इन 27 सीटों ने बढ़ाई मोदी-योगी की बेचैनी, पूर्वांचल से साफ होने जा रही भाजपा !

देश के अंदर लोकसभा चुनावों की चर्चाएं जोरों पर हैं.. क्योंकि सात चरणों में से पांच चरणों के लिए मतदान हो चुका है.. अब सिर्फ दो चरणों का मतदान और होना है.. ऐसे में राजनीतिक दलों के दिलों की धड़कनें

4PM न्यूज़ नेटवर्क: देश के अंदर लोकसभा चुनावों की चर्चाएं जोरों पर हैं.. क्योंकि सात चरणों में से पांच चरणों के लिए मतदान हो चुका है.. अब सिर्फ दो चरणों का मतदान और होना है.. ऐसे में राजनीतिक दलों के दिलों की धड़कनें तेज हैं और प्रचार में भी तेजी देखने को मिल रही है.. क्योंकि छठे चरण का चुनाव आगामी 25 मई को ही होना है.. ऐसे में आज छठे चरण के प्रचार का अंतिम दिन है.. आज शाम पांच बजे से छठे चरण के लिए प्रचार थम जाएगा.. इस चरण में राजधानी दिल्ली की सभी सात सीटों पर भी वोटिंग होनी है.. दिल्ली समेत छठे चरण में देश-भर की कुल 58 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है.. इन 58 लोकसभा सीटों में सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश की भी 14 लोकसभा सीटें शामिल हैं.. जिन पर छठे चरण में मतदान होना है..

इन 14 सीटों में सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, इलाहाबाद, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीर नगर, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर और भदोही की लोकसभा सीटें शामिल हैं.. दरअसल, आगामी दोनों चरणों में अब उत्तर प्रदेश की कुल 27 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है.. जिसमें छठे चरण में 14 तो सातवें व अंतिम चरण में 13 लोकसभा सीटों पर मतदान किया जाना है..जाहिर है कि 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सातों चरणों में मतदान होना था.. जिसमें अब दो चरणों में 27 सीटें बची हैं.. ये 27 सीटें पूर्वांचल की सीमा में आती हैं.. यानी अब अंतिम दो चरणों में यूपी में पूर्वांचल का रण देखने को मिलेगा.. यही कारण है कि इन 27 सीटों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ही निगाहें जमी हुई हैं..

वैसे भी उत्तर प्रदेश देश की सत्ता में राज करने के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.. या यूं कहें कि देश की सत्ता की चाबी यूपी ही है.. जिसने यूपी को भेद लिया, वो दिल्ली में सत्ता के सिंघासन तक आसानी से पहुंच जाएगा.. इसीलिए भारत की राजनीति में ये कहा भी जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है..

इस बार यूपी में लड़ाई काफी दिलचस्प देखने को मिल रही है.. बेशक प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से पिछले चुनाव में 64 सीटों पर एनडीए ने अपना परचम लहराया था.. जिसमें से भी 62 सीटों पर अकेले बीजेपी का भगवा फहराया था और दो सीटें उसके सहयोगी दल अपना दल (एस) को मिली थीं.. जबकि विपक्ष की भूमिका में उस वक्त समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एकसाथ मिलकर लड़े थे.. जो कि सिर्फ 16 सीटों पर सिमट गए थे.. जिसमें से 10 बसपा तो सपा सिर्फ 5 सीटों पर रह गई थी.. जबकि कांग्रेस की लाज रायबरेली ने बचा ली थी.. ऐसे में इस बार भी बीजेपी यूपी में खुद को मजबूत मान रही है और 80 में से 70 सीटें जीतने का वो लक्ष्य लेकर चल रही है..

