MVA में जाने वाले हैं भुजबल ! BJP की जिद कहीं पड़ न जाए भारी

 

मुंबई। देश में इस समय चुनावी बयार काफी झूम-झूमकर चल रही है। लोकसभा चुनावों के चलते पूरे देश का सियासी तापमान भी गर्माया हुआ है। सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों के पहले दो चरणों के मतदान हो चुके हैं। दो चरणों का मतदान होने के बाद एक ओर विपक्ष जहां काफी उत्साहित है और अपनी जीत के दावे कर रहा है। तो वहीं सत्ता पक्ष भारतीय जनता पार्टी के चेहरे की हवाएं उड़ी हुई हैं। और अब तक अबकी बार 400 पार का लक्ष्य और उम्मीदें लेकर चल रही भाजपा व पीएम मोदी के तेवर भी काफी ढीले पड़ गए हैं। इसीलिए अब बीजेपी का ये नारा और उद्घोष भी काफी धीमा पड़ गया है।

क्योंकि कहीं न कहीं ऐसा मालूम पड़ता है कि भाजपा को भी ये एहसास हो गया है कि शुरूआती दो चरणों में माहौल वैसा नहीं दिखा जैसा भाजपा ने बनाने की कोशिश की थी। वहीं कम वोटिंग प्रतिशत भी भाजपा के लिए एक चिंता की बात रही है। क्योंकि यूपी, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मतदाताओं में उत्साह की कमी देखने को मिली। और वोटिंग उम्मीद से भी काफी कम रही। यही कारण है कि भाजपा कुछ ज्यादा ही बेचैन नजर आ रही है। और उसे अब 400 पार तो दूर की बात खुद की सत्ता में वापसी तक काफी मुश्किल दिखाई पड़ने लगी है। यही कारण है कि बीजेपी अब हर राज्यों में काफी मेहनत कर रही है लेकिन उसकी मेहनत सफल होते नहीं दिखाई पड़ रही है।

काफी प्रयासों के बाद भी महाराष्ट्र में भाजपा की हालत काफी पतली नजर आ रही है। दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों में टूट कराके उन्हें अपने पाले में मिलाने के बाद भी भाजपा की स्थिति महाराष्ट्र में सुधरी नहीं है। उल्टा इन पार्टियों को अपने साथ लेकर बीजेपी और ज्यादा ही मुश्किल में पड़ गई है। क्योंकि शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी को अपने साथ जोड़ने के बाद अब बीजेपी को अपने महायुति गठबंधन में इन दलों के साथ सीट बंटवारे को लेकर भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। यहां तक की अभी भी कुछ सीटों पर पेंच फंसा ही है।

इसी वजह से महायुति गठबंधन में कहीं न कहीं आपसी तकरार भी चल रही है और आपस में ही एक-दूसरे से नाराजगी भी देखने को मिल रही है। इस बीच अब महायुति में एक और आपसी मनमुटाव की चर्चा जोर पकड़ रही है। और प्रदेश में एक नए सियासी घटनाक्रम का अंदेशा लगाया जा रहा है। दरअसल, अजित पवार की एनसीपी के वरिष्ठ नेता व महाराष्ट्र के पूर्व सीएम रहे छगन भुजबल ने कुछ ऐसा बयान दे दिया है जिससे महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई है और भाजपा के खेमे में भी खलबली मच गई है। तो वहीं छगन भुजबल के बयान से महायुति में महाभारत का भी अंदेशा लग रहा है।

दरअसल, अजित गुट के सीनियर लीडर छगन भुजबल नासिक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाह रहे थे। इसके लिए अजित पवार की एनसीपी ने पूरी ताकत भी लगाई और काफी प्रयास किए। लेकिन भाजपा की जिद के आगे अजित की नहीं चली। और छगन भुजबल ने खुद ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया। हालांकि, इसके बाद खुद पीएम की ओर से भी छगन भुजबल को चुनाव लड़ने की बात कही गई।

लेकिन भुजबल नहीं माने। इसके बाद से ही ऐसे कयास लगने शुरू हो गए कि भुजबल कहीं न कहीं अजित पवार और महायुति गठबंधन से नाराज चल रहे हैं। लेकिन अब छगन भुजबल के बयान ने प्रदेश की सियासत में नया भूचाल ला दिया है। क्योंकि उनके इस बयान से महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई है तो वहीं भाजपा व अजित पवार समेत पूरा महायुति गठबंधन और विपक्ष का एमवीए गठबंधन दोनों के ही कान भी खड़े हो गए हैं।

एनसीपी अजित पवार गुट के बड़े नेता और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल ने अपने एक बयान में कहा कि महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के टूटने से शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्ध‌व ठाकरे व एनसीपी (एसपी) के नेता शरद पवार के लिए मतदाताओं के मन में सहानुभूति है। इसका फायदा इन दोनों को होगा। इसके चलते बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति के लिए जीत का मार्ग आसान नहीं है।

इतना ही नहीं, राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री भुजबल ने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोगों को भरोसा है। एक बार फिर उनकी सरकार बने यह लोगों की इच्छा है, लेकिन बीजेपी के 400 पार के नारे को लेकर लोगों में डर भी है। भुजबल ने यह बात एक चैनल को दिए साक्षात्कार में कही। भुजबल के इस बयान के बाद से ही महाराष्ट्र की सियासत गरमाई हुई है और तरह-तरह के कयासों व चर्चाओं ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है।

