मोदी-शाह से बंद कमरे की डील? खरमास बाद निशांत की एंट्री और दिल्ली दौरे का संकेत

पीएम साहब की कुर्सी की दो बैसाखियां यानि कि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के बारी-बारी से अचानक दिल्ली पहुंचने और मुलकात कर वापस लौटने के बाद सियासी सरगर्मियां उफान पर आ गई हैं।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: पीएम साहब की कुर्सी की दो बैसाखियां यानि कि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के बारी-बारी से अचानक दिल्ली पहुंचने और मुलकात कर वापस लौटने के बाद सियासी सरगर्मियां उफान पर आ गई हैं।

एक ओर जहां आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती को लेकर भयंकर पेंच फंसा हुआ है तो वहीं नीतीश कुमार की बंद कमरे में हुई डील से बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव लाने जा रही है। नीतीश कुमार की बंद कमरे में पीएम साहब और उनके चाणक्य जी से क्या डील हुई है और बंद कमरे में क्या कुछ फाइनल हुआ है, जिससे हड़कंप मचा हुआ है।

राजनीति में बंद कमरे की मीटिंग्स हमेशा सस्पेंस से भरी होती हैं। 21 दिसंबर को नीतीश कुमार अचानक दो दिवसीय यात्रा के लिए अचानक दिल्ली पहुंचे थे। पहले तो दावा ये किया जा रहा था कि नीतीश कुमार मेडिकल रुटीन मेडिकल चेकअप के लिए दिल्ली आए हैं लेकिन जैसे ही वो दिल्ली एयरपोर्ट पर नजर आए तो उनके साथ केंद्रीय मंत्री ललन सिंह का होना ये सबूत दे गया कि अचानक कुछ न कुद तो राजनीति घटनाक्रम है, जो अंदरखाने में चल रहा है, फिर थोड़ी देर बाद यह भी खबरें आईं कि नीतीश कुमार की पीएम मोदी और अमित शाह से मुलाकात होना भी तय है। ऐसे में राजनीतिक सरगर्मियां उफान पर आ गई।

खासतौर से तीन बड़ी बातें चर्चा में रहीं। पहली ये नीतीश कुमार अचानक चंद्रबाबू नायडू के बाद क्यों दिल्ली आए हैं। क्या वो निशांत की राजनीति में एंट्री को लेकर पीएम साहब और उनके चाणक्य जी से मिलने के लिए आए है। या फिर बिहार एनडीए में सबकुछ ऑल इज वेल नहीं चल रहा है। नीतीश कुमार के ठीक एक दिन पर पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के दिल्ली विजिट की थी और उन्होंने अमितशाह समेत मोदी सरकार के कई मंत्रियों से मुलाकात की थी। सवाल ये खड़ा हुआ कि था क्या कोई बड़ा राजनीतिक खेल चल रहा है? नायडू का दिल्ली आना इसलिए खास था क्योंकि पिछले दिनों खबर आई थी कि वो मोदी सरकार से कुछ नाराज चल रहे है और इसकी वजह अमरावती प्रोजेक्ट है।

शायद आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल पैकेज या फंड्स की मांग थी। नायडू ने बड़े मंत्रियों से मुलाकात की। और ठीक उसके बाद नीतीश कुमार दिल्ली पहुंचे। क्या ये संयोग था? या फिर कोई प्लान? राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि दोनों नेता एनडीए में अपनी पोजीशन मजबूत करने के लिए दिल्ली आए। नीतीश कुमार का दौरा बिहार एनडीए सरकार के गठन के बाद पहला दिल्ली दौरा था।

नीतीश कुमार पटना से दिल्ली रवाना हुए और सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले। उसके बाद अमित शाह के आवास पर गए। दोनों मीटिंग्स बंद कमरे में हुईं। कोई मीडिया को डिटेल्स नहीं बताई गईं। सिर्फ इतना कहा गया कि बिहार के विकास और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा हुई। लेकिन दोस्तों, राजनीति में ऐसे बंद कमरे की मीटिंग्स में बड़े-बड़े फैसले होते हैं। क्या नीतीश कुमार बिहार के लिए स्पेशल स्टेटस मांग रहे थे? या कैबिनेट विस्तार का प्लान बना रहे थे?

ये विजिट इसलिए भी अचानक लगी क्योंकि बिहार में हाल ही में चुनाव हुए थे। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने एनडीए के साथ मिलकर अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन चुनाव के बाद पूरे कैबिनेट का गठन नहीं हो पाया है। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली हालांकि मंत्रीमंडल का विस्तार अभी बाकी है। और ये विस्तार खरमास के बाद होने की बात कही जा रही है। वैसे भी नीतीश कुमार खरमास के बाद अक्सर अपनी राजनीति में बड़ा बदलाव लाते हैं अब तक राजनीति के कई बड़े फैसले वो खरमास के बाद कर चुके हैं और यही वजह है कि जब बिहार की राजनीति में खरमास की बात जदयू और नीतीश की ओर से आती है तो लोगों को लगता है कि शायद कोई फिर से बड़ा फैसला नीतीश कुमार लेने जा रहा है। हालांकि नीतीश कुमार दिल्ली से लौटकर पटना आ चुके हैं और सब सामान्य है। लेकिन बंद कमरे में क्या बात हुई, वो रहस्य अभी भी बरकरार है।

दिल्ली पहुंचे नीतीश कुमार पहले पीएम मोदी से मिले। ये मुलाकात करीब 25 मिनट की थी। उसके बाद अमित शाह से 20 मिनट की बातचीत। साथ में जेडीयू के नेता ललन सिंह और बीजेपी के सम्राट चौधरी भी थे। जैसा की खबरों से जानकारियों सामने आई हैं कि बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार होेने जा रहा है। चुनाव के बाद कैबिनेट नहीं बनी। अब खरमास के बाद, जनवरी में विस्तार होगा।

