Vijay Kumar Sinha ने अधिकारियों को किया अपमानित! भड़का संघ, RJD ने साधा निशाना!
क्या बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के काम में अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हस्तक्षेप करेंगे?

4पीएम न्यूज नेटवर्क: क्या बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के काम में अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हस्तक्षेप करेंगे?
ये सवाल इसलिए उठा क्योंकि बिहार राजस्व संघ ने उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के खिलाफ CM नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखी और विजय कुमार सिन्हा पर अधिकारियों को अपमानित करने का गंभीर आरोप लगाते हुए सीएम नीतीश से हस्तक्षेप करने की मांग की है….जिसके बाद से कहा जा रहा है कि बिहार में प्रशासन के नाम पर धमकी वाला प्रशासन थोपा जा रहा है…………तो आखिर क्यों बिहार राजस्व संघ ने उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के खिलाफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखी चिट्ठी…और क्या सच में अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार….डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के हर काम में करेंगे हस्तक्षेप?
बिहार की सियासत में एक बार फिर सत्ता और सिस्टम आमने-सामने खड़े नजर आ रहे हैं…इस बार मामला किसी विपक्षी दल का आरोप भर नहीं…बल्कि खुद सरकार के भीतर काम करने वाले अधिकारियों की नाराजगी का है….जहां बिहार राज्य राजस्व संघ ने डिप्टी मुख्यमंत्री सह राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री विजय कुमार सिन्हा के खिलाफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखकर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं…आरोप सीधे तौर पर सत्ता के दुरुपयोग और अधिकारियों के सार्वजनिक अपमान से जुड़े हैं…संघ का कहना है कि जिलों में हो रहे तथाकथित जनसंवाद कार्यक्रम अब जनता से संवाद का मंच नहीं रह गए हैं…बल्कि अधिकारियों को डराने, धमकाने और अपमानित करने का सार्वजनिक मंच बनते जा रहे हैं…ऐसे में सवाल ये है कि क्या लोकतंत्र में जनसंवाद का मतलब अफसरों को भीड़ के सामने कठघरे में खड़ा करना होता है?…
दरअसल, मामाले ने तब तूल पकड़ा जब…बिहार राज्य राजस्व संघ ने डिप्टी CM सह राजस्व भूमि सुधार मंत्री विजय सिन्हा के खिलाफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखी…संघ ने विजय कुमार सिन्हा पर जिलों में हो रहे जन संवाद कार्यक्रम के दौरान अपमानित करने का गंभीर आरोप लगाया और साथ ही पदाधिकारियों ने सामूहिक बहिष्कार की चेतावनी भी दी है…राजस्व संघ द्वारा सीएम को लिखे गए पत्र में जिन शब्दों का जिक्र है…वो किसी भी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की भाषा नहीं मानी जा सकती….खड़े-खड़े सस्पेंड कर दूंगा, जनता के सामने जवाब दो, DM-SP सुन रहे हो ना…
ये शब्द प्रशासनिक समीक्षा नहीं…बल्कि खुलेआम धमकी की श्रेणी में आते हैं………अगर किसी मंत्री को किसी अधिकारी के कामकाज पर आपत्ति है…तो उसके लिए नियम, प्रक्रिया और विभागीय मंच मौजूद हैं…लेकिन सार्वजनिक मंच से निलंबन की धमकी देना…न सिर्फ सेवा नियमों का उल्लंघन है…बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे को भय के माहौल में धकेलने वाला कदम है…साथ ही साथ एक अधिकारी को सार्वजिन रूप से अपमानित करने जैसा भी है…
जिस तरह से राजस्व संघ ने चेतावनी दी है कि…वो डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के कार्यक्रमों का सामूहिक बहिष्कार करेंगे…वो इस बात का संकेत है कि मामला मामूली नहीं है….ये एक व्यक्ति की नाराज़गी नहीं, बल्कि पूरे विभाग की सामूहिक नाराजगी है…..क्योंकि, जब अधिकारी खुद को अपमानित और असुरक्षित महसूस करने लगें…तो शासन व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठना स्वाभाविक है…हालांकि, यहां सवाल सिर्फ भाषा का नहीं है….बल्कि, नीयत और सत्ता की सोच का है…सवाल उठे कि क्या भाजपा की सरकार में अफसरशाही को डराकर काम कराने की नीति अपनाई जा रही है?….क्या सख्त प्रशासन के नाम पर धमकी वाला प्रशासन थोपा जा रहा है?…