भुजबल का यह बयान ऐसे वक्त में आया है, जब चुनाव अपने पूरे जोर पर है। नासिक सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक छगन भुजबल ने हालांकि अब खुद को चुनावी रेस से अलग कर लिया है। लेकिन नासिक सीट पर उम्मीदवार कौन होगा, इसे लेकर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। भुजबल ने इसको लेकर भी अपनी नाराजगी व्यक्त की। जब उनसे पूछा गया कि क्या एनसीपी (अजित गुट) ने नासिक सीट पर अपना दावा छोड़ दिया है? इस पर भुजबल ने कहा कि मैं ऐसा नहीं कह सकता। इस बारे में पार्टी के वरिष्ठ नेता ही फैसला ले सकते हैं।

मैं इतना जानता हूं कि होली के दिन मुझसे कहा गया था कि मुझे नासिक से लोकसभा का चुनाव लड़ना है। मैंने खुद यह सीट नहीं मांगी थी, लेकिन जब मुझसे चुनाव लड़ने को कहा गया, तब मैंने इस बारे में सोचना शुरू किया। एनसीपी के वरिष्ठ नेता ने आगे कहा कि 2009 में मेरा भतीजा इस सीट से सांसद रह चुका है। इसके बाद शिवसेना के हेमंत गोडसे दो बार से सांसद हैं। अमित शाह के कहने के बाद जब इस सीट पर उम्मीदवारी घोषित नहीं हो पा रही थी। तो मुझे लगा कि कहीं मैं ही तो अड़चन नहीं हूं।. इसलिए मैंने चुनावी रेस से हटने का फैसला लिया।

लेकिन, मेरे हटने के बाद भी अब तक इस सीट पर उम्मीदवार घोषित नहीं हो पाया है। जाहिर है कि छगन भुजबल के बयान में नाराजगी साफ जाहिर हो रही है। यही कारण है कि भुजबल के बयान से भाजपा और अजित पवार दोनों ही घबराए हुए हैं और दोनों ही अपने कान खड़े किए हुए हैं। कि आखिर अब भुजबल का अगला कदम क्या होगा और क्या भुजबल की नाराजगी कहीं भाजपा व महायुति को भारी तो नहीं पड़ने वाली है।

बता दें कि नासिक पर अपनी उम्मीदवारी का ऐलान न होने के चलते और ऐलान में देरी के चलते छगन भुजबल ने खुद को भले ही नासिक सीट से चुनावी रेस के बाहर करने का सार्वजनिक ऐलान कर दिया है। लेकिन जिस महाराष्ट्र में ओबीसी समाज के संगठन ‘समता परिषद’, जिसके कर्ताधर्ता खुद भुजबल हैं, ने उम्मीदवार चुनाव में उतारने की तैयारी कर महायुति पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है।

बता दें कि भुजबल मराठों को ओबीसी कोटे में से आरक्षण देने के खिलाफ सबसे ज्यादा खुलकर बोलने वाले नेता हैं। इसलिए मराठा समाज में उन्हें लेकर नाराजगी है। ऐसे में, भुजबल की समता परिषद ने नासिक और छत्रपति संभाजीनगर में ओबीसी उम्मीदवार खड़े करने का मन बनाया है। खबर है कि नासिक से दिलीप खैरे और संभाजीनगर से मनोज घोडके ने नामांकन फॉर्म लिया है। दोनों समता परिषद के पदाधिकारी बताए जाते हैं।

फिलहाल जो भी हो लेकिन भुजबल की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है और इसका नुकसान पूरे महायुति गठबंधन को भी उठाना पड़ सकता है। क्योंकि जाहिर है कि महाराष्ट्र में भाजपा व महायुति की हालत वैसे ही काफी खराब नजर आ रही है। क्योंकि जनता का समर्थन नहीं मिल पा रहा है। एक ओर जहां एकनाथ शिंदे और अजित पवार से जनता अपनी ही पार्टी को धोखा देने के चलते नाराज है। तो वहीं दूसरी ओर भाजपा से नाराजगी एक तो महंगाई-बेरोजगारी को लेकर है। दूसरी भाजपा की फूट डालो राज करो की नीति और शिवसेना-एनसीपी को तुड़वाने का कलंक भी भाजपा के ही माथे पर है।

यही कारण है कि इस वजह से भी जनता भाजपा से नाराज है। क्योंकि जिनको कुछ दिन पहले तक बीजेपी के नेता गाली देते थे और आरोप लगाते थे। अचानक सत्ता में आऩे के लिए भाजपा ने उन्हीं लोगों से हाथ मिला लिया और उन्हें अपने साथ सरकार में शामिल कर लिया। ये सब ऐसे फैक्टर हैं जो भाजपा के खिलाफ वैसे ही जा रहे हैं। ऊपर से छगन भुजबल जैसे बड़े नेताओं की नाराजगी अजित पवार और भाजपा समेत पूरे सत्ता पक्ष के महायुति गठबंधन को भारी पड़ सकती है।

फिलहाल अब देखना ये है कि छगन भुजबल क्या आने वाले दिनों में कोई बड़ा सियासी कदम उठाने वाले हैं? क्या आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में एक बार फिर एक बड़ा सियासी फेरबदल या सियासी घटनाक्रम देखने को मिल सकता है? या फिर अजित पवार छगन भुजबल को मनाने और उनकी गुस्सा को शांत करने में कामयाब हो सकते हैं। क्या होता है ये तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा।

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