हालांकि, इस बार हालात 2019 के लोकसभा चुनाव से काफी अलग हैं.. फिलहाल तो प्रदेश की 63 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो ही चुका है.. अब सिर्फ 27 सीटें बची हैं जो पूर्वांचल की हैं.. ऐसे में इस बार इंडिया गठबंधन माने कांग्रेस और सपा प्रदेश में अपनी बड़ी जीत का दंभ भर रहे हैं.. सपा प्रमुख अखिलेश यादव का कहना है कि यूपी में इंडिया गठबंधन बड़ी जीत जीतने जा रहा है और अधिकांश सीटों पर भाजपा-एनडीए साफ होने जा रहा है.. तो वहीं राहुल गांधी भी अपनी रैलियों में ये कह चुके हैं कि इस बार भाजपा सत्ता से साफ हो रही है और उसे सबसे बड़ी हार का सामना उत्तर प्रदेश में ही करना पड़ेगा.. बेशक इंडिया गठबंधन काफी कॉन्फिडेंट नजर आ रहा है.. लेकिन बीजेपी भी अपनी बड़ी जीत की बात कह रही है.. फिलहाल क्या होगा ये तो आगामी 4 जून को चुनाव परिणाम के वक्त ही पता चलेगा..

लेकिन अभी सभी की नजरें टिकी हैं अंतिम दो चरणों में पूर्वांचल में आने वाले प्रदेश की 27 लोकसभा सीटों पर..पूर्वांचल के बारे में ऐसा माना जाता है कि जो भी दल या गठबंधन पूर्वांचल में बढ़त हासिल करता है, उसकी सरकार बनने की संभावना मजबूत होती है.. लेकिन इस बार के चुनाव में किसी भी तरह की कोई लहर देखने को नहीं मिल रही है.. इस इलाके में राम मंदिर का भी कोई उतना उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है जिसकी उम्मीद लगाई जा रही थी.. और न ही मतदाताओं में कोई उत्साह नजर आ रहा है.. वैसे इस बार के पूरे चुनाव में कहीं ही वोटरों में कोई उत्साह नजर नहीं आया.. तभी वोट प्रतिशत भी वैसा नहीं गया जैसी उम्मीद थी.. यही कारण है कि बीजेपी के खेमे में खलबली भी मची हुई है.

यूपी में हुए अब तक के मतदान में दोनों गठबंधन अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं.. अब तक हुए प्रदेश में मतदान पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस बार यूपी में बीजेपी को नुकसान होना तय है.. अब देखना ये है कि नुकसान किस सीमा तक होता है.. इंडिया गठबंधन दावा कर रहा है कि वो सर्वाधिक सीटें जीत रहा है.. लेकिन सामान्य तौर पर ऐसा नजर आ रहा है कि इंडिया गठबंधन 35-40 सीटों तक पहुंच रहा है.. जिसका तात्पर्य है कि भाजपा को प्रदेश में लगकभग 20 से 25 सीटों का नुकसान होने जा रहा है.. जो बीजेपी व पीएम मोदी की चिंताएं बढ़ा रहा है.. पिछले दो चुनावों से इतर इस बार ये देखने को मिल रहा है कि देश में कोई लहर नहीं है.. और अब जनता मोदी के नाम पर किसी को भी जिताने के लिए तैयार नहीं है।

भाजपा की डगमगाई की स्थिति का अंदाजा पार्टी आलाकमान और पीएम मोदी व शाह को भी लग गया है.. इसीलिए दोनों नेताओं द्वारा लगातार पूर्वांचल के चक्कर लगाए जा रहे हैं.. तो वहीं इंडिया गठबंधन को भी पूर्वांचल में भारी समर्थन मिलता दिख रहा है.. जिस तरह से अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जनसभाओं में भीड़ उमड़ रही है और लोगों का उत्साह देखने को मिल रहा है, उससे बेशक इंडिया गठबंधन के नेता काफी उत्साहित हैं.. जबकि बीजेपी के लिए ये चिंता का विषय है..

दूसरी ओर पूर्वांचल के दो चरणों में भाजपा के सहयोगी दल निषाद पार्टी, सुभासपा और अपना दल की क्षमता का भी टेस्‍ट होना है.. पूर्वांचल के जातीय समीकरण को देखें तो पूर्वांचल की 27 सीटों पर पिछड़े मतदाताओं की संख्‍या सर्वाधिक है.. जिसमें यादव, कुर्मी, राजभर जैसी जातियां शामिल हैं.. इस बार भाजपा को केशवदेव मौर्य की पार्टी महान दल ने भी समर्थन दे दिया है.. पूर्वांचल में 50 फीसदी से ज्‍यादा पिछड़े मतदाता हैं, जो दोनों गठबंधनों के भाग्‍य का फैसला करेंगे।

