BMC चुनाव से पहले गरमाई महाराष्ट्र की सियासत, आपस में ही भिड़े महायुति के नेता!
BMC चुनाव से पहले महायुति में तनाव चरम पर पहुंच गया है. यहां तक कि बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर मुंबई में अजित पवार गुट वाली एनसीपी का नेतृत्व नवाब मलिक करेंगे, तो उनके साथ कोई गठबंधन नहीं होगा.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों महाराष्ट्र की महायुति सरकार में इन दिनों सबकुछ सही नहीं चल रहा है। आगामी BMC चुनाव को लेकर सीयासी पारा हाई है। BMC चुनाव की तैयारियां सभी दलों में हो रही है वोटरों को साधने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाई जा रही हैं।
वहीं इन सबके बीच महाराष्ट्र की महायुति सरकार में सबकुछ ठीक न चलने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। वैसाखी के सहारे चल रही महाराष्ट्र सरकार में अब दरार आती आ रही है। दरअसल महायुति के सहयोगी दलों के नेता की आपसी अनबन के चलते ये खबरें सुर्ख़ियों में बनी हुई हैं। कभी शिंदे के नाराज होने की खबर आती है तो कभी अजित पवार खफा हो रहे हैं। तो कई दल ऐसे हैं जो इस बार भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रहे हैं। खैर कुल मिलाकर देखा जाए तो महायुति बिखरती हुई दिखाई दे रही है।
अब तो आलम ये है की गठबंधन में शामिल दलों के नेता एक दूसरे को सीधी चुनौती देते हुए नजर आ रहे हैं। इसी कड़ी में आपको बता दें कि BMC चुनाव से पहले महायुति में तनाव चरम पर पहुंच गया है. यहां तक कि बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर मुंबई में अजित पवार गुट वाली एनसीपी का नेतृत्व नवाब मलिक करेंगे, तो उनके साथ कोई गठबंधन नहीं होगा. इसी बीच भाजपा के बड़े नेता और मंत्री आशीष शेलार ने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की कि उनकी पार्टी ऐसे किसी भी नेता का समर्थन नहीं कर सकती जिस पर मनी लॉन्ड्रिंग और अंडरवर्ल्ड से संबंधों जैसे गंभीर आरोप हों.
इतना ही नहीं शेलार ने जोर देकर कहा, “यह विरोध नवाब मलिक से व्यक्तिगत नहीं, बल्कि उन पर लगे आरोपों की गंभीरता के कारण है.” उन्होंने कहा कि बीजेपी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकती. बीजेपी के मुंबई अध्यक्ष आशीष शेलार के रुख का समर्थन करते हुए, पार्टी ने स्पष्ट किया है कि जब तक मलिक मुंबई चुनाव के प्रभारी रहेंगे, तब तक सीट बंटवारे पर कोई चर्चा संभव नहीं है. बीजेपी को आशंका है कि मलिक के साथ दिखने से उनके कोर वोट बैंक पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
वहीं दूसरी तरफ बता दें कि एनसीपी अजित पवार गुट अपने नेता के बचाव में उतर आई है. NCP नेता प्रफुल पटेल ने इस पूरे मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि नवाब मलिक पार्टी के वरिष्ठ सहयोगी हैं और अभी तक उन पर दोष सिद्ध नहीं हुआ है. पटेल ने यह भी कहा कि किसे क्या जिम्मेदारी देनी है, यह पार्टी का आंतरिक मामला है. हालांकि वो बात अलग है कि उन्होंने महायुति में किसी भी तरह की फूट से इनकार किया और दावा किया कि गठबंधन पीएम मोदी के नेतृत्व में एकजुट है.
