बीजेपी की राजनीति में जाति का विस्फोट!

- ब्राह्मण-क्षत्रिय टकराव से धुआं-धुआं हो रहा सत्ता का समीकरण
- सत्ता की जाति, जाति की सत्ता, बीजेपी का सबसे कठिन इम्तिहान!
- सवाल यह नहीं कि किसकी जाति भारी है? सवाल यह है कि किसकी नाराजगी होगी घातक
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। यूपी की राजनीति में इन दिनों शोर नहीं लेकिन धुआं बहुत है, और उस धुएं का धुंध कोहरे के धुंध से ज्यादा है। जी हां धुंध ऐसा है कि आलाकमान भी अब अंदाजे से राजनीतिक गाड़ी चला रहा है। भारतीय जनता पार्टी जो अब तक विपक्ष की जातीय राजनीति को निशाने पर रखती थी आज खुद उसी राजनीति के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि यह लड़ाई सड़क पर नहीं बल्कि सत्ता के गलियारों में चल रही है और नाम है ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय! जिस जातीय संतुलन को साधकर बीजेपी ने देश में सत्ता की इमारत खड़ी की आज वही संतुलन दरारों से बढ़ता जा रहा है। कभी यह कहा जाता था कि बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत उसकी मैनेज्ड सोशल इंजीनियरिंग है। लेकिन अब वही सोशल इंजीनियरिंग बोझ बनती दिख रही है। प्लस-प्लस का फार्मूला माइनस में बदल चुका है।
अब अंकगणित नहीं रही बीजेपी की राजनीति
बीजेपी की राजनीति अब अंकगणित नहीं रही। यह अहंकार, अपेक्षा और अधिकार का खेल बन चुकी है। जिन ब्राह्मणों ने कभी बीजेपी को वैचारिक मजबूती दी आज वही खुद को उपेक्षित मान रहे हैं। और जिन क्षत्रियों ने सत्ता की मशीनरी को संभाला वह अब हिस्सेदारी से आगे नियंत्रण की तरफ बढ़ते दिख रहे हैं। यह टकराव सिर्फ एक जातीय असंतुलन नहीं है। यह उस राजनीति की थकान है जिसने वर्षों तक जाति को हथियार बनाकर सत्ता साधी कि अब वही हथियार उल्टा पड़ रहा है। यही वजह है कि यह धुआं जल्द छंटने वाला नहीं है। यह कोहरे की तरह गहराता जाएगा चुपचाप जहरीला और देर तक टिकने वाला।
2029 का संकट है यह
असल में यूपी में जो चल रहा है वह 2025 का नहीं 2029 का संकट है। टिकट बंटवारा, नेतृत्व का उत्तराधिकार और केंद्र और राज्य के बीच शक्ति संतुलन। इन सबकी तैयारी अभी से शुरू हो चुकी है। जो आज संगठन और सत्ता पर पकड़ बना रहा है वही कल का निर्णायक बनेगा। यही कारण है कि यह संघर्ष सतही नहीं है यह भविष्य की राजनीति का खाका है। एक और अहम पहलू यह है कि मीडिया का रवैया। सत्ता की अंदरूनी दरार है। खबर नदारद है।
सतह पर असंतोष!
ब्राह्मण विधायकों की हालिया बैठक ने इस अंदरूनी असंतोष को सतह पर ला दिया है। पार्टी नेतृत्व की नाराजगी सिर्फ बैठक से नहीं बल्कि उस संदेश से है जो इस बैठक ने दिया कि सत्ता के भीतर कुछ जातियां खुद को हाशिये पर महसूस करने लगी हैं। प्रदेश अध्यक्ष का सख्त रुख और खुली चुनौती इस बात का संकेत है कि पार्टी अब असंतोष को अनुशासन से कुचलने की तैयारी में है समाधान से नहीं। दूसरी तरफ क्षत्रिय विधायकों का बढ़ता प्रभाव, प्रशासनिक पकड़, संगठन में वर्चस्व और सत्ता के फैसलों में निर्णायक भूमिका। यह वही क्षत्रिय तबका है, जिसे सत्ता के असली पहरेदार के तौर पर देखा जा रहा है। सवाल यह नहीं है कि किसकी संख्या ज्यादा है सवाल यह है कि किसकी पकड़ ज्यादा मज़बूत है।
आरएसएस की चुप्पी
इस पूरे परिदृश्य में आरएसएस की चुप्पी सबसे ज़्यादा मायने रखती है। न समर्थन न विरोध और न संतुलन का कोई सार्वजनिक प्रयास। यह चुप्पी असहमति नहीं असहजता है। संघ जानता है कि अगर जातीय टकराव खुलकर सामने आया तो वह उस वैचारिक अनुशासन को नुकसान पहुंचा सकता है जिस पर पूरी संरचना टिकी है। यही वजह है कि संघ फिलहाल मौन साधे हुए है लेकिन यह मौन स्थायी नहीं रह सकता।
पंकज चौधरी नाराज लगाई क्लास
यूपी के नये प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी बीजेपी ब्रहमण बैठक से नाराज है और भविष्य में इस प्रकार की बैठकों पर अनुशासन का चाबुक चलाने का अल्टीमेटम लिखित में जारी कर दिया है। इससे पहले की कुर्मी, लोधी, आदि जातियों के विधायक भी बैठक कर अपनी ताकत का प्रर्दशन करते उससे पहले ही बीजेपी आलाकमान इस आग का शांत करने की कोशिश में लग गया है। ब्रहमण विधायकों की ओर से भी सफाई आ चुकी है कि वह कोई बैठक नहीं एक नार्मल गेट टू गेदर पार्टी थी जिसे एक विधायक ने जन्मदिन के उपक्ष्य में मनाया था।
पीएम के कार्यक्र म में नहीं मिले लाभार्थी तो सफाई कर्मचारियों को ही पहुंचा दिया
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। लखनऊ में राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल केलोकापर्ण केअवसर पर पीएम के कार्यक्रम में लाभार्थी पहुंचे ही नहीं तो सफाई कर्मचारियों को ही बस में बैठा कर पहुंचा दिया गया। जबकि सभी पार्षदों की जिम्मेदारी थी कि ज्यादा से ज्यादा लाभार्थी लोगों को लेकर प्रेरणा स्थल पहुंचना है। सूत्रों से मिली जानकारी केअनुसार दिग्गज पार्षद लाभार्थियों को इक_ा कर नहीं पाए। आखिर में सफाई कर्मचारियों को बस में बैठाकर पीएम के कार्यक्रम में पहुंचाया गया।




