रावण कैम्प का हिस्सा बनेंगे ओवैसी
नई दिल्ली। अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को बड़ा झटका लगा है। मायावती ने यूपी में राजनीतिक जमीन की तलाश में लगे ओवैसी के साथ चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया है। मायावती ने ओवैसी के साथ गठबंधन की खबरों का खंडन किया है। इसके बाद अटकलें लगाई जा रही हैं कि ओवैसी अब दलित-मुस्लिम वोट बैंक तक पहुंचने के लिए भीम आर्मी के चंद्रशेखर की ओर रुख कर सकते हैं। चंद्रशेखर की भागीदारी संकल्प मोर्चा से भी बातचीत चल रही है।
मायावती के गठबंधन की खबर को खारिज करने के बाद ओवैसी ने रविवार को एक ट्वीट किया। इसमें वह सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के ओम प्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ हैं। ओवैसी ने ट्वीट किया कि उनकी पार्टी 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेगी। राजभर ने पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव के लिए भागीदारी संकल्प मोर्चा तैयार किया है। उनकी पार्टी एसबीएसपी के अलावा अन्य छोटे दलों को भी इसमें शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
इस मोर्चे के लिए राजभर की बात भीम आर्मी चीफ और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर से भी चल रही है। साल की शुरुआत में दोनों ने करीब एक घंटे तक बात की। दोनों के बीच पूर्वांचल के दलितों और पिछड़ों को जोडऩे की रणनीति पर चर्चा हुई।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एआईएमआईएम के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने कहा, जो पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने गठबंधन में एआईएमआईएम नहीं लेगी, वह बीजेपी को नहीं रोक पाएगी लेकिन यह गठबंधन नहीं ठगबंधन होगा। फिलहाल हम 100 सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। अगर हम अकेले लड़ेंगे तो 100 सीटों पर लड़ेंगे।
शौकत अली ने आगे कहा, हम भगीदरी संकल्प मोर्चा का हिस्सा हैं। हमारा संकल्प बीजेपी को हटाने का है। सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी को नहीं हटा पाएगा, हमने 2019 का चुनाव देखा है। यहां तक कि कांग्रेस और सपा गठबंधन भी बीजेपी को हराने में सक्षम नहीं होगा, हमने 2017 में यह देखा था।
एआईएमआईएम से हाथ मिलाने से परहेज कर रहे सपा-बसपा पर शौकत ने कहा, ये लोग गंभीर नहीं हैं, दरअसल इन लोगों से बीजेपी को फायदा होता है। देखिए जहां 60 फीसद मुसलमान हैं, वहां बीजेपी का एक विधायक है। अगर सपा-बसपा और कांग्रेस वहां के मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारते हैं तो फिर मुस्लिम वोट बंट जाता है। हम चाहते हैं कि इस विभाजन को रोका जाए। हमने प्रस्ताव रखा था कि बेहतर होगा कि जो भी धर्मनिरपेक्ष दल हों, वे एक मंच पर आएं। अन्यथा भाजपा को दोबारा सत्ता में आने से कोई नहीं रोक पाएगा।
चंद्रशेखर से हाथ मिलाने पर शौकत अली ने कहा, हमारा मोर्चा समान विचारधारा वाली सभी पार्टियों के लिए खुला है, जो भी यहां आता है उसका स्वागत है। राजभर हमारे संयोजक हैं, वह फैसला करेंगे।
चंद्रशेखर की बात करें तो वह यूपी चुनाव में अपनी ताकत दिखाने की तैयारी कर रहे हैं। चंद्रशेखर लंबे समय से यूपी की राजनीति में सक्रिय हैं और मायावती के खिलाफ समानांतर राजनीति का बोर्ड लगा रहे हैं। पश्चिमी यूपी को मायावती का गढ़ माना जाता है। इस गढ़ के कारण उन्होंने कई बार सत्ता पर कब्जा जमाया है, लेकिन इस बार पंचायत चुनाव में आजाद पार्टी को यहां कई जिलों में सीटें मिलीं। इसे बसपा के गढ़ में सेंध के संकेत के तौर पर देखा गया।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ओवैसी से मायावती की दूरी की वजह पर वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला कहते हैं, मायावती ने बिहार में ओवैसी का इस्तेमाल किया है। मायावती सवर्ण जाति के वोट के साथ-साथ पिछड़ों को भी चाहती हैं और ये दोनों वोट बैंक ओवैसी से दूर हैं। ओवैसी को मुस्लिम वोट मिल पाएंगे या नहीं, इस पर विवाद चल रहा है। लेकिन इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि उनकी वजह से अन्य हिंदू वोट कट जाएंगे।
बता दें कि पिछले साल बिहार चुनाव में ओवैसी बीएसपी और आरएलएसपी के सेक्युलर डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा थे। इस चुनाव में बीएसपी ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक सीट पर जीत दर्ज की जबकि ओवैसी की एआईएमआईएम ने 20 सीटों पर उम्मीदवारों को मैदान में उतारा।
मायावती की तुलना में चंद्रशेखर से करने पर बृजेश शुक्ला कहते हैं, वह भीड़ इक_ा कर सकते हैं, लेकिन भीड़ जुटाने के साथ उन्हें वोट मिलेंगे, यह संदेहास्पद है। उन्होंने अभी दो उपचुनाव लड़े थे-एक बुलंदशहर की सीट से और दूसरा अमरोहा से । दोनों सीटों पर दलितों ने उसका समर्थन नहीं किया। मायावती बुलंदशहर में दूसरे नंबर पर आईं। कोर दलित वोट अभी भी मायावती के पास है।