कौन-कौन मंत्री बनेगा, कितनी सीट्स जेडीयू को, कितनी बीजेपी को – ये डिस्कस हुआ। दूसार अहम मुद्दा चुनाव का है। बिहार में राज्य सभा की पांच सीटें खाली होने जा रही हैं। इन सीटों पर नाम तय करने की बात हुई। कहा जा रहा है कि दो दो सीटों पर बीजेपी और जदयू अपने अपने कैंडिडेट उतारेगी। साथ ही खबर यह भी है कि नीतीश कुमार ने बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की मांग की हैं।

मीडिया रिपोट्स में बताया कि हालिया चुनावी घोषणाओं फ्री बिजली, पेंशन बढ़ोतरी, आंगनबाड़ी सेविका को स्मार्टफोन और मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना)से सरकार पर लगभग 25,000 करोड़ का अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ गया है। ऐसे में केंद्र से बिहार के लिए विशेष पैकेज की संभावना भी चर्चा में रही। खरमास बाद कैबिनेट विस्तार पर भी बातचीत हुई। 20 नवंबर को 27 मंत्रियों ने शपथ ली थी, जिसमें बीजेपी के 14 और जदयू के 9 मंत्री शामिल थे। अब 36 सदस्यों की कैबिनेट में 9 नए मंत्री बनाए जा सकते हैं, जिनमें जदयू कोटे की 6 सीटें शामिल हैं।

नीतीश कुमार लगातार यह कहते आए हैं कि उन्होंने कभी अपने परिवार को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया। इस वजह से पार्टी में नंबर-2 नेताओं की स्थिति कमजोर है। जेडीयू में नीतीश के बाद प्रमुख नेता केवल ललन सिंह, संजय झा, विजय कुमार चौधरी और अशोक चौधरी हैं, जिनमें से कोई भी जेडीयूके कोर वोट बैंक कुर्मी-कोइरी और ईबीसी का प्रतिनिधित्व पूरी तरह नहीं करता। यही कारण है कि निशांत कुमार की संभावित एंट्री को पार्टी और राज्य राजनीति के लिए रणनीतिक महत्व दिया जा रहा है। यह दौरा और दिल्ली में हुई मीटिंग संकेत देती है कि जदयू के भविष्य में नई राजनीतिक तैयारियां और शक्ति संतुलन पर बड़े निर्णय जल्द ही सामने आ सकते हैं।

पूरे मामले में निशांत के राजनीतिक भविष्य का मामला सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। जैसा कि पहले से खबरें आ चुकी है कि जदयू के सीनियर नेता चाहते हैं कि निशांत कुमार सीधे डिप्टी सीएम को पद लेकर न सिर्फ पिता के साथ रहे बल्कि वो पिता के कामों में उनकी हेल्प भी करें, क्योंकि नीतीश कुमार की उम्र काफी हो गई है, वो कई बार मंचों से लेकर फैसलों तक में थोड़ा सा कम्फयूज दिखते हैं।

ऐसे में जब बिहार की एक बहुत बड़ी जनता नीतीश कुमार के पीछे खड़ी है तो न सिर्फ नीतीश की बल्कि पूरी पार्टी की जिम्मेदारी बनती है कि वो सिर्फ बीजेपी के भरोसे पर न रहे बल्कि अपनी ताकत को मजबूत भी रखे और माना जा रहा है कि निशांत की इंट्री का मलबत भी नंबर दो के नेताओं में मजबूत पकड़ बनाने को लेकर है। कई रिपोर्ट्स कहती हैं कि इस मीटिंग में निशांत की एंट्री पर फॉर्मूला तय हुआ। जेडीयू निशांत को पॉलिटिकल एंट्री कराएगी।

कुछ लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार 75 साल के होने पर सन्यास ले सकते हैं। लेकिन फिलहाल वो खुद को फिट बता रहे हैं। फिर भी, बंद कमरे में डील ये हो सकती है कि निशांत को तैयार किया जाए। बीजेपी और जदयू मिलकर उन्हें लॉन्च करें। क्या ये डील बिहार की राजनीति बदल देगी? आगे देखते हैं। निशांत नीतीश कुमार के इकलौते बेटे हैं। वो इंजीनियर हैं। आमतौर पर राजनीति से दूर रहे हैं। लेकिन पिछले एक साल से अटकलें हैं कि वो जेडीयू में एंट्री लेंगे। जेडीयू नेता कहते हैं कि वो निशांत का स्वागत करने को तैयार हैं।

लेकिन दोस्तों ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जिस जदयू में नंबर दो के नेताओं को आकाल हैं क्या निशांत की इंट्री से जेडीयू में उत्तराधिकारी समस्या सॉल्व हो जाएगी। नीतीश कुमार 20 साल से शासन कर रहे हैं, लेकिन विकल्प नहीं मिला। अगर निशांत आए, तो युवा लीडरशिप मिलेगी। लेकिन चुनौतियां हैं, क्योंकि विपक्ष में तेजस्वी को पूरी तरह से मैदान ले चुके हैं लेकिन अभी निशांत राजनीति में बिल्कुल नए है।

ऐसे में निशांत की इंट्री कितनी कारगर साबित होगी, ये तो आने वाला समय बताएंगा लेकिन माना जा रहा है कि निशांत की इंट्री खरमास बात राजनीति में हो जाएगी। हालांकि ये संगठन के साथ शुरु होगी या फिर डिप्टी सीएम के रुप में ये देखना सबसे अहम होगा। कुछ दावा इस तरह का भी है कि उनको सीधे राज्य सभा भेजकर कोई मंत्री पद भी दिया जा सकता है।

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