Bihar के बाद पश्चिम बंगाल में वोट चोरी की तैयारी में BJP, ज्ञानेश कुमार ने शुरू कर दिया खेला!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये बयान साफ दिखाता है कि बिहार में भारी जीत के बाद अब बंगाल की बारी है....बिहार में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी की नज़र अब साफ़ तौर पर बंगाल पर टिक चुकी है…

4पीएम न्यूज नेटवर्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये बयान साफ दिखाता है कि बिहार में भारी जीत के बाद अब बंगाल की बारी है….बिहार में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी की नज़र अब साफ़ तौर पर बंगाल पर टिक चुकी है…प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये बयान कि गंगा नदी बिहार से बंगाल की ओर जाती है…दरअसल एक साफ राजनीतिक संकेत था कि अब अगला बड़ा संग्राम उसी दिशा में होने वाला है…

दोस्तों, दिलचस्प बात ये है कि बिहार में बीजेपी के साथ खड़े पत्रकार अभी भी बिहार में डेरा जमाए हुए हैं और जमाएँ भी क्यों न…बीजेपी ने जिस तरह का परिणाम निकाला…उसकी कल्पना शायद खुद उन पत्रकारों और एग्जिट पोल करने वालों ने भी नहीं की थी…सारे सर्वे तो पहले ही पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति के आगे हथियार डाल चुके थे…लेकिन असली नतीजों ने ये साफ कर दिया कि सारे के सारे आकंड़ों का असली गणित इन दोनों नेताओं के दिमाग में ही कैद रहता है…

कई सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी मामूली अंतर से पीछे छोड़ दी गई…ये भी अब कई राजनीतिक विश्लेषकों की नज़र में जरूरी हार मानी जा रही है…..क्योंकि अगर बीजेपी 101 में 101 सीटें जीत लेती…..तो विपक्ष की वोट चोरी और चुनावी हेरफेर जैसी बातें भी लोगों को सच लगने लगतीं……..दरअसल, खेल में कमजोर खिलाड़ी को बने रहने दिया जाता है….ताकि खेल का रोमांच बना रहे….बिहार में भी विपक्ष को बस इतना ही स्पेस दिया गया कि लोकतंत्र का भ्रम बना रहे…

तेजस्वी यादव की जीत इसी भ्रम का हिस्सा लगती है…जहां राघोपुर में उन्हें जीतने दिया गया….क्योंकि अगर तेजस्वी भी हार जाते…तो आरजेडी का गुस्सा संभालना मुश्किल हो जाता…..लेकिन, बिहार अब लगभग उसी स्थिति में पहुँच चुका है…जिसमें कई सालों से केंद्र की राजनीति है…जहाँ विपक्ष मौजूद तो है…..लेकिन बेअसर…….अब चाहे बिजली और ऊर्जा की योजनाएँ हों या बॉर्डर वाले इलाकों पर फैसले…बीजेपी के रास्ते में अब कोई बड़ी रुकावट नहीं बची है….

तमाम पत्रकार और विश्लेषक इस गहराई को समझ पाने में सफल रहे हैं या नहीं…..ये अलग सवाल है…लेकिन पीएम मोदी और शाह की राजनीति का जादू आज भी वैसा ही है……रहस्यमयी, बिना बोले समझ आने वाला और अचानक चौंका देने वाला…इसी वजह से हर चुनाव में बीजेपी की जीत लगभग तय मानी जाने लगी है………बता दें कि 10-12 साल पहले चुनावों का विश्लेषण मुद्दों, उम्मीदवारों के काम, पुरानी सरकार के खिलाफ गुस्से, गठबंधनों और लोगों के असली सवालों पर आधारित होता था…लेकिन, आज हालत ये हो चुकी है कि पूरा चुनावी विश्लेषण पीएम मोदी की रैलियों के इर्द-गिर्द घूमता है……कहाँ भाषण दिया…..कितनी भीड़ आई…किस लाइन पर ताली बजी, बस इसना ही……..लेकिन एक दौर वो था जब पत्रकार पूछते थे कि कौन सा उम्मीदवार कितना काम करता है…वहीं आज पत्रकार पूछते हैं कि किस पार्टी का वार रूम कितना एक्टिव है…

सबसे मज़ेदार बात तो ये है कि केवल बीजेपी-समर्थक पत्रकार ही नहीं……बल्कि वो लोग भी जो खुद को निष्पक्ष बताते थे…उन्होंने भी नतीजे आते ही ऐसा पाला बदला कि शायद पीएम मोदी कपड़े भी इतनी तेजी से नहीं बदलते होंगे…….बिहार चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस को सीखें दी जा रही हैं कि संगठन कमजोर है…राहुल गंभीर नहीं हैं….सामाजिक न्याय के तरीके असल में उतना फायदा नहीं दे पाए…लेकिन अगर चुनाव जीत जाती तो यही पत्रकार इंडिया गठबंधन की जीत होने पर इन्हीं बातों को उपलब्धि बता देते………..बहरहाल, नतीजे चाहे जैसे हों…..विपक्ष को स्वीकार करना पड़ता है…लेकिन अब सवाल ये है कि क्या सचमुच विपक्ष के लिए अब चुनाव जीतना असंभव हो चुका है?…बिहार में एंटी-इंकंबेंसी क्यों नहीं चली?…क्या अब लोकतंत्र, संविधान, सरोकार और विश्वसनीयता…इन शब्दों की साख खत्म हो चुकी है?….और सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या बिहार में कुछ ऐसा हुआ जिसकी चर्चा से सब बच रहे हैं?….

