आसाराम फिर आया जेल से बाहर, मिली 6 महीने की लंबी जमानत
बलात्कार के मामलों में आजीवन उम्रकैद की सजा काट रहे आसाराम को गुजरात हाईकोर्ट ने छह महीने की लंबी अंतरिम जमानत दी है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में जेल में बंद स्वयंभू संत आसाराम बापू को छह महीने की जमानत दे दी है.. यह फैसला स्वास्थ्य संबंधी आधार पर लिया गया है.. जहां आसाराम की उम्र 86 वर्ष होने.. और हृदय संबंधी बीमारियों का हवाला दिया गया.. बता दें जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद आसाराम अब फिर से बाहर आ सकेंगे.. यह जमानत जोधपुर कोर्ट के पिछले फैसले पर आधारित है.. जहां उन्हें पहले भी चिकित्सा कारणों से राहत मिल चुकी है.. कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर अपील की सुनवाई में देरी हुई.. तो आसाराम दोबारा जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं..
आसाराम गुजरात के मोतापुर गांव में पैदा हुए.. और उन्होंने कम उम्र में ही आध्यात्मिक जीवन अपनाया.. और 1970 के दशक में गुजरात के संतलाल आश्रम से अपनी यात्रा शुरू की.. धीरे-धीरे वे एक बड़े धार्मिक संगठन के प्रमुख बन गए.. उनके आश्रम देशभर में फैले हुए हैं.. जिनमें गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में प्रमुख केंद्र हैं.. अनुमान है कि उनके अनुयायी लाखों में हैं.. जो उन्हें एक प्रभावशाली धार्मिक नेता बनाते हैं..
लेकिन आसाराम का नाम विवादों से भी जुड़ा रहा.. 2000 के दशक से ही उन पर कई आरोप लगते रहे.. जैसे अवैध कब्जे, हिंसा के मामले और महिलाओं के शोषण के दावे.. सबसे बड़ा झटका 2013 में लगा.. जब एक नाबालिग लड़की ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया.. यह घटना जोधपुर के निकट मानसरामार आश्रम में 15 अगस्त 2013 को हुई थी.. पीड़िता उस समय 16 वर्ष की थी.. उसने आरोप लगाया कि आसाराम ने उसे ‘चरित्र सुधार’ के नाम पर बुलाया.. और यौन शोषण किया.. इस शिकायत के बाद पुलिस ने आसाराम को गिरफ्तार कर लिया..
जोधपुर की विशेष अदालत ने 25 अप्रैल 2018 को आसाराम को दोषी ठहरायायय और भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO एक्ट के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई.. कोर्ट ने कहा कि पीड़िता का बयान मजबूत है.. और सबूतों से अपराध सिद्ध होता है.. इस फैसले के खिलाफ आसाराम ने राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की.. लेकिन वहां भी राहत नहीं मिली.. सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया.. 2018 से वे जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं..
इसके अलावा आसाराम पर अन्य मामले भी चल रहे हैं.. 2014 में इंदौर में एक युवती ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया.. लेकिन वह मामला अभी अदालत में लंबित है.. इन सभी विवादों ने आसाराम के साम्राज्य को झकझोर दिया.. उनके कई आश्रम बंद हो गए.. और अनुयायी संख्या में कमी आई.. फिर भी उनके समर्थक उन्हें निर्दोष मानते हैं.. और कोर्ट के फैसले को साजिश बताते हैं..
आसाराम की जमानत याचिका गुजरात हाईकोर्ट में इसलिए दाखिल हुई.. क्योंकि वे गुजरात के मूल निवासी हैं.. और उनका मुख्य आश्रम अहमदाबाद के पास है.. वकीलों का तर्क था कि स्वास्थ्य कारणों से जेल में रहना उनके लिए घातक साबित हो सकता है.. याचिका में जोधपुर कोर्ट के 2024 के एक फैसले का हवाला दिया गया.. जिसमें आसाराम को छह महीने की अंतरिम जमानत दी गई थी.. उस समय भी स्वास्थ्य ही मुख्य आधार था..
आपको बता दें कि गुजरात हाईकोर्ट की बेंच.. जिसमें जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस सोहन पेरेस शामिल थे.. उन्होंने 5 नवंबर 2025 को सुनवाई की.. आसाराम की ओर से वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी के पुत्र महेश जेठमलानी ने पैरवी की.. और उन्होंने कहा कि आसाराम 86 वर्ष के हैं.. और उन्हें हृदय रोग, उच्च रक्तचाप.. और डायबिटीज जैसी कई बीमारियां हैं.. जेल में चिकित्सा सुविधाएं अपर्याप्त हैं.. जोधपुर कोर्ट ने पहले ही स्वास्थ्य आधार पर जमानत दी है.. इसलिए यहां अलग फैसला नहीं हो सकता.. वकील ने मेडिकल रिपोर्ट्स पेश कीं.. जिनमें AIIMS जयपुर के डॉक्टरों ने कहा कि आसाराम को विशेष उपचार की जरूरत है..
