वोटर डिलीशन सॉफ्टवेयर: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में माना ‘खराब’ और रैंडम सर्च करने वाला
जिस वोटर डिलीशन साफ्टवेयर को ज्ञानेश कुमार और उनके विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में फर्जी घोषित किया था.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: जिस वोटर डिलीशन साफ्टवेयर को ज्ञानेश कुमार और उनके विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में फर्जी घोषित किया था.
अब खबर निकल कर सामने आई है कि उसी साफ्टवेयर का प्रयोग एसआईआर के लिए 1र्2 प्रदेशों की वोटर लिस्ट का सही करने में किया जा रहा है। हालांकि जैसे ही यह खुलासा रिपोट्र कलेक्टिस की एक रिपोर्ट से हुआ है हड़कंप मच गया है। साथ ही एक और नया साफ्वेयर एसआईआर में प्रयोग करने की बात सामने आई है जिसका न तो कोई नोटिस जारी किया गया और न ही इसके लिए कोई रुल्स बनाए गए हैं लेकिन ये धड़ल्ले से काम कर रहा है। कैसे रिपोटर कलेक्टिव ने दोनों साफ्वेयर को लेकर खुलासा किया है, और इसमें कौन सा भयंकर खेल है.
सबसे पहले समझते हैं ये वोटर डिलीशन सॉफ्टवेयर क्या बला है। चुनाव आयोग के पास एक सॉफ्टवेयर है, जो वोटर लिस्ट से डुप्लिकेट नाम हटाने का काम करता है। मतलब, अगर कोई व्यक्ति दो जगह वोटर लिस्ट में है, तो ये सॉफ्टवेयर नाम, उम्र, फोटो, पता मैच करके फ्लैग करता है। फिर ग्राउंड वेरिफिकेशन होता है, वोटर को नोटिस दिया जाता है, और अगर डुप्लिकेट पाया गया तो डिलीट कर सकता है।
ये 2018 से इस्तेमाल हो रहा था। लेकिन चुनाव आयोग ने बिहार एसआईआ में इसका प्रयोग नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने खुद कबूल किया कि ये सॉफ्टवेयर बहुत खराब है, रैंडम सर्च करता है, गलत रिजल्ट देता है, इसलिए हमने इसे स्क्रैप कर दिया। लेकिन अब उसका झूठ शायद पकड़ा गया है। क्योंकि पहले ही ये दावा सामने आया था कि 2023 में अपने मैनुअल में इसे प्रमोट किया, 2024 के लोकसभा चुनावों में इस्तेमाल किया, और अब चुपके से अन्य राज्यों में चला रहा है।
द रिपोट्र कलेक्टिव ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि एसआईआर हो रहे 12 प्रदेशों मेें इसका इस्तेमाल हो रहा है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव का दावा है कि कि ईसीआई ने 12 राज्यों में वोटर लिस्ट रिवीजन के बीच में ही एक दूसरा एल्गोरिदम बेस्ड सॉफ्टवेयर भी चालू कर दिया है। ये भी बिना किसी लिखित निर्देश, मैनुअल, स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के किया गया है, न नागरिकों को कोई जानकारी दी गई।
जून 2025 में चुनाव आयोग ने बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन शुरू किया। ये एक बड़ा अभियान था, जहां 7.8 करोड़ वोटर्स को नए सिरे से रजिस्टर करना था। लेकिन चुनाव आयोग ने अपना डी-डुप्लिकेशन सॉफ्टवेयर इस्तेमाल नहीं किया। क्यों? क्योंकि ये खराब था, जैसा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में 24 नवंबर 2025 को बताया। कोर्ट में कहा कि सॉफ्टवेयर की स्ट्रेंग्थ और एक्यूरेसी वैरिएबल है, बड़े पैमाने पर संदिग्ध एंट्रीज निकालता है लेकिन वो डुप्लिकेट नहीं होतीं।
इसलिए हम मैनुअल तरीके से करेंगे। ये चुनाव आयोग का बड़ा झूठ है। क्योंकि अगर सॉफ्टवेयर खराब था, तो 2024 के जनरल इलेक्शंस में क्यों इस्तेमाल किया? नतीजा सामने आया कि बिहार की फाइनल वोटर लिस्ट में 14.35 लाख संदिग्ध डुप्लिकेट्स रह गए, इनमें 3.4 लाख एक्जैक्ट मैच हैं। लेकिन ज्ञानेश कुमार जी के विभाग ने नहीं साफ्वेयर का इस्तेमाल नहीं किया।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में एक दर्जन से ज्यादा चुनाव अधिकारियों से बात की। हमने टॉप ऑफिसर्स द्वारा डिस्ट्रिक्ट लेवल ईसीआई अधिकारियों के लिए कराई गई ट्रेनिंग सेशंस में चुपके से हिस्सा लिया। डिस्ट्रिक्ट लेवल के टॉप अधिकारियों से डिटेल्ड इंटरव्यू लिए। डी-डुप्लिकेशन सॉफ्टवेयर के काम करने की वीडियोग्राफी की, जो अब चालू हो चुका है। और दूसरे सॉफ्टवेयर के काम करने को भी खुद देखा, जिसे ईसीआई ने चालू किया है।