राहुल गांधी ने नतीजों को चौंकाने वाला कहा….उन्होंने स्पष्ट लिखा कि बिहार का ये परिणाम वाकई चौंकाने वाला है….हम एक ऐसे चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सके, जो शुरू से ही निष्पक्ष नहीं था…ये लड़ाई संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की है….कांग्रेस पार्टी और INDIA गठबंधन इस परिणाम की गहराई से समीक्षा करेंगे और लोकतंत्र को बचाने के अपने प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाएंगे………….लेकिन सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं…पूरे विपक्ष ने इन परिणामों पर हैरानी जताई है….ऐसे में क्या ये मान लिया जाए कि राहुल गांधी, एम के स्टालिन, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव….ये सभी अनुभवी नेता एक साथ जमीनी हकीकत को समझने में असफल हो गए?….ये बात तर्क से परे है…कोई इसे आंख मूंदकर स्वीकार कर ले तो मानिए कि वो जानबूझकर वास्तविकता से नजरें फेर रहा है….

क्योंकि, महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह बिहार में भी विपक्ष को पूरी उम्मीद थी कि नतीजे अलग होंगे…लेकिन तीनों राज्यों में लगभग एक जैसा पैटर्न देखने को मिला…….लोकतंत्र में इतनी एकसमानता महज इत्तफाक नहीं हो सकती…इसके लिए कथित योजना होती है……वोटर लिस्ट में कटौती, अचानक से नाम जोड़ना, महिला मतदाताओं को आर्थिक प्रलोभन….ये सभी कारक विपक्ष की पकड़ से बाहर रहे……चूंकि लोकसभा चुनावों में बीजेपी को कड़ी चुनौती मिली थी….इसलिए राज्यों में नया मॉडल लागू हुआ……और वो मॉडल था…कमजोर होते विपक्ष को आखिरी पल में बैकफुट पर धकेलने वाला मॉडल……..

राहुल गांधी लगातार सबूत दिखा रहे हैं कि वोटर लिस्ट में कैसे भारी गड़बड़ी हुई…..लेकिन गोदी मीडिया ने जश्न का माहौल ऐसा बना दिया गया कि विपक्ष के सवालों की आवाज़ ही डूब गई……अब एक पैटर्न बन चुका है….नतीजे आने के बाद सारा दोष विपक्ष पर डाल दो……कह दो कम मेहनत की…गलत उम्मीदवार चुने…जनता का मूड नहीं समझा…रणनीति कमजोर थी फलाना फलाना…..तेजस्वी ने नौकरी, जीविका दीदी, फैक्ट्री जैसी घोषणाएँ कीं…तो कहा गया….जनता ने भरोसा नहीं किया….लेकिन सवाल ये है कि भरोसा करना किसे था?…विपक्ष सिर्फ घोषणा कर सकता था…..सत्ता में नहीं था…सत्ता में बीजेपी थी…तो क्या उसके काम पर सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए?…

प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की प्राथमिकता अब लगभग पूरी तरह चुनाव प्रबंधन बन चुकी है…देश में बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर है…महंगाई लगातार बढ़ रही है…सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहे हा….पहलगाम और फिर दिल्ली में आतंकी घटनाएँ हुईं……बताया जा रहा है कि इन हमलों की तैयारी महीनों से चल रही थी…..ये सीधा-सीधा आंतरिक सुरक्षा की विफलता है…..लेकिन ऐसे सवालों की जगह अब बची ही कहाँ है….

बिहार में महिलाओं को 10,000 रूपए देने की योजना को मास्टरस्ट्रोक कहा गया…लेकिन वास्तविक सवाल ये होना चाहिए था कि क्या महिला मतदाताओं को इतनी मामूली राशि के बदले अपनी राजनीतिक समझ बदल देनी चाहिए?…नोटबंदी के बाद एकमुश्त धन की कमी ने महिलाओं को आर्थिक रूप से कमजोर किया और उसी कमजोरी का फायदा चुनाव में उठाया गया…ये भाजपा की चुनावी मजबूती तो दिखाता है….लेकिन लोकतंत्र की मजबूती को कमज़ोर करता है…लेकिन इसके साथ ही एक और चिंता की बात ये है कि पूरा मंत्रिमंडल चुनावों में लगा रहता है……पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव दिल्ली की जहर हवा को छोड़ बंगाल की चुनावी मीटिंग में व्यस्त थे….दिल्ली में प्रदूषण मौतें बढ़ा रहा है…..डॉक्टर चेतावनी दे रहे हैं कि लोगों की उम्र 10 साल कम हो रही है….लेकिन मंत्री जी चुनाव प्रचार में घूम रहे हैं….ये आम जनता का दुर्भाग्य नहीं तो क्या है?…..

दोस्तों, बिहार की जीत के तुरंत बाद बंगाल की ओर बढ़ते बीजेपी के कदम ये साफ़ बताते हैं कि अब चुनाव सिर्फ जीतने की प्रक्रिया नहीं रह गई…ये एक राजनीतिक मशीनरी बन चुकी है….जो लगातार राज्यों पर कब्ज़ा करने में जुटी है….लेकिन देश में जिन मुद्दों पर काम चाहिए…जैसे कि महंगाई, बेरोजगारी, प्रदूषण, सुरक्षा….उन पर किसी की प्राथमिकता बची ही नहीं है….न इस ओर कोई ध्यान देना चाहता है….लेकिन अब देखने वाली बात होगी कि हरियाणा, महाराष्ट्र और बिहार के बाद अब अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी क्या BJP यही खेल करेगी?…..क्या वहां भी पूरा खेल मशीनरी का होगा?…और क्या सीएम ममता बनर्जी बीजेपी के इस खेल से पश्चिम बंगाल को बचा पाएंगी या नहीं?…

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