JDU + 4 BJP! बिहार में कैबिनेट विस्तार या सत्ता संतुलन की जंग?
बिहार की सियासत में मकर संक्रांति का समय हमेशा से बदलाव की खिचड़ी पकाने के लिए जाना जाता है...इस बार भी राजधानी पटना के गलियारों में चर्चा गरम है कि खरमास खत्म होते ही नीतीश कैबिनेट का विस्तार होगा...

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बिहार की सियासत में मकर संक्रांति का समय हमेशा से बदलाव की खिचड़ी पकाने के लिए जाना जाता है…इस बार भी राजधानी पटना के गलियारों में चर्चा गरम है कि खरमास खत्म होते ही नीतीश कैबिनेट का विस्तार होगा…
लेकिन, जैसे ही सूत्रों के हवाले से 6 JDU + 4 BJP का फॉर्मूला सामने आया…एनडीए गठबंधन के भीतर हलचल तेज हो गई…क्या यह सिर्फ मंत्रियों की खाली कुर्सियां भरने की कवायद है…या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपनी सियासी पकड़ का रसूख का इस्तेमाल कर बीजेपी को बैकफुट पर धकेल दिया है?…..तो आखिर क्यों बिहार में कैबिनेट विस्तार को सत्ता संतुलन की जंग से जोड़कर छिड़ गई है बहस….
बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज है…वजह है नीतीश सरकार का प्रस्तावित मंत्रिपरिषद विस्तार…जहां मकर संक्रांति के बाद जनवरी में होने वाले इस विस्तार को लेकर जो फॉर्मूला सामने आया है…उसने एनडीए के भीतर ही सवाल खड़े कर दिए हैं… 6 मंत्री जेडीयू से और सिर्फ 4 मंत्री बीजेपी से…यही वो गणित है…जिसे लेकर अब सियासी बहस छिड़ चुकी है…सवाल सिर्फ मंत्रियों की संख्या का नहीं है…बल्कि सत्ता में वर्चस्व, गठबंधन की शर्तों और भविष्य की राजनीति का है….
फिलहाल नीतीश मंत्रिपरिषद में कुल 10 पद खाली हैं…NDA के तय फार्मूले के मुताबिक बिहार में अधिकतम 36 मंत्री हो सकते हैं…इसमें BJP को 17, JDU को मुख्यमंत्री समेत 15, LJP-R को 2 और HAM व RLP को 1-1 मंत्री पद मिलना है…इसी गणित के आधार पर JDU के 6 और BJP के 4 मंत्री बनाए जाने की गुंजाइश बची है…कागजों पर ये फार्मूला संतुलित दिखता है…लेकिन सियासत कागज से नहीं, संदेश से चलती है…कहा जा रहा है कि मंत्रीपरिषद विस्तार को लेकर BJP खेमे में असंतोष की असली वजह यही है…
विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी…ऐसे में पार्टी को उम्मीद थी कि मंत्रिमंडल विस्तार में उसे बराबरी या उससे ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलेगा…लेकिन अब 6 बनाम 4 का ये फॉर्मूला बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं माना जा रहा…पार्टी के भीतर ये सवाल उठ रहा है कि अगर संख्या में बड़ी पार्टी होने के बावजूद सत्ता में बराबरी नहीं मिलती…तो फिर ये गठबंधन किस आधार पर चल रहा है?…तो सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी के भीतर ये संदेश जा रहा है कि केंद्र में सरकार होने के बावजूद बिहार में असली सत्ता जेडीयू और नीतीश कुमार के हाथ में ही रहेगी…बीजेपी सिर्फ एक सहयोगी की भूमिका में सिमटती दिखाई दे रही है…यही वजह है कि ये मंत्रिमंडल विस्तार अब सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं…बल्कि सत्ता संतुलन की जंग बन चुका है…
सीएम नीतीश कुमार की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि वो कभी भी सत्ता की चाबी अपने हाथ से नहीं जाने देते…चाहे वो कांग्रेस हो, आरजेडी हो या बीजेपी..हर गठबंधन में उन्होंने खुद को केंद्रीय धुरी बनाए रखा है…पहले भी मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए सीएम नीतीश ने ये साफ किया है कि मुख्यमंत्री पद सिर्फ नाम का नहीं…बल्कि निर्णय की अंतिम शक्ति भी उन्हीं के पास है…हाल ही में नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा इसी संदर्भ में बेहद अहम माना जा रहा है…जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से उनकी मुलाकात के बाद ही कैबिनेट विस्तार की चर्चाएं तेज हुईं…..राजनीतिक गलियारों में ये माना जा रहा है कि नीतीश दिल्ली सिर्फ औपचारिक मुलाकात के लिए नहीं गए थे…बल्कि बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार और सत्ता संतुलन पर अपनी शर्तें रखने गए थे…
राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि सीएम नीतीश ने ये साफ कर दिया कि बिहार में सरकार उनकी शर्तों पर ही चलेगी…बीजेपी चाहे केंद्र में कितनी भी मजबूत क्यों न हो, लेकिन बिहार की राजनीति की कमान नीतीश कुमार के हाथ में ही रहेगी…6 जेडीयू और 4 बीजेपी का फॉर्मूला उसी बातचीत का नतीजा माना जा रहा है……..हालांकि, ये पहला मौका नहीं है जब नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार में खुद को तवज्जो दी हो…इससे पहले भी जब एनडीए सरकार बनी थी…तब विभागों के बंटवारे और मंत्रियों की संख्या में जेडीयू का पलड़ा भारी रहा था…बड़े और अहम विभाग जेडीयू के पास रहे…जबकि बीजेपी को अपेक्षाकृत सीमित भूमिका मिली…ऐसे में कहा जा रहा है कि इतिहास खुद को दोहराता दिख रहा है…
फिलहाल जेडीयू के कई मंत्रियों के पास एक से ज्यादा विभाग हैं…बिजेंद्र प्रसाद यादव के पास पांच विभाग…विजय चौधरी के पास चार, और श्रवण कुमार और सुनील कुमार के पास दो-दो विभाग हैं….बीजेपी कोटे से भी कुछ मंत्रियों के पास दो-दो विभाग हैं…कैबिनेट विस्तार के बाद इन विभागों का पुनर्वितरण होना तय है….लेकिन सवाल ये है कि अहम विभाग किसके पास जाएंगे?…सूत्रों के अनुसार, इस बार JDU जातिगत और सामाजिक संतुलन पर खास ध्यान दे रही है…कुशवाह समाज और अति पिछड़ा वर्ग से नेताओं को मंत्री बनाने की तैयारी है…ये सिर्फ सामाजिक न्याय का सवाल नहीं…बल्कि 2025 और 2026 की सियासी जमीन तैयार करने की रणनीति भी है…सीएम नीतीश जानते हैं कि बीजेपी की पकड़ शहरी और सवर्ण वोटरों में मजबूत है…जबकि जेडीयू को पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग मजबूत करता है…
अगर जेडीयू इस विस्तार के जरिए पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को साध लेती है…तो बीजेपी के लिए बिहार में अपनी सामाजिक पैठ बढ़ाना और मुश्किल हो जाएगा…यही वजह है कि बीजेपी के भीतर ये विस्तार सिर्फ सत्ता नहीं, बल्कि भविष्य की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है…जेडीयू के पास इस बार नए चेहरों को मौका देने की गुंजाइश है…ऐसे नेता, जो लंबे समय से संगठन में काम कर रहे हैं…लेकिन सत्ता से दूर रहे हैं…उन्हें आगे लाया जा सकता है…इससे एक तरफ संगठन मजबूत होगा…तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पकड़ पार्टी पर और भी ज्यादा मजबूत होगी…
वहीं बीजेपी की असहजता की वजह साफ है…क्योंकि, पार्टी जानती है कि बिहार में अकेले दम पर सरकार बनाना अभी भी आसान नहीं है…लेकिन सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद अगर उसे सहयोगी की भूमिका में रखा जाता है…तो कार्यकर्ताओं और नेताओं में असंतोष बढ़ना तय है…राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सीएम नीतीश कुमार ये संदेश देना चाहते हैं कि बीजेपी उन्हें हल्के में न ले…….
इसे एक तरह की दबाव की राजनीति भी कहा जा सकता है…जिसके जरिए सीएम नीतीश ये याद दिला रहे हैं कि बिहार में सरकार उनकी वजह से चल रही है…..और मकर संक्रांति के बाद होने वाला ये कैबिनेट विस्तार सिर्फ मंत्रियों की ताजपोशी नहीं है….ये आने वाले समय की राजनीति का ट्रेलर भी हो सकता है…ऐसे में सवाल उठें कि…क्या इससे एनडीए में दरार गहरी होगी?….क्या बीजेपी भविष्य में ज्यादा आक्रामक रुख अपनाएगी?….या फिर नीतीश कुमार एक बार फिर संतुलन साधने में कामयाब होंगे?………..
हालांकि, इन सभी सवालों के साथ ही सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये सत्ता साझेदारी का आखिरी पड़ाव है….या एक और राजनीतिक पलटी की शुरुआत?…क्योंकि, बिहार की राजनीति में सीएम नीतीश कुमार को कभी भी अंडरएस्टिमेट नहीं किया जा सकता….6 जेडीयू और 4 बीजेपी का ये फॉर्मूला आने वाले दिनों में सिर्फ मंत्रिमंडल नहीं, बल्कि बिहार की पूरी सियासत की दिशा तय कर सकता है……यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि…बिहार का ये कैबिनेट विस्तार अब प्रशासनिक जरूरत नहीं…बल्कि सत्ता का संदेश बन चुका है………
और सीएम नीतीश कुमार ने एक बार फिर दिखा दिया है कि गठबंधन में रहते हुए भी वो शर्तें तय करते हैं……..ऐसे में सवाल सिर्फ इतना है कि बीजेपी इसे कब तक स्वीकार करेगी?…और कबतक सहयोगी की भूमिका में रहते हुए सीएम नीतीश कुमार की हर डिमांड को मानेगी?………………फिलहाल, दोस्तों मकर संक्रांति के बाद बिहार की राजनीति में जो दही-चूड़ा भोज होगा…उसमें सत्ता का स्वाद किसके पक्ष में रहेगा…ये कैबिनेट विस्तार तय कर देगा….