हालांकि दोस्तों ऐसे में अब सवाल ये बनता है कि आखिर भाजपा को नवाब मलिक को लेकर इतनी बेरुखी क्यों दिखा रही है। तो ऐसे में आपको बता दें ये कोई पहली बार नहीं हुआ है जब चुनाव के समय भाजपा ने नवाब मालिक को लेकर नाराजगी जाहिर की हो ऐसे में बता दें कि महाराष्ट्र की राजनीति में नवाब मलिक और भाजपा के बीच जारी ये गृह युद्ध नया नहीं है. बीजेपी लंबे समय से नवाब मलिक पर दाऊद इब्राहिम गैंग से संबंध और जमीन घोटाले जैसे गंभीर आरोप लगाती रही है. यही कारण है कि आज जब नवाब मलिक, एनसीपी (अजीत पवार गुट) की ओर से महायुति का हिस्सा बनकर मैदान में हैं, तब भी बीजेपी खुलकर उनके समर्थन में नहीं दिख रही’.
दरअसल, नवाब मलिक और बीजेपी के बीच मतभेद लगभग 2014 के बाद तेज हुए, जब वे विपक्ष में रहते हुए लगातार बीजेपी सरकार पर आरोप लगाते रहे. विवाद का सबसे बड़ा मोड़ 2021 में आया, जब मलिक ने एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े और केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए. इसी बीच ईडी ने जमीन सौदों में कथित गड़बड़ियों के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उसी समय से बीजेपी का रुख उनके खिलाफ और कठोर हो गया. दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों से कथित संबंधों के आरोप, कुर्ला लैंड डील में वित्तीय अनियमितताओं का मामला, इसके बाद नवाब मलिक का अजित गुट में शामिल होकर महायुति का हिस्सा बनना ये सब बीजेपी को एक आंख नहीं भाया। बीजेपी का अपने पुराने आरोपों से पीछे न हट पाना हालांकि महायुति में शामिल होने के बावजूद बीजेपी का विरोध जारी है, लेकिन चुनाव बाद के समीकरण इसे बदल भी सकते हैं।
नवाब मलिक को लेकर जिस तरह भाजपा नफरत दिखाती है इसकी वजह है। दरअसल नवाब मलिक मुंबई में मुस्लिम समाज का प्रभावी चेहरा हैं. पूर्व अल्पसंख्यक कार्य एवं कौशल विकास विभाग के मंत्री रह चुके हैं. एनसीपी के पुराने नेता, वर्तमान में अजीत पवार गुट के प्रमुख चेहरा हैं. आक्रामक भाषण शैली और तेज राजनीतिक रुख के लिए जाने जाते हैं. जिस वजह से और भाजपा उनसे नफरत करती है।
हालांकि दोस्तों आपको बता दें कि महायुति में बीजेपी की सिर्फ अजित जुट से ही नाराजगी नहीं चल रही है। बल्कि शिंदे गुट भी भाजपा से नाराज चल रहा है। जी हाँ सही सुना आपने, आपको याद ही होगा कि किस तरह से एक नाथ शिंदे को सीएम पद से हाथ धोना पड़ा था। सिटींग सीएम होने के बावजूद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी गवानी पड़ी और फिर उसके बाद महज उपमुख्यमंत्री पद से ही संतुष्ट होना पड़ा। खैर वो नाराजगी आज भी बरक़रार है और किसी न किसी शक्ल में देखने को मिल जाती है।
वहीं बात करें अभी मौजूद समय की तो अब BMC चुनाव को लेकर शिंदे गुट की नाराजगी देखने को मिल रही है। BMC चुनाव में वक़्त कम है ऐसे में स्थानीय स्वराज संस्थाओं के चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने पूरे राज्य में अपनी संगठनात्मक शक्ति बढ़ाने के लिए मेगा-भर्ती अभियान शुरू किया है. इसमें बीजेपी ने ठाकरे गुट, शिंदे गुट, राष्ट्रवादी और कांग्रेस सभी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को शामिल करने की कोशिश शुरू कर दी है. इसी कारण शिंदे गुट बेहद नाराज है. इसी वजह से शिंदे गुट के मंत्रियों ने बीते 18 नवंबर को मुंबई में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक का अघोषित बहिष्कार किया.
