बिहार चुनाव: पैसे बाँटने पर BJP मार्गदर्शक मंडल की नाराजगी, ईसी के खिलाफ FIR
दोस्तों बिहार चुनाव को एनडीए के पक्ष में पलटने में सबसे ज्यादा अगर कोई चीज इफेक्टिव रही तो वो बीच चुनाव महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए ट्रॉसफर किए जाने की घटना थी।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों, बिहार चुनाव में वोट के बदले नोट का खेल पीएम साहब और इलेक्शन चीफ ज्ञानेश कुमार को भारी पड़ गया है। बड़ी खबर निकल कर सामने आई है कि बीजेपी में ही पीएम साहब के विरोध शुरु हो गया है और सरेआम मंचों से मार्गदर्शक मंडल ने मोर्चा खोल दिया है तो वहीं दूसरी ओर बिहार चुनाव और एसआईआर को लेकर ज्ञानेश जी की मुसीबत कम होने का नाम ही नहीं ले रही है।
एक ओर जहां पर ज्ञानेश जी के विभाग पर हत्या का केस दर्ज हो गया है और जेल जाने की नौबत आ चुकी है। ऐसे में पीएम साहब और ज्ञानेश जी बुरी तरह से फंस गए हैं। कैसे पीएम साहब की पार्टी में उन्हीं के खिलाफ विद्रोह शुरु हो गय है और कहां और कैसे ज्ञानेश जी के विभाग को जेल जाने की नौबत आ गई है, ये हम आपको आगे अपनी इस आठ मिनट की रिपोर्ट में बताने वाले हैं।
दोस्तों बिहार चुनाव को एनडीए के पक्ष में पलटने में सबसे ज्यादा अगर कोई चीज इफेक्टिव रही तो वो बीच चुनाव महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए ट्रॉसफर किए जाने की घटना थी। एक औसत अनुमान के मुताबिक एक विधान सभा में करीब 500 करोड़ रुपए के आसपास खर्च किए गए। दावा किया जाता है कि इसका मकसद महिलआों को रोजगारपरक बनाना है लेकिन अगर बिहार घूमने निकल जाएं तो एक भी महिला ने इस 10 हजार रुपयों से कोई रोजगार नहीं किया और सरकार ने भी अब तक इसकी सुधि नहीं ली है क्योंकि पीएम साहब और नीतीश बाबू का मकसद तो कुछ और ही था और वो इस मकसद सेे प्रचंड बहुमत पाने में सफल हो गए हैं
लेकिन जो बिहार के विकास को 14 हजार करोड़ रुपया था वो चुनाव में वोटर्स को लुभाने में खर्च हो चुका है और अब उस दस हजार की कोई पूछताछ करने वाला नहीं है लेकिन विपक्ष इसको लगातार मुद्दा बनाए हुए है और ज्ञानेश कुमार बल्कि पीएम साहब और उनके चाणक्य जी को सवालों में घेर रहा है। लेकिन इस बीच एक बड़ी खबर आई कि विपक्ष ही नहीं अब बीजेपी में भी इसको लेकर विद्रोह के स्वर उठने शुरु हो गए हैं और कभी जिन नेताओं को बीजेपी से जानबूझकर किनारे करते हुए मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया था, अब मौका मिलते ही मार्गदर्शक मंडल ने मोर्चा खोल दिया है।
दोस्तों खबर की हेडलाइन से ही साफ है बिहार चुनाव में जो कुछ हुआ, उससे मार्गदर्शक मंडल के नेता मुरली मनोहर जोशी बिल्कुल खुश नहीं है। दरसअल मुरली मनोहर जोशी कल दिल्ली में पूर्व चुनाव आयुक्त जी कृष्णमूर्ति के 91 वें जन्म दिवस के अवसर पर बोल रहे थे और उन्होंने आर्थिक और समाजिक तानेबाने पर बहुत लंबा लेचर दिया। उन्होंने अपने भाषण के दौरान कहा है कि… पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि संविधान हमें न्याय का अधिकार देता है। यह अधिकार हमें आर्थिक और राजनीतिक न्याय के लिए भी मिला है।
उन्होंने कहा, राजनीतिक अधिकार की बात करें तो इसके लिए हमारे पास वोट का हक है। लेकिन इस वोट के अधिकार का तब तक अच्छे से इस्तेमाल नहीं हो सकता, जब तक कि आर्थिक न्याय न मिले। भीमराव आंबेडकर ने भी इस पर काफी बात कही थी। श् उन्होंने कहा कि फिलहाल यह जरूरी है कि आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों की समानता के लिए एक व्यवस्था बने। इसके लिए यह जरूरी है कि सभी इलाकों का विकास समान हो। उन्होंने कहा कि आज लोग सवाल उठाते हैं कि चुनाव से पहले कैश बांटा जा रहा है। सरकार कहती है कि ऐसा वेलफेयर के लिए किया जा रहा है। लेकिन लोग कहते हैं कि ऐसा नहीं बल्कि आप वोट खरीदने के लिए पैसे बांटते हैं और ये वोट खरीदने जैसा है।
