कंपनी जीती, सरकार हारी, कुचले गये यात्री

- एबीसी-एयरलाइन ब्लैकमेल कंट्रोवर्सी से थमी उड़ान
- सरकार ने घुटने टेके वापस लिये नये नियम
- क्या यही चाहती थी विमानन कंपनी
- अगर नियम होते लागू तो कंपनी को होता करोड़ों का नुकसान
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। बढ़ते हवाई हादसों के बीच सरकार ने हवाई यात्रियों की सुरक्षा के लिए कुछ नियम बना कर हवाई कंपनियों को निर्देश दिये थे। इन नियमों में कू मेंबर्स और पायलट को नियमित आराम दिये जाने की बात कही गयी थी। उनके रेस्ट को लीव में बदलने की परंपरा को खत्म कर दिया गया था। यह नियम 25 नवम्बर से लागू हुए थे और इन नियमों के चलते एयर कंपनियों को नुकसान हो रहा था। बस यही से आज की हवाई यात्रा में हो रही दिक्कतों की कहानी की शुरूआत होती है।
यह क्राइसस रूटीन क्राइसेस नहीं है बल्कि फैब्रीकेटेड और स्क्रिपटेड क्राइसेस है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सनसनीखेज आरोप सरकार पर लगाये हैं और सरकार की हवाई नीतियों की धज्ज्यिां उड़ा दी है। उनका कहना है कि घरेलू एविएशन इंडस्ट्री को किसी एक कंपनी के हवाले करके सरकार ने बड़ी गलती कर दी। जब देश में चुनावी रणनीतियों और मास्टर स्ट्रोकों की परफार्मेंस चल रही थी ठीक उसी वक्त आसमान में एक और खेल खेला जा रहा था। एविएशन इंडस्ट्री का ब्लैकमेल गेम हवाई यात्राएं वैसे तो सपनों, बिजनेस और टूरिज्म को जोडऩे के लिए होती हैं। लेकिन इन दिनों देश के लाखों यात्रियों ने जाना कि उड़ान भरना अब सपने से ज्यादा किसी बेबस व्यवस्था के आगे हाथ जोडऩे जैसा हो गया है।
नुकसान टिकट से ज्यादा भरोसे का
जो लोग आठ से दस हजार के बीच टिकट लेकर अपनी मंजिल तक पहुंचते हो उनसे पूछिये कि उन्हें कितनी पीड़ा हुई। रद्द उड़ान सिर्फ एक यात्रा का टूटना नहीं होती। इस पूरे परिदृष्य में किसी का जाब इंटरव्यू छूट गया। कोई मरीज अपने डॉक्टर तक नहीं पहुच सका। कोई परिवार अपने इकलौते बेटे के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाया लेकिन एयरलाइन का संदेश असुविधा के लिए खेद है जैसे कोई चाय गिर गयी हो। यह खेद कभी नुकसान नहीं भरता लेकिन क्राइसिस बनाकर नियम जरूर बदलवा देता है।
पवन खेड़ा की एंट्री से कहानी में विस्फोट
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सरकार से सवाल पूछा है कि सरकार ने भारतीय एविएशन इंडस्ट्री को जानबूझकर एक कंपनी के हवाले क्यों किया। जब पूरा मार्केट एक ही पेशेवर घराने के नियंत्रण में होगा तो ऐसे ब्लैकमेल होना स्वाभाविक है। फ्लाइट कैंसल किसी क्राइसिस के कारण नहीं बल्कि मुनाफे के लिए सुनियोजित दबाव बनाया गया था। उनका दावा है कि अगर नियम लागू रहते तो एयरलाइन को करोड़ों का नुकसान होता। और इस नुकसान से बचने के लिए यात्रियों को मोहरा बनाया गया। सरकार ने झुककर साबित किया कि पालिसी नहीं कंपनी ही असली नियामक है, और सोशल मीडिया पर एक ही प्रश्न ट्रेंड करने लगा कि देश चल रहा है या कंपनी?
फैब्रिकेटेड क्राइसिस आपरेशन ब्लैकमेल
जैसे ही नये नियम लागू हुए फ्लाइट कैंसल होना शुरू हो गयी। फ्लाइट डिले होना शुरू हो गयी और क्रू मिसमैच भी शुरू यही नहीं तेजी से रूट आपरेशन रद्द हुए। और यात्रियों को ऐसा संदेश जाने लगा कि देखे सुरक्षा के नाम पर सरकार ने जो नए नियम लगाए हैं उसी से यह संकट आया है। माहौल ऐसा बनाया गया जैसे एयरलाइंस कह रही हों नियम हटाओ नहीं तो फ्लाइट्स बंद। बस यही वह मोड़ था जहां से इस क्राइसिस को नाम मिला एयरलाइन ब्लैकमेल कंट्रोवर्सी।
सरकार फिर पीछे हटी
एयरलाइन के इस हल्के से झटके में ही सरकार हिल गयी। बजाए इसके कि सरकार यात्रियों के लिए कोई बैकअप प्लान तैयार करती। उन्हें उनके गंत्वय तक पहुंचाती। ऐसा कुछ नहीं हुआं। यात्री एयरपोर्ट पर पिसते रहे। किसी का इंटरव्यू छूटा तो कोई किसी अपने का अंतिम दर्शन नहीं कर पाया। एक ही झटके में हड़कंप मच गया। सरकार एक्शन मोड में तब आई जब सोशल मीडिया पर यात्रियों के गुस्से वाले वीडियो वायरल होने लगे। इन सबके आगे सरकार बेबस दिखी और उसने उन नियमों को वापस ले लिया जो कंपनी चाहती थी। सरकार की तरफ से कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं। कोई कड़ा बयान नहीं। कोई जुर्माना नहीं। सरकार ने कंपनी से यह तक नहीं पूछा कि फ्लाइट कैंसल कर यात्रियों को किस अधिकार से परेशान किया गया, तस्वीर साफ थी कि कंपनी जीती, सरकार हारी, यात्री कुचले गये।
असली कहानी खेद नहीं खेल है
एक-दो नहीं, दर्जनों नहीं सैकड़ों फ्लाइट्स मतलब हजारों परिवार और करोड़ों के टिकट कैंसिल हुए। इन सबके बीच एयरलाइन कंपनी ने बस एक ही लाइन कही और पढ़ी वह थी असुविधा के लिए खेद है। लेकिन असली कहानी खेद नहीं खेल थी। नये नियमों के तहत देश में पहली बार हवाई यात्रियों की सुरक्षा और कर्मचारियों की सेहत को प्राथमिकता दी गयी थी। लेकिन बस यहीं से संघर्ष शुरू हो गया। कंपनियों के हिसाब से मामला सुरक्षा का नहीं नुकसान का था। आराम बढ़ेगा रोस्टर बिगड़ेगा फलाइट कम होंगी और मुनाफा घटेगा। और जितना मुनाफा घटेगा उतनी नैतिकता और नीति उड़कर बादलों में खो जाएगी।