बाहर से सब ठीक दिख रहा था, लेकिन अंदरूनी तौर पर बड़े मतभेद स्पष्ट हो गए. शिंदे गुट की नाराजगी के पीछे कई घटनाएं जिम्मेदार बताई जा रही हैं. नगरपालिका चुनावों के लिए नामांकन भरने की आखिरी तारीख खत्म हो चुकी है. राज्य की 246 नगरपालिकाओं और 42 नगर पंचायत चुनावों में कुछ जगह महायुती गठबंधन तो कुछ जगह घटक दल अकेले चुनाव लड़ते दिखाई दे रहे हैं. कई नगरपालिकाओं में बीजेपी ने शिवसेना शिंदे गुट के उम्मीदवारों को अपने पक्ष में शामिल कर उन्हें टिकट दिया. इसी कारण बीजेपी और शिंदे की शिवसेना के बीच राजनीतिक संघर्ष बढ़ गया है.
आपको बता दें कि बीते 18 नवंबर को कैबिनेट बैठक से पहले शिवसेना की प्री-कैबिनेट बैठक हुई. उसके बाद राज्य मंत्रिमंडल की बैठक थी. लेकिन इस बैठक में एकनाथ शिंदे को छोड़कर शिवसेना का एक भी मंत्री मौजूद नहीं था. जब शिंदे गुट के मंत्री गुलाबराव पाटील से इसका कारण पूछा गया, तो उन्होंने कहा “एकनाथ शिंदे ने हमें स्थानीय स्वराज संस्थाओं के चुनाव के लिए आंकड़े और डेटा इकट्ठा करने को कहा है.” अब राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि इतनी जरूरी कौन-सी रणनीति थी कि शिंदे गुट को कैबिनेट बैठक छोड़नी पड़ी? कैबिनेट बैठक के बाद शिंदे गुट के सभी मंत्री, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कमरे में पहुंचे और वहां बीजेपी को लेकर तीखी नाराजगी जताई.
बात की जाए शिंदे गुट की नाराजगी की तो इसमें कई वजह शामिल हैं। जैसे बीजेपी, शिवसेना शिंदे गुट के नेता, नगरसेवक और पदाधिकारियों को अपने दल में शामिल कर रही है. विधानसभा चुनाव में जिनके खिलाफ शिवसेना ने चुनाव लड़ा था, उन्हीं उम्मीदवारों को अब बीजेपी में शामिल किया जा रहा है. शिंदे गुट के कई नेताओं और पालकमंत्रियों को भरोसे में लिए बिना निर्णय किए जा रहे हैं और फंड भी सीधे अन्य लोगों को दिया जा रहा. स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनाव में बीजेपी गठबंधन के नियमों का पालन नहीं कर रही है. विकास कार्यों के लिए फंड प्राप्त करने में भी शिवसेना और शिंदे गुट के मंत्रियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. धाराशिव जिले में एकनाथ शिंदे के विभाग को दरकिनार करते हुए बीजेपी के राणा जगजीतसिंह को सीधे फंड दिया गया.
एकनाथ शिंदे के कई फैसलों को रद्द किया गया, इतना ही नहीं इसके अलावा भी कई सरे मुद्दे हैं जिस वजह से ये मतभेद बना हुआ है। वहीं आपको याद दिला दें कि कुछ दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, “महाराष्ट्र में अब बीजेपी को किसी कुबड़ी की जरूरत नहीं.” इस बयान और ‘100 प्रतिशत बीजेपी’ रणनीति के संकेत के बाद से शिंदे की शिवसेना में भारी बेचैनी पैदा हो गई है. ऐसे में अब BMC चुनाव से पहले महायुति की आपसी अनबन विपक्ष के लिए कितनी किफायती साबित होगी ये तो खैर आने वाले समय में ही क्लियर हो पाएगा।



