केशव मौर्य की उपेक्षा भारी पड़ेगी सरकार को, पिछड़ी जातियों में नाराजगी
- सरकार के ताकतवर लोगों ने केशव मौर्य को बदनाम करने में नहीं छोड़ी कोई कसर
- मामूली चाय की दुकान चलाने से यहां तक का सफर तय करने वाले केशव को उनकी ही सरकार ने लगाया किनारे
- कुछ अफसरों ने केशव के खिलाफ खबरें छपवाने से लेकर बदनाम करने तक को बनायी थी रणनीति
- केन्द्रीय नेतृत्व के पास पहुंची सभी की जन्मपत्री, अब होगा हिसाब
- केशव को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पिछड़ी जातियों को दिया जा सकता है संदेश कि वो ही बांटेंगे टिकट
संजय शर्मा. लखनऊ। लगभग पांच साल पहले की बात है। विधानसभा चुनाव से पहले गैर यादव पिछड़ी जातियों को एक करने के लिये भाजपा ने एक लंबा दांव खेला और केशव मौर्य को यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। सारे राजनेता चौंके पर जल्दी ही पता चल गया कि यह दांव सही था। पूरे प्रदेश में संदेश दिया गया कि सरकार बनी तो एक पिछड़ी मौर्य जाति का नेता सीएम होगा मगर चुनाव जीतने के बाद योगी आदित्यनाथ सीएम और केशव मौर्य डिप्टी सीएम बने। पर इसके बाद जिस तरह से केशव मौर्य की उपेक्षा सरकार की तरफ से की गयी उससे गांव-गांव तक संदेश चला गया कि सरकार ऊंची जाति की है और पिछड़ी और दलित जातियों की उपेक्षा हो रही है।
केशव को बदनाम करने के लिये जो राजनीति की शतरंज पर बिसात बिछायी गयी उसकी पूरी जन्मपत्री अब केन्द्रीय नेतृत्व को दी गयी और उसने संघ के बड़े लोगों को भी समझाया कि केशव ने अट्ठारह साल संघ और उसके सहयोगी संगठनों को दिये हैं। मामूली चाय की दुकान चलाने वाले इस नेता का सफर अपनी मेहनत से डिप्टी सीएम तक पहुंचा है। अब बाजी फिर पलटती नजर आ रही है। भाजपा को समझ आ गया है कि केशव मौर्य को चार साल तक उपेक्षित रखने के नुकसान ज्यादा हो गये। केशव के साथ-साथ सूबे में भाजपा को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले सुनील बंसल पर भी निशाना साधा गया और उन्हें बदनाम करने की कोशिशें की गयीं। सरकार के प्रमुख लोगों और कुछ अफसरों की इस कार्यशैली से भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान हो गया है। केशव मौर्य को सिर्फ पीडब्ल्यूडी तक सीमित कर दिया गया। उनके विभाग में ऐसे अफसर तैनात किये गये जो उनकी न सुने। विभाग के ठेकों को लेकर तरह-तरह की बातें फैलायी गयी जिससे केशव मौर्य की छवि प्रभावित हो। बड़े-बड़े कार्यक्रमों में उनकी उपेक्षा की गयी। अब यही बातें गांव-गांव चर्चा का विषय बन गयी हैं। उन्नाव के छोटे से गांव सहजवा में सोनू रावत कहते हैं यह सरकार तो ऊंची जातियों की सरकार है। केशव मौर्य के तो नाम की तख्ती तक उखड़वा कर फेंक दी गयी। यह अकेले एक गांव की बात नहीं है। गांव-गांव में सीएम योगी का वो वीडियो पहुंच चुका है जिसमें वे कह रहे हैं कि यूपी में पांच बड़े पद होते हैं जिसमें चार पर पंडित है और एक पर क्षत्रिय तो मुझ पर क्षत्रियों को संरक्षण का आरोप क्यों लगा रहे हैं। अब ग्रामीण इसी वीडियो को दिखा कर पूछ रहे हैं कि वोट लेते समय तो कहा था सीएम पिछड़ी जाति का बनेगा सीएम तो छोड़िए पिछड़ी जाति के इतने बड़े नेता की तो हर स्तर पर उपेक्षा की जा रही है। भाजपा समझ गयी है कि यूपी में केशव के साथ-साथ अधिकांश विधायकों की भी यही हालत है। एक दो मंत्रियों को छोड़कर सभी मंत्रियों की हैसियत खत्म कर दी गयी है। अपने विभाग तक में कोई काम कराने की हालत में नहीं है ये मंत्री। नौकरशाही पूरी सरकार पर हावी हो गयी है। ऐसे में चुनाव में सरकार की भारी फजीहत होना तय है। कोरोना काल में भी सरकार पूरी तरह फेल नजर आयी। इन हालातों में केशव मौर्य को प्रदेश अघ्यक्ष बनाने की चर्चा तेज हो गयी है। ऐसा करके भाजपा संदेश देगी कि पूरे प्रदेश में टिकट बंटवारे में उनकी चलेगी और एक छिपा संदेश यह भी होगा कि सरकार बनने पर इस बार सीएम केशव मौर्य ही होंगे।
जुझारू नेता हैं मौर्य
केशव प्रसाद मौर्य जुझारू नेता रहे हैं। हिंदुत्व से जुड़े राम जन्म भूमि आंदोलन, गोरक्षा आंदोलनों में भी उन्होंने हिस्सा लिया और जेल गए। इलाहाबाद के फूलपुर से 2014 में पहली बार सांसद बने। वे आरएसएस से जुड़ने के बाद वीएचपी और बजरंग दल में भी सक्रिय रहे और भाजपा को उत्तर प्रदेश में सत्ता दिलाने में अहम रोल निभाया।
पिछड़ी जातियों पर है पकड़
मौर्य कोइरी समाज के हैं और यूपी में कुर्मी, कोइरी और कुशवाहा ओबीसी में आते हैं। चुनावों में भाजपा को इन जातियों का समर्थन मिलता रहा है और यही वजह है कि पार्टी एक बार फिर डिप्टी सीएम केशव मौर्य को आगे कर पिछड़ी जातियों को संदेश देना चाहती है। इन जातियों पर केशव प्रसाद मौर्य की काफी पकड़ है।