एआई से होगा मानवता का विकास

रक्षा, शिक्षा और चिकित्सा में प्रयोग से आएगा बदलाव

  • बौद्धिक कृत्रिमता का चलन बढ़ा
  • फोटों से लेकर प्रिंट तक पर असर

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क/सिद्धार्थ शर्मा
नई दिल्ली। धीरे-धीरे आर्टीफिशियल इंटेलिजेस का प्रयोग बढ़ता जा रहर है। सार्वजनिक से लेकर निजी क्षेत्र में इसकी मांग बढ़ रही है। जानकारों की माने तो आने वाले समय में इसके उपयोग से मानव के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्र्तन की संभावना है। चिकित्सा, निमार्ण, रक्षा, शिक्षा, विज्ञान यहां तक की अंतरिक्ष तक में इसके ज्यादा से प्रयोग में आने की संभावना है। लेकिन इसका एक पहलू और है वह है इसका दुरुपयोग। ऐसा भी अंदेशा है कि कहीं इसके प्रयोग से मानवता को नुकसान न पहुंच जाए। हालांकि इस ओर भी ध्यान दिया जा रहा इसकी निगरानी केलिए हर स्तर से तंत्र बनाने की योजनाएं बनाई जा रहीं हैं।
आजकल जितने भी इमेज-एडिटिंग एप्स हैं, उनका दादा-परदादा फोटोशॉप ही है। वह हमारे फेसट्यून्ड मीडिया इको-सिस्टम का पूर्वज है। वह हमारी संस्कृति में कुछ इस तरह से पैठ गया है कि अब फोटोशॉप शब्द एक साथ क्रिया भी है और विशेषण भी। यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली डिजिटल युक्ति भी है। 30 से भी ज्यादा साल पहले इसका पहला संस्करण जारी किया गया था और आप आज जिन भी तस्वीरों को ऑनलाइन, प्रिंटेड, बिलबोर्ड्स या बस स्टॉप पर, पोस्टरों, प्रोडक्टस की पैकेजिंग आदि में देखते हैं, उन पर पेशेवर फोटोग्राफरों, ग्राफिक डिजाइनरों और अन्य विजुअल आर्टिस्टों के द्वारा काम किया गया होता है। ऐसे में अब जब फोटोशॉप जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में प्रवेश कर रही है तो उसके क्या मायने हैं? क्योंकि हाल ही में रिलीज किया गया एक बीटा-फीचर आपको यह सुविधा देता है कि आप चाहे जिस इमेजरी पर फोटोरियलिस्टिक तरीके से काम करके उसे तुरंत ही बदल दें। लेकिन जाहिर है, सेवा-शर्तों के अधीन रहते हुए। वास्तव में पिछले एक साल में इतने एआई इमेज जनरेटर्स रिलीज किए गए हैं कि किसी कम्प्यूटर की मदद से तस्वीरें एडिट करने का विचार पहले ही बाबा आदम के जमाने का लगने लगा है। फोटोशॉप की नई क्षमताओं में नई बात यह है कि वे वास्तविक और डिजिटल छवियों को बड़ी आसानी से आपस में मिला देती हैं और उन्हें एक बड़े यूजर-बेस के सामने प्रस्तुत कर देती हैं।

कल्पनाशीलता बढ़ेगी

इस सॉफ्टवेयर के चलते हर वह व्यक्ति जिसके पास एक माउस है, कल्पनाशीलता है और हर महीने 10 से 20 डॉलर खर्च करने की क्षमता है, वह तस्वीरों में बड़ी बारीकी से हेरफेर कर सकता है और इसके लिए उसका विशेषज्ञ होना भी जरूरी नहीं। ये एआई जनरेटेड छवियां इतनी वास्तविक मालूम होती हैं कि अब असली और नकली के बीच की सीमारेखाएं टूटने जा रही हैं। अच्छी खबर यह है कि फोटोशॉप बनाने वाली कम्पनी एडोबी ने इसके खतरों को भांप लिया है और वह डिजिटिली मैनिपुलेटेड तस्वीरों की चुनौती को सामना करने की योजना बना रही है। उसने एक ऐसी युक्ति बनाई है, जिसकी मदद से आप जान सकते हैं कि किसी इमेज फाइल में एआई की मदद से बदलाव किया गया है या नहीं। इस प्लान को कंटेंट ऑथेंटिसिटी इनिशिएटिव का नाम दिया गया है और इसका घोषित मकसद डिजिटल मीडिया की विश्वसनीयता को बढ़ावा देना है। एआई की मदद से क्रिएटर या पब्लिशर हर फेक-तस्वीर को पकडऩे के बजाय यह साबित कर सकेंगे कि उनके सामने प्रस्तुत कोई इमेज फर्जी है या वास्तविक है। आने वाले समय में आपको ट्विटर पर किसी कार दुर्घटना या आतंकी हमले या प्राकृतिक आपदा की कोई तस्वीरें दिखलाई दें और उनमें यह कंटेंट क्रेडेंशियल न सम्मिलित हो जो बताता हो कि यह तस्वीर कैसे क्रिएट और एडिट की गई थी, तो आप उन्हें फेक घोषित कर सकते हैं!

