोग उन्हें अपनी जमीन अपनी पहचान और अपनी आवाज का पहरेदार बता रहे हैं।
सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल कर दी है। याचिका का मतलब साफ है कि हमें बताओ कि मेरे पति को किस अधिकार से कैद किया गया है। अगर कोई ठोस सबूत नहीं है तो उन्हें तुरंत रिहा करो। यहां सवाल सिर्फ एक व्यक्ति की आजादी का नहीं है बल्कि संविधान की उस आत्मा का है जो नागरिकों को अधिकार देती है कि वे सत्ता से सवाल पूछ सकें। अगर कोर्ट इस गिरफ्तारी को असंवैधानिक मानता है तो यह सरकार के लिए एक करारा झटका होगा। इस पूरे मामले ने देशभर में तूफान खड़ा कर दिया है। लेह-लद्दाख की गलियों में लोग कह रहे हैं कि हमने सिर्फ राज्य का हक मांगा और हमें आतंकवादी बता दिया गया। वहीं सरकार का दावा है कि वांगचुक और उनके संगठन के विदेशी लिंक हैं उन्होंने पाकिस्तान तक से संपर्क रखा है और जनता को भड़काने वाले भाषण दिए हैं। सवाल यह है कि सच कौन बोल रहा है? और सच की पहचान करेगा कौन । सुप्रीम कोर्ट आजादी और सुरक्षा की इस खींचतान में किस तरफ झुकेगा, यही देशभर की निगाहों का सबसे बड़ा सवाल है। अगर वांगचुक रिहा होते हैं, तो लेह से दिल्ली तक विरोध प्रदर्शनों में और उबाल आ सकता है। लेकिन अगर उन्हें कैद में ही रखा गया तो यह मामला भारत में असहमति और लोकतांत्रिक अधिकारों के गला घोंटने का प्रतीक बन सकता है। अदालत के भीतर जो फैसला होगा, वह सिर्फ वांगचुक के जीवन का नहीं, बल्कि आने वाले वक्त में असहमति रखने वाले हर भारतीय नागरिक की तकदीर का फैसला करेगा।

लेह हिंसा पर न्यायिक जांच के आदेश

लेह में 24 सितंबर को हुई हिंसा की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हुए थे। अधिकारियों ने बताया कि यह जांच चार सप्ताह के भीतर पूरी की जाएगी। लेह के उपायुक्त ने इस मामले में आदेश जारी करते हुए नुब्रा उपमंडल मजिस्ट्रेट मुकुल बेनीवाल को जांच अधिकारी नियुक्त किया है। बेनीवाल ने जनता से अपील की है कि यदि किसी के पास घटना से संबंधित कोई जानकारी है तो वे 4 अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक कार्यालय समय के दौरान उपायुक्त कार्यालय लेह के कॉन्फ्रें स हॉल में उनसे संपर्क कर सकते हैं। उन्होंने कहा, सभी संबंधित लोगों से निवेदन है कि निष्पक्ष और पारदर्शी जांच सुनिश्चित करने के लिए सहयोग प्रदान करें।

अनुच्छेद 32 के तहत अपनी याचिका दायर की

गीतांजलि आंगमो ने दो अक्टूबर को शीर्ष अदालत में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपनी याचिका दायर की है। आंगमो ने सोनम वांगचुक के खिलाफ एनएसए कानून के तहत कार्रवाई पर भी सवाल उठाए हैं। लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़प के बाद लेह में भड़की हिंसा के कुछ दिनों बाद सोनम वांगचुक को हिरासत में लिया गया था। आंगमो ने वकील सर्वम रीतम खरे के माध्यम से दायर अपनी याचिका में वांगचुक की हिरासत को चुनौती दी है और उनकी तत्काल रिहाई का अनुरोध किया है। याचिका में वांगचुक पर रासुका लगाने के फैसले पर भी सवाल उठाए गए हैं। आंगमो ने आरोप लगाया कि उन्हें अभी तक हिरासत आदेश की प्रति नहीं मिली है, जो नियमों का उल्लंघन है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि उनका अभी तक वांगचुक से कोई संपर्क नहीं हो पाया है।

गीतांजलि ने साजिश के लगाए थे आरोप

इससे पहले गीतांजलि जे. आंगमो ने लद्दाख के पुलिस महानिदेशक के बयानों को झूठा और गढ़ी गई कहानी बताते हुए कहा था कि यह एक सोची-समझी साजिश है, जिसके जरिए किसी को फंसाकर मनमर्जी करने की कोशिश हो रही है। गीतांजलि ने कहा था, हम डीजीपी के बयान की कड़ी निंदा करते हैं। सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि पूरा लद्दाख इन आरोपों को खारिज करता है। ये एक बनावटी कहानी है, ताकि किसी को बलि का बकरा बनाया जा सके और वे जो चाहें वो कर सकें। उन्होंने सवाल उठाया था कि सीआरपीएफ को गोली चलाने का आदेश किसने दिया? अपने ही नागरिकों पर गोली कौन चलाता है? खासकर वहां, जहां कभी हिंसक प्रदर्शन नहीं हुए। गीतांजलि का कहना था कि सोनम वांगचुक का इस पूरी घटना से कोई लेना-देना नहीं था। वे तो उस समय किसी और जगह शांतिपूर्वक भूख हड़ताल पर बैठे थे। वे वहां मौजूद ही नहीं थे, तो वे किसी को कैसे उकसा सकते हैं?

कर्फ्यू  में आठ घंटे दी गई ढील

लेह में स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है। प्रशासन की ओर से कर्फ्यू  में कुल आठ घंटे ढील दी गई थी। सुबह 10 बजे से लेकर शाम छह बजे तक बाजार खुले। सड़कों और दुकानों पर चहल-पहल रही। स्कूल-कॉलेज बंद रहे। इंटरनेट सेवा भी फिलहाल कल तक के लिए बंद की गई है। उधर, लद्दाखी छात्रों के देश के अलग-अलग राज्यों में बने संगठनों ने गृह मंत्रालय को ज्ञापन भेजकर लेह हिंसा की न्यायिक जांच की मांग उठाई और मारे गए प्रदर्शनकारियों के परिवारों को उचित मुआवजे की मांग की।

लेह में अचानक भड़की थी हिंसा

अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन किया गया। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांटा गया। इसमें जम्मू-कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। वहीं, लद्दाख को बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। इस बदलाव के तहत जम्मू कश्मीर में पिछले साल नई विधानसभा का भी गठन हो गया। वहीं, दूसरी ओर राज्य पुनर्गठन के साथ ही लद्दाख में इस केंद्र शासित प्रदेश को छठी अनुसूची में शामिल करने और इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठने लगी। इसे लेकर अलग-अलग समय पर प्रदर्शन हुए। इन्हीं मांगो को लेकर चल रहे ताजा प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी।

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