36 करोड़ का ईनामी और भारत को दुश्मन मानने वाला बना अफगानिस्तान का गृह मंत्री
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नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा घोषित नई सरकार अमेरिका समेत भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है। इस नई कैबिनेट में अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन और अफगान सरकार के सहयोगियों के खिलाफ 20 साल से चली आ रही जंग में दबदबा रखने वाले तालिबान के शीर्ष लोगों को शामिल किया गया है। इतना ही नहीं आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क के सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया गया है जो भारत को अपना दुश्मन नंबर वन मानता है। इतना ही नहीं, हक्कानी अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई की मोस्ट वांटेड लिस्ट में भी शामिल है, जिसके ऊपर 50 लाख डॉलर यानी करीब 36 करोड़ रुपये का इनाम है। सिराजुद्दीन हक्कानी ने कई आतंकी हमले किए हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान सरकार में रक्षा मंत्री बनने पर अड़े थे। वह मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब और तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से भी भिड़ गया। हालांकि, आईएसआई प्रमुख फैज हमीद और अन्य शीर्ष नेताओं की मंजूरी के बाद हक्कानी नेटवर्क के नेता गृह मंत्री के पद पर राजी हो गए। यह अलग बात है कि इस वजह से मुल्ला बरादार को उपप्रधानमंत्री के पद से संतोष करना पड़ रहा है जलालुद्दीन हक्कानी की मौत के बाद बेटा सिराजुद्दीन हक्कानी हक्कानी नेटवर्क की कमान संभाल रहा है।
रणनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, हक्कानी समूह पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान की वित्तीय और सैन्य संपत्ति की देखरेख करता है। कुछ विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों के लिए हक्कानी जिम्मेदार है। माना जाता है कि हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार है। तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी उनमें से एक है। एक अज्ञात ठिकाने से अपना नेटवर्क संचालित करता है। यह वही आतंकवादी है जिसने 7 जुलाई 2008 को काबुल में भारतीय दूतावास पर आत्मघाती कार बम हमले को अंजाम दिया था।
हक्कानी नेटवर्क में दूसरे नंबर के आतंकी अनस हक्कानी को काबुल का सुरक्षा प्रमुख बनाया गया है। 15 अगस्त से अनस काबुल में कई बार पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अब्दुल्ला-अब्दुल्ला से मिल चुके हैं। अनस वही आतंकवादी है जिसे अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार ने निर्दोष लोगों की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन तालिबान के साथ समझौते के कारण, उसे 2019 में दो अन्य कट्टर आतंकवादियों के साथ रिहा कर दिया गया था। हक्कानी नेटवर्क की स्थापना खूंखार लोगों ने की थी। 1980 के दशक में इस संगठन ने सोवियत सेना के खिलाफ उत्तरी वजीरिस्तान के क्षेत्र में भी काफी सफलता हासिल की। जलालुद्दीन हक्कानी भी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का खास था। हक्कानी नेटवर्क पर आज भी पाकिस्तान का काफी प्रभाव है और इससे भारत की चिंता और बढ़ गई है।