असली-नकली की पकड़ होगी

सरकारों, समाचार एजेंसियों और सामान्य पाठकों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण साबित होने जा रहा है कि वे असली और नकली में फर्क कर सकें। तब अगर आपको कोई ऐसी सूचना मिलती है, जिसके साथ कोई कंटेंट क्रेडेंशियल नहीं है तो आपको उसकी सत्यता पर संदेह करने का पूरा अधिकार होगा। लेकिन सवाल है ऐसा कब होगा? क्योंकि एडोबी अभी योजना ही बना रही है, जिसे धरातल पर आने में समय लगेगा, जबकि फोटोशॉप में एआई फीचर्स पहले ही बिना किसी सुरक्षा-तंत्र के लोगों तक बड़ी संख्या में जारी किए जाने लगे हैं। एआई कंटेंट जनरेशन भले ही अभी प्राथमिक अवस्था में हो, पर फोटोशॉप के नए फीचर्स के बाद व्यापक रूप से सर्वमान्य मानदंडों को निर्धारित करने की जरूरत निर्मित हो चुकी है। हम पहले ही कंटेंट के सैलाब में डूबे हुए हैं और अब रियलिस्टिक दिखने वाले आर्टिफिशियल फीचर्स से हालात और बदतर होने जा रहे हैं। टेक-कम्पनियों को एडोबी के सिस्टम या किसी अन्य सेफ्टी-नेट को अपनाने के लिए हरकत में आना होगा, क्योंकि एआई इमेजरी दिन-ब-दिन परिष्कृत होती जा रही है। हमारे पास गंवाने के लिए समय नहीं है।

भारत में निगरानी की तैैयारी

आने वाले समय एआई की मांग बढ़ेगी। जाहिर सी बात है कि जब उपयोगिता बढ़ेगी तो उसके लाभ और हानि भी दिखाई देगा। इसका प्रभाव उपभोक्ताओं पर गलत न हो इसके लिए सरकार कुछ नियम बनाने पर विचार कर रही है। इस बाबत इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि डिजिटल नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को रेगुलेट किया जाएगा। डिजिटल इंडिया बिल पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि एआई से डिजिटल नागरिकों को नुकसान नहीं पहुंचाता है को सुनिश्चित करने के लिए एआई को रेगुलेट किया जाएगा। विशेषाज्ञों ने कहा कि एआई से नौकरियों को कोई खतरा नहीं है। इंटरनेट पर विषाक्तता और आपराधिकता में काफी वृद्धि हुई है। डिजिटल नागरिकों को नुकसान पहुंचाने के प्रयासों को सफल नहीं होने देंगे। 85 करोड़ भारतीय इंटरनेट का उपयोग करते हैं, जिसके 2025 तक 120 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। नया पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल भी जल्द ही संसद में पेश किया जाएगा। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में हम विश्व स्तरीय कारखानों, भारी निवेश और बड़ी संख्या में नौकरियों के सृजन को देख रहे हैं। एआई का प्रयोग अच्छे कार्यों में हो तो ठीक है पर उसका प्रयोग अगर विध्वंसक कामों में होगा तो वह मानवता के लिए भी हानिकारक है। अभी दुनिया में ऐसी घटनाएं भी देखने को मिली है कि इसका प्रयोग गल प्रयोजनों में किया गया जैसे अभी हाल में अमेरिका के पेंटागन के पास आग लगने की खबरों को चैनलों में दिखाया गया था जबकि वो पूरी तरह से गलत वीडियो था। अब भारत में ऐसा न हो इसके लिए एक निगरानी तंत्र बनाना जरूरी है।

एडिटिंंग से दिखेगी वास्तविकता

हाल ही में एक रेडहेडेड पक्षी की तस्वीर खींची, जो किसी आउटडोर डाइनिंग टेबल पर बैठा था। एक एआई सिस्टम से उसे फोटोशॉप करने की कोशिश की। महज 30 सेकंड के बाद अब वह पक्षी बांह पर बैठा हुआ था और एडिटिंग इतनी वास्तविक थी कि उस पर कोई भी संदेह नहीं कर सकता था। हम एक बहुत ही विचित्र समय में जी रहे हैं!

नौकरियां नहीं होंगी प्रभावित

फिलहाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से नौकरियों को कोई खतरा नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने वर्तमान रूप में एक तकनीक के रूप में काफी हद तक कार्योन्मुख है लेकिन ऐसी स्थिति से निपटने में सक्षम नहीं है जहां लोजिक और रीजनिंग की आवश्यकता हो। एआई विघटनकारी है, अगले कुछ वर्षों में नौकरियों पर इसका कोई खतरा नहीं दिखता। डॉकिंग (सहमति के बिना इंटरनेट पर व्यक्तियों की निजी जानकारी पोस्ट करना) जैसे अपराध बढ़ रहे हैं। भारत में कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है और केंद्र को राज्य सरकारों के साथ इस पर सख्ती से काम करना होगा । देश में डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिला है और साइबर स्पेस में सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार का विजन और मिशन है।

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