पीएम की कथनी और करनी में अंतर: जयराम

  • कांग्रेस ने पर्यावरण चिंताओं को लेकर मोदी पर साधा निशाना
  • बोले- अरावली की पुर्नपरिभाषा खतरनाक और विनाशकारी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कांग्रेस ने अरावली पर्वतमाला से जुड़े मुद्दे को लेकर भाजपा और पीएम मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वैश्विक स्तर की कथनी और उनकी स्थानीय स्तर की करनी के बीच कोई तालमेल नहीं है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि अरावली का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा नई परिभाषा के तहत संरक्षित नहीं किया जाएगा। साथ ही, इसे खनन, रियल एस्टेट और अन्य गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है जो पहले से ही तबाह पारिस्थितिकी तंत्र को और नुकसान पहुंचाएगा। रमेश ने दावा किया कि इसका मतलब यह है कि अरावली का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा नई परिभाषा के तहत संरक्षित नहीं किया जाएगा और इसे खनन, रियल एस्टेट और अन्य गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है जो पहले से ही तबाह पारिस्थितिकी तंत्र को और नुकसान पहुंचाएगा।
उनका कहना है कि यह सीधा और सरल सत्य है जिसे छुपाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा, यह पारिस्थितिकी संतुलन पर मोदी सरकार के दृढ़ हमले का एक और उदाहरण है जिसमें प्रदूषण मानकों को ढीला करना, पर्यावरण और वन कानूनों को कमजोर करना, राष्ट्रीय हरित अधिकरण और पर्यावरण प्रशासन के अन्य संस्थानों को कमजोर करना शामिल है। रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया, मोदी सरकार द्वारा अरावली की पुनर्परिभाषा, जो सभी विशेषज्ञों की राय के विपरीत है, खतरनाक और विनाशकारी है। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 20 मीटर से अधिक ऊंची अरावली पहाडय़िों का केवल 8.7 प्रतिशत हिस्सा ही 100 मीटर से अधिक ऊंचा है।उन्होंने कहा, यदि हम एफएसआई द्वारा पहचानी गई सभी अरावली पहाडय़िों को लें, एक प्रतिशत भी 100 मीटर से अधिक नहीं है। एफएसआई का मानना है और यह सही भी है कि ऊंचाई की सीमाएं संदिग्ध हैं और ऊंचाई की परवाह किए बिना सभी अरावली को संरक्षित किया जाना चाहिए।

न्यायालय के फैसले को दरकिनार कर रही भजनलाल सरकार : गहलोत

  • अब भी अरावली में नए पट्टे बांट रही है बीजेपी सरकार

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली क्षेत्र को लेकर उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद राज्य सरकार द्वारा नए खनन पट्टे जारी करने की प्रक्रिया पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि एक ओर तो केंद्र सरकार अरावली संरक्षण का दावा कर रही है वहीं दूसरी ओर राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार उच्चतम न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ा रही है। गहलोत ने एक बयान में कहा कि केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव दावा कर रहे हैं कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार जब तक मैनेजमेंट प्लान फॉर सस्टेनेबल माइनिंग (एमपीएसएम) तैयार नहीं हो जाता तब तक अरावली की 100 मीटर से ऊंची या नीची, किसी भी पहाड़ी पर नया खनन पट्टा नहीं दिया जाएगा। लेकिन, राजस्थान सरकार ने 14 नवंबर 2025 को नए खनन पट्टे जारी करने की प्रक्रिया शुरू की जिसमें 50 पट्टे अरावली रेंज वाले नौ जिलों जयपुर, अलवर, झुंझुनूं, राजसमंद, उदयपुर, अजमेर, सीकर, पाली और ब्यावर के हैं। उन्होंने कहा, 20 नवंबर को आए उच्चतम न्यायालय के फैसले के बावजूद, अरावली रेंज में आने वाले 50 खनन पट्टों की नीलामी प्रक्रिया को नहीं रोका गया बल्कि 30 नवंबर 2025 को आदेश निकालकर प्रमाणित किया गया कि अरावली रेंज में आने के बावजूद ये 50 पट्टे अरावली का हिस्सा नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने सवाल उठाया कि जब उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से एमपीएसएम के बिना नए पट्टों पर रोक लगाई है तो राजस्थान सरकार किस आधार पर नीलामी जारी रख रही है? सरकार ने उच्च न्यायालय में यह तर्क देकर दिसंबर में इन पट्टों की नीलामी कर दी की है कि ये पहाड़ 100 मीटर से नीचे हैं, इसलिए अरावली में नहीं आते जबकि उच्चतम न्यायालय का एमपीएसएम का फैसला 100 मीटर से ऊपर व नीचे दोनों की पहाडय़िों पर लागू होगा। उन्होंने कहा, यह न केवल उच्चतम न्यायालय के फैसले की मंशा के खिलाफ है, बल्कि अरावली के अस्तित्व को मिटाने की एक बड़ी साजिश भी है। पूर्व मुख्यमंत्री के अनुसार, यह एक उदाहरण है कि आने वाले दिनों में उच्चतम न्यायालय के फैसले की आड़ में कैसे तकनीकी रास्ते निकालकर पूरे अरावली में खनन का प्रयास किया जाएगा।

 

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