वहीं इस पूरे मामले पर डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि…कौन कहां नाराजगी व्यक्त कर रहा है…मुझे नहीं पता. मेरे पास कोई पत्र नहीं आया है और न किसी ने संपर्क किया…अराजकता का माहौल हम कभी बर्दाश्त नहीं किये हैं और ना कभी किसी के दबाव में आए हैं…सेवा का अवसर मिला है. हम अपना काम कर रहे हैं. जितना दिन विजय सिन्हा विभाग में है, जनता के लिए वो काम करेंगे……
लेकिन सवाल ये है कि जब एक संगठित संघ लिखित शिकायत कर रहा है…तो क्या इसे केवल नजरअंदाज कर देना ही जवाब है?…विजय कुमार सिन्हा का ये कहना कि…अराजकता का माहौल हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे…अपने आप में विरोधाभासी लगता है…क्योंकि अगर सार्वजनिक मंचों से धमकी भरी भाषा इस्तेमाल की जा रही है…तो वो खुद अराजकता को जन्म देने जैसा ही है…जानकारी के मुताबिक, डिप्टी सीएम ने अपने बयान में ये भी कहा कि…जो सही काम करेगा…उसे लाभ मिलेगा और जो गलत करेगा….उस पर कार्रवाई होगी…..लेकिन डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा शायद ये भूल गए हैं कि लोकतंत्र में कार्रवाई नियमों से होती है, माइक से नहीं….अगर मंत्री ही खुद जज और जूरी की भूमिका निभाने लगें…..तो सिस्टम कैसे बचेगा?…
राजस्व जैसे संवेदनशील विभाग में पहले से ही जनता का भरोसा कमजोर है…भूमि विवाद, दाखिल-खारिज और जमाबंदी जैसे मामलों में लोग सालों अदालतों के चक्कर लगाते हैं…ऐसे में अधिकारियों को डराकर काम कराने की रणनीति समस्याओं को हल नहीं, बल्कि और जटिल करेंगी…
बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा बार-बार भ्रष्टाचार और फर्जी दस्तावेजों की बात करते हैं…लेकिन, सवाल ये है कि अगर भ्रष्टाचार है…तो अब तक सरकार ने कितने बड़े अधिकारियों पर ठोस कार्रवाई की?….या फिर भ्रष्टाचार की आड़ में पूरी नौकरशाही को ही शक के घेरे में लाना आसान रास्ता बन गया है?……..विपक्षी दल RJD ने इस मुद्दे पर भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला है….RJD प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा कि…सार्वजनिक मंचों से पदाधिकारियों को अपमानित करने के बजाय विभाग में जो भ्रष्टाचार है उस पर लगाम लगाइये…
RJD का ये सवाल वाजिब है कि अगर सरकार सच में सुधार चाहती है…तो वो संस्थागत सुधार क्यों नहीं करती?…क्यों अफसरों को डर दिखाकर अपनी प्रशासनिक विफलताओं को ढकने की कोशिश की जा रही है?…क्योंकि, ये पहला मौका नहीं है…जब भाजपा के किसी मंत्री पर अफसरों से बदसलूकी के आरोप लगे हों…देश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसे उदाहरण सामने आते रहे हैं…जहां डबल इंजन सरकार के नाम पर सत्ता का अहंकार अधिकारियों पर उतारा गया हो….बिहार में ये मामला इसलिए भी अहम है…क्योंकि यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से सुशासन का दावा करते रहे हैं…….ऐसे में सवाल यै है कि क्या उन्हें अपने ही डिप्टी सीएम की कार्यशैली पर अब हस्तक्षेप करना पड़ेगा?…
क्योंकि, राजस्व संघ ने इस पूरे मामले में डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के खिसाफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बातचीत और हस्तक्षेप की मांग की है…अगर मुख्यमंत्री इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लेते हैं…तो ये संदेश जाएगा कि सरकार अफसरों के सम्मान और सुरक्षा के प्रति ज्यादा सीरियस नहीं है…..आज अधिकारी हैं, कल शिक्षक, परसों डॉक्टर….अगर सार्वजनिक मंचों से धमकी देना सामान्य बना दिया गया…तो पूरा प्रशासनिक ढांचा डर और चुप्पी में काम करेगा और डर में काम करने वाला सिस्टम जनता को न्याय नहीं दे सकता…
देखिए जनसंवाद का मकसद जनता की समस्या सुनना होता है…न कि अफसरों की सार्वजनिक क्लास लेना….अगर संवाद मंच सत्ता प्रदर्शन का अखाड़ा बन जाए…तो वो लोकतंत्र के मूल भाव के खिलाफ है….विजय कुमार सिन्हा का ये विवाद केवल एक मंत्री तक सीमित नहीं है…ये भाजपा की उस सोच को उजागर करता है…जहां सत्ता को सवालों से ऊपर और अफसरों को आदेशों के नीचे समझा जाता है…
आज बिहार के सामने असली सवाल ये नहीं है कि किसने किसे अपमानित किया….बल्कि सवाल ये है कि क्या राज्य में शासन…डर से चलेगा या नियम से….क्या मंत्री जनता के सेवक रहेंगे या अफसरों के मालिक बन जाएंगे….राजस्व संघ की चिट्ठी ने भाजपा सरकार के सुशासन के दावे को कठघरे में खड़ा कर दिया है…ऐसे में अब देखना ये होगा कि जवाब संवाद से आता है या दबाव से?………….



