सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने जताई चिंता, कहा- यह बदलाव सिविलाइजेशन ट्रेमर की तरह

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत में कभी भी वृद्धावस्था को गिरावट नहीं, बल्कि उन्नयन माना जाता था और बुजुर्ग सदस्य परिवार तथा संस्कृति में कथानक की अंतरात्मा की भूमिका निभाते थे, लेकिन आधुनिकता के दौर ने इन संरचनाओं को कमजोर कर दिया है.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत में कभी भी वृद्धावस्था को गिरावट नहीं, बल्कि उन्नयन माना जाता था और बुजुर्ग सदस्य परिवार तथा संस्कृति में कथानक की अंतरात्मा की भूमिका निभाते थे, लेकिन आधुनिकता के दौर ने इन संरचनाओं को कमजोर कर दिया है.

देश में बुजुर्गों के उचित देखभाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि देश में पीढ़ियों के बीच कमजोर होते संबंध और बुजुर्गों की देखभाल में कमी सामाजिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा बन रही है. यह सिविलाइजेशन ट्रेमर की तरह है. साथ ही उन्होंने आगाह भी किया कि भारत के सामने उस पुरानी दुनिया को खोने का खतरा बढ़ गया है जिसने समाज में मानवता को बनाए रखा है.

जस्टिस सूर्यकांत ने कल सोमवार को माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम
(Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens, MWPSC Act) पर आयोजित एक स्पेशल सेशन को संबोधित करते हुए कहा कि बुजुर्गों के साथ बढ़ते डिजिटल फ्रॉड, परिजनों द्वारा छोड़े जाने और लंबे केसों में फंसे होने के मामलों में बढ़ोतरी चिंताजनक है. कानून को गरिमा को पुनर्स्थापित करने वाले ढांचे के रूप में काम करना चाहिए. इस दौरान केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार भी मौजूद थे.

देश में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि देश को तेजी से बढ़ते बुजुर्गों की आबादी की भावनात्मक, डिजिटल और सामाजिक चुनौतियों का मुकाबला करना होगा. जल्द ही जस्टिस सूर्यकांत देश के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने जा रहे हैं. उन्होंने कहा, “समृद्धि (Prosperity) ने नजदीकियों (Proximity) की जगह ले ली है. प्रवासन ने काम की नए दुनिया बना दी है, लेकिन पीढ़ियों के बीच के दरवाजे बंद कर दिए हैं.” उन्होंने इस बदलाव को सिविलाइजेशन ट्रेमर (Civilisation Tremor) करार दिया.

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत में कभी भी वृद्धावस्था को गिरावट नहीं, बल्कि उन्नयन माना जाता था और बुजुर्ग सदस्य परिवार तथा संस्कृति में कथानक की अंतरात्मा की भूमिका निभाते थे, लेकिन आधुनिकता के दौर ने इन संरचनाओं को कमजोर कर दिया है. उन्होंने कहा, “हमने नई दुनिया पाई है, लेकिन उस पुरानी दुनिया को खोने का खतरा भी मंडरा रहा है जिसने हमें इंसान बनाए रखा.”

इस दौरान उन्होंने मामले का जिक्र किया जिसमें एक विधवा करीब 50 साल तक भरण-पोषण के लिए लड़ती रही. फिर सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत उसकी संपत्ति बहाल की. उन्होंने यह भी कहा, “न्याय केवल तकनीकी रूप से सही होने से पूरा नहीं होता. गरिमा का अधिकार उम्र के साथ खत्म नहीं होता.”

उन्होंने युवाओं से बुजुर्गों के साथ खड़े होने की बात करते हुए कहा, “पुराने और नए के बीच ब्रिज युवाओं से ही बनता है.” उन्होंने युवाओं से अनुरोध किया कि वे डिजिटल लेन-देन में बुजुर्गों की मदद करें, साथ दें और सुनिश्चित करें कि कोई भी बुजुर्ग ‘लाइन में अकेला न खड़ा रहे.’ देश में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. कार्यक्रम में मौजूद सामाजिक न्याय सचिव अमित यादव ने बताया कि भारत एक बड़े जनसांख्यिकीय परिवर्तन के दौर में है. देश में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है. वर्तमान में 10.38 करोड़ से बढ़कर 2050 तक 34 करोड़ हो जाएगी.

Related Articles

Back to top button