ऐसे में साफ है कि मुरली मनोहर जोशी मोदी सरकार की इस नीति से न सिर्फ नाखुश है बल्कि वो चाहते है कि कोई भी सरकार ऐसा न करें क्योंकि जब ये बात मुरली मनोहर जोशी ने शुरु की है तो जरुर ये बात संघ से होते हुए बीजेपी के अंदर खेमे तक जाएगी और ये भी तय है कि इस पर हंगामा होगा। वैसे भी मोदी सरकार पिछले तीन चार इलेक्शन से इस नई पॉलिसी पर काम कर रही है जैसे चुनाव आता है महिलआों को रिझाने के लिए कोई योजना लॉच होती है। राजस्थान में सिलेंडर का दाम घटा दिया गया तो महराष्ट्र का चुनाव रोककर वहां महिलाओं के नाम से तीन महीने तक योजना को चलवाया और बिहार में तो हद हो गई यहां बीच चुनाव में महिलाओं के खाते में पैसा दिया गया और अब आगे के राज्यों में भी कुछ इसी तरह की योजनाओं की तैयारी जरुर बीजेपी कर रही होगी लेकिन जिस तरीके के चुनाव से पहले और चुनाव के बीच कुछ लाभ देकर चुनाव लूटने की परंपरा शुरु हुई है,
ये न तो देश के लिए ठीक है और न ही लोकतंत्र के लिए और जिस तरीके से मुरली मनोहर जोशी ने सवाल उठाया है, ऐसे में कहीं न कहीं मोदी को बुरा फंसा दिया है और एक ओर जहां बिहार के बीच चुनाव में मोदी का मार्गदर्शक मंडल ही उनके खिलाफ सवाल उठा रहा है तो वहीं परम ज्ञानी ज्ञानेश कुमार जी भी बुरा फंस गए हैं क्योंकि उनके एसआईआर ने ऐसा हड़कंप मचाया है कि लोग फांसी के फंदे पर झूले जा रहे है। क्योंकि चुनाव आयोग के पास अपनी कोई टीम तो है नहीं वो दूसरे कि विभागों पर जबरन कब्जा जमाने हुए है और जो लोग दूसरे कामों के प्रशिक्षित हैं उनको एसआईआर में लगा दिया है। ऐसा ही एक मामला पश्चिम बंगाल से सामने आया है।
वैसे तो दावा किया जाता है कि अब तक एसआईआर के 28 से ज्यादा मौतें हो गई लेकिन न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मुख्यमंत्री ने दावा किया कि मृतक शांति मुनी एक्का एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थीं, जो बीएलओ के रूप में कार्यरत थीं. उन्होंने निर्वाचन आयोग द्वारा किए जा रहे पुनरीक्षण कार्य के ‘असहनीय दबाव’ के कारण आत्महत्या कर ली। बताया जाता है कि ये बंगाली नहीं लिख पढ़ सकती थीं, जिसकी वजह से इन्होंने अपने सीनियर अफसरों से एसआईआर में न लगाने का का निवेदन भी किया लेकिन न मानने पर और सख्ती बरतने पर उन्होंने घर के बाहर फांसी फंदे पर झूलकर आत्महत्या कर ली और इस मामले में एफआईआर भी इलेक्शन कमीशन के खिलाफ दर्ज हो गया है। साथ ही ममता बनर्जी ने अपने ने एक्स पर लिखा, ‘गहरा सदमा और दुख हुआ. आज फिर, हमने जलपाईगुड़ी के माल में एक बूथ लेवल अधिकारी को खो दिया दृ एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जिन्होंने चल रहे एसआईआर कार्य के असहनीय दबाव में अपनी जान ले ली.’।
इसके साथ ही ममता बनर्जी ने एक लेटर सीधे ज्ञानेश कुमार को लिखा है और एसआईआर को तुरंत रोकने की मांग ही है। ऐसे में ज्ञानेश कुमार जी के विभाग पर न सिर्फ एफआईआर हुआ है बल्कि उनको एसआईआर रोकने की बात कही जा रही है। आपको बता दें कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बीएलओ पर भंयकर दबाव है, वो अपने विभाग का काम देखें या फिर एसआईआर कराएं, क्योंकि इलेक्शन कमीशन ने एसआईआर में कोई गड़बड़ी होने पर बड़ा फरमान जारी कर दिया है और एसआईआर कोई आसान काम नहीं है। आपको बता दें कि बंगाल में मौतों और धमकी सिलसिला सामने आया है लेकिन यूपी में सच में कुछ ऐसा हो रहा है कि एसडीएम रैंक का अफसर सरेआम बीएलओ का एफआईआर दर्ज कराने की धमकी दे रहे हैं…
देखा अपना कि किस तरह से बीएलओ पर प्रेशर बनाया जा रहा है और ऐसे में अगर कहीं बीएलओ आत्महत्या कर रहे हैं तो क्या गलत है। ऐसे में ज्ञानेश जी एसआईआर को लेकर बुरा फंसे हुए हैं क्योंकि 12 राज्यों में एक साथ विरोध न सिर्फ ज्ञानेश जी के विभाग को भारी पड़ सकता है बल्कि इसके लिए गंभीर रिजल्ट भी सामने आ सकते हैं और ये बात साफ है कि जहां एक ओर बिहार में वोट के नोट के बदले पीएम साहब और उनके चाणक्य के खिलाफ बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल ने मोर्चा खोल दिया है तो वहीं ज्ञानेश जी के विभाग पर न सिर्फ एफआईआर हो रहा है बल्कि एसआईआर में सरेआम अधिकारियों की दादागिरी चल रही है।