कोर्ट ने पीड़िता के वकील रेनूका गुप्ता को भी सुनने का मौका दिया.. और उन्होंने विरोध जताया और कहा कि जमानत के दौरान भी आसाराम ने कई जगहों पर यात्रा की.. जैसे अहमदाबाद, जोधपुर और इंदौर.. वे ऋषिकेश से महाराष्ट्र तक घूमे.. अगर स्वास्थ्य इतना खराब है.. तो इतनी यात्रा कैसे संभव.. जोधपुर में आयुर्वेदिक इलाज चल रहा है.. कोई गंभीर शिकायत नहीं.. राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल ने सुझाव दिया कि अगर जोधपुर जेल में सुविधाएं कम हैं.. तो आसाराम को साबरमती सेंट्रल जेल (अहमदाबाद) में शिफ्ट किया जा सकता है.. जहां बेहतर मेडिकल व्यवस्था है..
कोर्ट ने इन तर्कों पर विचार किया.. जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि जोधपुर हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य को आधार बनाकर जमानत दी थी.. हम अलग रुख नहीं अपना सकते.. लेकिन यह जमानत छह महीने की है.. इस दौरान अपील की सुनवाई तेज होनी चाहिए.. अगर देरी हुई, तो नई याचिका दाखिल की जा सकती है.. कोर्ट ने शर्तें भी लगाईं.. आसाराम जमानत पर रहते हुए देश न छोड़ेंगे.. कोर्ट की हर सुनवाई में हाजिर होंगे.. और कोई राजनीतिक या धार्मिक सभा नहीं करेंगे.. राजस्थान सरकार अगर इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देती है.. तो गुजरात सरकार भी वैसा ही कदम उठा सकती है..
जमानत का मुख्य आधार आसाराम का स्वास्थ्य है.. उनके वकीलों ने पेश की गई रिपोर्ट्स के अनुसार.. आसाराम को 2018 से जेल में कई स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं.. हृदय रोग के कारण उन्हें एंजियोप्लास्टी की जरूरत बताई गई.. 2023 में राजस्थान हाईकोर्ट ने उन्हें मेडिकल ग्राउज पर 10 दिनों की जमानत दी थी.. जो बाद में बढ़ाई गई.. जोधपुर कोर्ट ने 2024 में छह महीने की अंतरिम जमानत दी.. जिसमें कहा गया कि जेल में वेंटिलेटर जैसी सुविधाएं नहीं हैं..
लेकिन पीड़िता के पक्ष से सवाल उठे हैं.. उनके वकील ने कहा कि जमानत के दौरान आसाराम ने अस्पताल में लंबा इलाज नहीं लिया.. वे आश्रमों में रहकर आयुर्वेदिक दवाओं पर निर्भर रहे.. एक रिपोर्ट में कहा गया कि 2024 की जमानत में वे गुजरात लौटे.. लेकिन सिर्फ दो हफ्ते अस्पताल में रहे.. बाकी समय आश्रम में बिताया.. यह दावा विश्वसनीय स्रोतों जैसे ‘द हिंदू’ और ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट्स से सत्यापित है..
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि स्वास्थ्य आधार पर बुजुर्ग कैदियों के लिए जमानत देना आम है.. सुप्रीम कोर्ट के 2022 के एक फैसले (अर्नब गोस्वामी केस) में कहा गया कि मानवाधिकारों के तहत उपचार का अधिकार मौलिक है.. लेकिन POCSO जैसे संवेदनशील मामलों में सतर्कता बरतनी चाहिए.. आसाराम के समर्थकों का कहना है कि यह फैसला निर्दोष को न्याय दिलाने वाला है.. उनके संगठन ‘आसाराम बापू मुक्ति आंदोलन’ ने बयान जारी कर कहा कि बापूजी निर्दोष हैं.. साजिश का शिकार बने.. स्वास्थ्य बिगड़ रहा था.. कोर्ट ने इंसानियत दिखाई..
दूसरी ओर पीड़िता के परिवार और महिला अधिकार संगठनों ने विरोध जताया.. राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा कि ऐसे फैसलों से पीड़िताओं का मनोबल टूटता है.. पीड़िता की मां ने मीडिया से कहा कि हमारा संघर्ष जारी रहेगा.. जमानत मिलना अपराधी को बढ़ावा देता है.. वकील रेनूका गुप्ता ने बताया कि वे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.. राज्य सरकारें भी सतर्क हैं.. राजस्थान सरकार ने कहा कि वे फैसले की समीक्षा करेंगे.. गुजरात सरकार ने तटस्थ रुख अपनाया.. लेकिन साबरमती जेल ट्रांसफर का सुझाव दिया.. यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच सकता है.. जहां 2025 में ही कई जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है..
आपको बता दें कि भारतीय कानून में जमानत का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) से जुड़ा है.. CrPC की धारा 437 और 439 के तहत मजिस्ट्रेट या हाईकोर्ट जमानत दे सकते हैं.. गंभीर अपराधों में, जैसे बलात्कार, जमानत कठिन होती है.. लेकिन स्वास्थ्य, उम्र या सुनवाई में देरी जैसे आधारों पर राहत मिल सकती है.. आसाराम के मामले में जोधपुर कोर्ट का 2024 का फैसला उदाहरण है.. कोर्ट ने कहा कि कैदी का स्वास्थ्य सर्वोपरि है.. गुजरात HC ने इसे फॉलो किया.. लेकिन शर्तें सख्त हैं.. अगर उल्लंघन हुआ जमानत रद्द हो सकती है.. सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले (कटिहार केस) में कहा गया कि जमानत अस्थायी है, सजा स्थायी..



