राज्यों में केंद्रीय जांच एजेंसियों के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल राजनीतिक पैतरा या मामला कुछ और……

नई दिल्ली। विपक्षी पार्टियां केंद्र में शासित भाजपा सरकार पर सीबीआईऔर ईडी का दुरुपयोग का लगातार लगाते रही है। केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के मुद्दे पर 14 राजनीतिक पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दी थी। अब तमिलनाडु सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा एक्साइज मंत्री सेंथिल बालाजी की मनी लॉड्रिंग मामले में गिरफ्तारी के बाद राज्य में केंद्रीय एजेंसियों की एंट्री पर बैन लगा दी है। तमिलनाडु में बैन लगाने के बाद अब बिहार में भी केंद्रीय एजेंसियों पर बैन लगाने की मांग महागठबंधन के नेताओं ने उठानी शुरू कर दी है।
केंद्रीय एजेंसियों के बैन के मुद्दे पर बिहार में भाजपा के नेता और महागंठबंधन के नेता आमने-सामने हैं। बिहार में महागठबंधन के सभी दल ईडी और सीबीआई की एंट्री की मांग कर रहे हैं और इस बाबत कानून बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन भाजपा इसके खिलाफ है और इसे लेकर जुबानी जंग शुरू हो गयी है।
बता दें कि फिलहाल आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान, केरल, छतीसगढ़, पंजाब और तेलंगाना जैसे कुछ राज्य हैं, जिन्होंने कानून बनाया है कि उनके यहां सीबीआई या ईडी की एंट्री बिना राज्य सरकार की अनुमति नहीं हो सकती है और अब इस कड़ी में तमिलनाडु की सरकार भी शामिल हो गयी है।
एक्साइज मंत्री सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बाद तमिलनाडु की सरकार ने सीबीआाई को दी गई सामान्य सहमति को वापस ले लिया है और सीबीआई को अब दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत अनुमति लेनी होगी यानी अब उपरोक्त राज्यों की तरह ही अब तमिलनाडु में भी बिना राज्य सरकार की अनुमति के सीबीआई कोई भी मामला अपने हाथ में नहीं ले पाएगी।
जानकारों की मानें तो विपक्षी पार्टी के नेताओं में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को छोडक़र बहुत कम ऐसे विपक्षी पार्टी के नेता हैं, जिनके खिलाफ ईडी या सीबीआई जांच नहीं कर रही है। बिहार में लालू प्रसाद यादव के परिवार में तेजप्रताप यादव को छोडक़र परिवार के लगभग हर सदस्य के खिलाफ ईडी या सीबीआई जांच हो रही है। इसी तरह से पश्चिम बंगाल में भी सीएम ममता बनर्जी के परिवार के सदस्यों में से अभिषेक बनर्जी, उनकी पत्नी रुजिरा बनर्जी सहित कई टीएमसी नेताओं के खिलाफ सीबीआई और ईडी जांच चल रही है। ये नेता कई बार ईडी और सीबीआई के कार्यालय में हाजिर भी हो चुके हैं। आरजेडी के नेता आरोप लगाते हैं कि जिस दिन से बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी है। उसी दिन से सीबीआई और ईडी की सक्रियता बढ गयी है। उसी तरह से ममता बनर्जी कहती हैं कि बीजेपी में शामिल होने वाले नेताओं पर ईडी और सीबीआई कार्रवाई नहीं करती है। वे वाशिंग मशीन में धुल जाते हैं। लेकिन विपक्षी पार्टियों के खिलाफ प्रतिशोधात्मक तरीके से कार्रवाई की जाती है। ऐसे में स्वाभाविक है कि जिन पार्टी के नेताओं के खिलाफ सीबीआई या ईडी की जांच चल रही है। वे इस पर रोक लगाने की कोशिश करें। विपक्षी पार्टियां इसके पहले भी इस मुद्दे पर एकजुट होते रही हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सीबीआई या ईडी के राज्यों में बैन लगने से क्या कार्रवाई पर लगाम लग जाएगी। ऐसा नहीं है, क्योंकि यदि राज्य सरकार अनुमति नहीं दे तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है और हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सीबीआई या ईडी की जांच शुरू हो सकती है।पश्चिम बंगाल सहित देश के कई राज्यों में इस तरह के उदाहरण हैं कि जब राज्य सरकारों ने सीबीआई या ईडी जांच की अनुमति नहीं दी, लेकिन बाद में हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह जांच हुई। जैसे बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले के मामले में राज्य सरकार ने सीबीआई और ईडी जांच का विरोध किया। इसी तरह से नारदा स्टिंग मामले या सारदा चिटफंड मामले की जांच का राज्य सरकार ने सीबीआई जांच का विरोध किया था, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद इनकी जांच सीबीआई और ईडी से हो रही है।वास्तव में ईडी और सीबीआई पर बैन की मांग या बैन करना केवल एक सियासत है, जिसके माध्यम से विपक्षी पार्टियों केंद्र में शासित भाजपा सरकार पर दवाब बनाने की कोशिश करती है और मामले को विलंबित करने की कोशिश करती हैं, लेकिन इसका इम्पैक्ट शायद बहुत कम है, जितनी मांग की जा रही है।

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