कई अधिकारियों ने ऑफ द रिकॉर्ड बात करना पसंद किया। ऐसे मामलों में सिर्फ वही दावे रिपोर्ट किए गए हैं जिन्हें कम से कम तीन अलग-अलग अधिकारियों से क्रॉस चेक और कन्फर्म किया गया। यानि कि ये बात पूरी तरह से साफ हो गई है कि जिस साफ्वेयर को ज्ञानेश कुमार जी के विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में रद्दी बता दिया था, अब उस साफ्वेयर को कहीं न कहीं चुपके से चलाया जा रह है। कलेक्टिव का अपनी रिपोर्ट में दावा पेश किया है कि हमें पता चला कि एल्गोरिदम आखिरी घड़ी में डाले गए, इसलिए री-वेरिफिकेशन के लिए कोई साफ प्रोटोकॉल या चेकलिस्ट नहीं बनाई गई।
इससे बूथ लेवल ऑफिसर्स और इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स गड़बड़ी ठीक करने में परेशान हो रहे हैं। रिपोटर कलेक्टिव ने अपने हवाले से पता लगाया है कि – एक डिस्ट्रिक्ट चुनाव अधिकारी ने कहा, “एसआईआर के हर दिन हमारी बीएलओ ऐप में नए टेक प्रोटोकॉल और लिस्टें आ जाती थीं। इससे लगता था कि ये एल्गोरिदमिक चेक चलाते समय ईसीआई के पास कोई साफ प्लान ही नहीं था।”
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी एसआईआर, जिसमें वोटर रोल को जीरो से बनाया जा रहा है, की वजह से पहले ही 11 राज्यों में 86.46 लाख लोग ‘अनमैप्ड’ मार्क हो चुके हैं और 3.7 करोड़ लोग ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं। कलेक्टिव ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उत्तर प्रदेश का ड्राफ्ट वोटर लिस्ट अभी बाकी है, वो 31 दिसंबर को पब्लिश होगा। बिना कोडिफाइड एल्गोरिदम और प्रोटोकॉल के इस्तेमाल से एक और लेयर की अपारदर्शिता और अफरा-तफरी पैदा हो गई है, ये हमारी जांच में पता चला। हमने ईसीआई को लिखकर इन सॉफ्टवेयर्स के इस्तेमाल के सभी लिखित निर्देश और प्रोटोकॉल की कॉपी मांगी। जवाब नहीं आया। हालांकि जिस तरह से लोगों ने बातचीत की है, उससे यह बात साफ है कि कुछ न कुछ भयंकर गडबडी हुई है।
रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट को सॉफ्टवेयर खराब बताने के सिर्फ आठ दिन बाद ईसीआई ने संदिग्ध डुप्लिकेट कार्ड होल्डर्स को पकड़ने वाला सॉफ्टवेयर फिर चालू कर दिया। ये 12 राज्यों में चल रही वोटर रजिस्ट्रेशन के चौथे हफ्ते में किया गया। लेकिन इस बार ईसीआई ने अपनी ही मैनुअल और निर्देशों को कूड़े में डाल दिया, जिनमें संदिग्ध डुप्लिकेट केस की विस्तृत ग्राउंड वेरिफिकेशन जरूरी थी।
डिस्ट्रिक्ट चुनाव अधिकारियों या बीएलओ को संदिग्ध केस सुलझाने के लिए कोई लिखित प्रोटोकॉल या स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर जारी नहीं किया गया। कलेक्टिव का दावा हे कि हमने दो राज्यों (वोटर रोल रिवीजन वाले) के आठ डिस्ट्रिक्ट, कांस्टीट्यूएंसी और स्टेट लेवल अधिकारियों से बात करके कन्फर्म किया।
बीएलओ और ईआरओ ने नाम न छापने की शर्त पर रिपेाटर्र कलेक्टिव को बतााया है कि “हम कॉमन सेंस और लॉजिक लगाकर इन गड़बड़ियों को ठीक कर रहे हैं। कलेक्टिव का दावा है कि हमने बूथ लेवल ऑफिसर्स के फोन पर डी-डुप्लिकेशन सॉफ्टवेयर काम करते देखा।
ऐसे में अगर रिपोटर कलेक्टिव के दावे पूरी तरह से सही पाए जाते हैं तो ये भयंकर खेल है। क्यों बिहार में उस साफ्वेयर का यूज न करके14.35 लाख वोटर्स को रहने दिया गया और क्यों पहले ईसीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दावा पेश किया कि ये साफ्वेेयर फर्जी है और अब इसी साफ्वेयर को दूसरे 12 राज्यों में यूज कर रहा है। साथ ही ये भी सवाल है कि आखिर क्यों दूसरा साफ्वेयर बिना किसी नोट्रिफिकेशन और जानकारी के प्रयोग किया जा रहा है और इसमें हर दिन नए अपडेट क्यों आ रहा हैं। ऐसे में क्या वोटर लिस्ट सही हो पाएगी।



