बिगड़ते बोल: नेता की होती है छवि खराब

  • भाजपा, आप व कांग्रेस सभी मांग चुके हैं माफी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। पिछले कुछ सालों में देखने में आ रहा है कि नेता अपनी बोली पर काबू नहीं रख पार रहे हैं। बिगड़ते बोल की बीमारी विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष में भी जोरों से लगी है। इधर जब से मोदी प्रधानमंत्री बने है वह विपक्ष पर अपने कटाक्ष से हमेशा सियासी माहौल को गर्म कर देते है। जब विपक्ष हमलावर हो जाता है तब सत्ता पक्ष से जुड़ा दल जुबानी जंग में उतर जाता है। इस तरह बात कभी-कभी इतनी बढ़ जाती है कि मामला पुलिस से कोर्ट तक पुहंच जाता है। बाद में संबंधित नेता माफी मांग कर किनारा कर लेता है पर वह यह नहीं सोचता है उसकी वजह से आम जन में नेता की छवि खराब होने लगती है उसका खामियाजा चुनाव में उठाना पड़ता है।
इस तरह की बयानबाजी से राजनीतिज्ञ अपनी विश्वसनीयता खुद गंवा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद उन पर कोई असर नहीं होता क्योंकि उनके इर्दगिर्द मौजूद लोग उन्हें यह अहसास कराते हैं कि आप टीवी पर चमक रहे हैं, अखबार में छप रहे हैं, सोशल मीडिया पर छाये हैं और जनता आपके पक्ष में दिख रही है। राजनीति में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला चलता रहता है। लेकिन नेताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जो आरोप लगा रहे हैं उसका कोई आधार हो। निराधार आरोप लगाने से अनावश्यक विवाद खड़े होते हैं और फिर जब कानून का डंडा चलता है तो गलतबयानी या झूठे आरोप लगाने के लिए नेताओं को माफी मांगनी पड़ती है। राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदा मामले में प्रधानमंत्री पर आरोप लगाये, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा तो राहुल गांधी ने सिर्फ खेद जताकर बच निकलने की कोशिश की लेकिन सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाने के लिए बिना शर्त माफी मांगी। देखा जाये तो कांग्रेस में सिर्फ राहुल गांधी ही माफीवीर नेता नहीं हैं बल्कि अब ऐसे नेताओं की संख्या पार्टी में बढ़ती जा रही है। हम आपको यह भी याद दिला दें कि कांग्रेस सरकार के दौरान सूचना और प्रसारण मंत्री रहते हुए मनीष तिवारी तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर झूठे आरोप लगाने के चलते मुंबई की कोर्ट में माफी मांग चुके हैं। अब कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री के स्वर्गीय पिता के लिए जो अपमानजनक शब्द प्रयोग किये उसके चलते उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गयी, मामला गिरफ्तारी और कोर्ट तक पहुँचा तो वह भी बिना शर्त माफी के लिए तैयार हो गये। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल भी कई नेताओं पर आरोप लगा कर बिना शर्त माफी मांग चुके हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल स्वर्गीय अरुण जेटली, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और भाजपा के नेता रहे अवतार सिंह भड़ाना पर आरोप लगा कर बिना शर्त माफी मांग चुके हैं। अरुण जेटली से तो आम आदमी पार्टी के कई अन्य नेताओं ने भी झूठे आरोपों के लिए माफी मांगी थी।

नेताओं का बयान से पलटना नई बात नहीं

देखा जाये तो नेताओं का अपने बयान से पलटना या यह कहना कि उनके बयान को तोड़-मरोडक़र पेश किया गया, यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन नेताओं को समझना चाहिए कि ऐसी स्थिति क्यों आती है कि उन्हें अपने बयान पर खेद जताना पड़े या अदालत में मानहानि के मुकदमे के डर से बिना शर्त माफी मांगनी पड़े? इस सबसे राजनीतिज्ञ अपनी विश्वसनीयता खुद गंवा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद उन पर कोई असर नहीं होता क्योंकि उनके इर्दगिर्द मौजूद लोग उन्हें यह अहसास कराते हैं कि आप टीवी पर चमक रहे हैं, अखबार में छप रहे हैं, सोशल मीडिया पर छाये हैं और जनता आपके पक्ष में दिख रही है। बहरहाल, पवन खेड़ा भले अपनी पार्टी का पक्ष प्रखरता के साथ रखते हों लेकिन उन्हें दूसरे दलों पर हमलावर होते हुए अपने पर काबू भी रखना चाहिए। एक केंद्रीय मंत्री के परिजन से कथित रूप से जुड़े मुद्दे को उन्होंने जिस तरह पेश किया था उसके खिलाफ उनके खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया गया था और माफी की मांग की गयी थी। यह प्रकरण अन्य नेताओं के लिए बड़ा सबक है क्योंकि कानून का पालन करना और ज़बान संभाल के बोलने का नियम सिर्फ जनता के लिए ही नहीं बल्कि नेताओं के लिए भी होता है।

अपनी पार्टी से भी हो गया था विवाद

कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा अपने बेबाक अंदाज के लिए जाने जाचते हैं। चाहे फिर अपनी ही पार्टी से विवाद क्यों न हो? उन्होंने अपने विचार खुलकर रखे हैं। पिछले साल राज्यसभा न भेजे जाने पर पवन खेड़ा पार्टी से नाराज हो गए थे। पवन खेड़ा ने बिना क्षण गवाए ट्विटर पर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी। उन्होंने लिखा, शायद उनकी तपस्या में कमी रह गई होगी। खेड़ा के इस ट्वीट के बाद कांग्रेस ने उनको मीडिया और पब्लिसिटी सेल का चेयरमैन बनाया था।

1989 से कांग्रेस से जुड़े हैं पवन खेड़ा

पवन खेड़ा का राजनीतिक सफर 1989 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की युवा शाखा से शुरू हुआ था। हालांकि, 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। वह एक बार फिर 1998 में पार्टी में शामिल हुए, जब वह दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के राजनीतिक सचिव बने। 2013 में दीक्षित का कार्यकाल समाप्त होने तक खेड़ा इस पद पर बने रहे। 2015 के बाद से उन्हें टीवी चैनलों पर बहस और चर्चा में बेबाकी से कांग्रेस का पक्ष रखते देखा जा सकता है। वो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की एक पोल कमेटी के संयोजक भी बने। खेड़ा के सोशल मीडिया खातों के अनुसार, वह वर्तमान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, मीडिया और प्रचार और कांग्रेस के प्रवक्ता हैं।

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