भाजपा के लिए ये 27 सीटें काफी अहम हैं.. क्योंकि पिछले चुनाव में भी बीजेपी को सबसे ज्यादा झटका इसी पूर्वांचल में लगा था.. जिस तरह के हालात अभी दिख रहे हैं, उन्हें देखकर लगता है कि अबकी भी बीजेपी के लिए पूर्वांचल की राह आसान नहीं है.. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अंबेडकरनगर, आजमगढ़, श्रावस्‍ती, जौनपुर, गाजीपुर, लालगंज तथा घोसी में हार का सामना करना पड़ा था.. जबकि पिछले चुनाव में मोदी मैजिक और पुलवामा इफेक्ट दोनों ही चले थे.. इस बार इन सीटों के अलावा पूर्वांचल की आधा दर्जन से ज्‍यादा अन्‍य सीटें भी हैं, जिन पर भाजपा को लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं.. चंदौली, भदोही, बस्‍ती, देवरिया, प्रतापगढ़, मछलीशहर और कौशांबी में इंडिया गठबंधन कांटे की टक्कर दे रहा है और कहीं न कहीं बीजेपी बैकफुट पर दिखाई पड़ रही है.. क्योंकि इन सीटों पर भाजपा प्रत्‍याशियों से जनता में भारी नाराजगी है..

धनंजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद पूर्वांचल में बीजेपी के लिए समीकरण बिगड़ने लगे थे.. और धनंजय सिंह के बसपा उम्मीदवार बनने के बाद जौनपुर में भाजपा तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ रही थी.. लेकिन अचानक बसपा ने श्रीकला सिंह का टिकट काटकर भाजपा को लड़ाई में ला दिया है.. हालांकि, अभी भी सीट फंसी मानी जा रही है.. हालांकि, बसपा से किनारे लगाए गए धनंजय सिंह ने अंत में किस दबाव और लाभ के चलते भाजपा को समर्थन देने की बात कही है.. ये तो वही बेहतर बता सकते हैं.. प्रतापगढ़ और कौशांबी सीट पर भाजपा को मजबूत करने के लिए अमित शाह ने जनसत्‍ता दल के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया से भी बातचीत की.. लेकिन वहां शाह की बात नहीं बनी और अब राजा भइया कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी को ही समर्थन कर रहे हैं।

हालांकि, खुले तौर पर उन्होंने अपने विवेक से मतदान करने की अपील की है.. लेकिन चीजें काफी हद तक सपा की ओर झुकी दिख रही हैं.. हालांकि, ऐसा भी माना जा रहा है कि राजा भैया का साथ मिलता भी तो भी प्रतापगढ़ सीट पर भाजपा उम्‍मीदवार संगम लाल गुप्‍ता को कोई खास फायदा नहीं होगा.. संगम लाल को लेकर जनता में नाराजगी है जिसके कारण प्रतापगढ सीट भी नजदीकी लड़ाई में फंसी हुई है..

इसके अलावा भदोही में भी लड़ाई कांटे की है.. ब्राह्मण, मुस्लिम एवं बिन्द बाहुल्‍य इस सीट पर भाजपा की लड़ाई गठबंधन कोटे से उतरे पूर्व विधायक एवं तृणमूल कांग्रेस उम्‍मीदवार ललितेशपति त्रिपाठी से है.. पिछली बार यह सीट भाजपा के खाते में गई थी, लेकिन इस बार भदोही का ब्राह्मण वोटर दिग्‍गज कांग्रेसी नेता रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी के पड़पोते की तरफ झुक सकता है.. बीते दिनों जिस तरह से सपा प्रमुख अखिलेश यादव की जनसभा में लोगों का जनसैलाब उमड़ा था.. उसे देखकर ये तय है कि भदोही में मामला काफी कड़ा होने वाला है.. और कहीं न कहीं बीजेपी के लिए मुश्किलें और भी बढ़ने वाली हैं.. योगी सरकार द्वारा विधायक विजय मिश्र के खिलाफ कार्रवाई से यहां के ब्राह्मण मतदाता नाराज बताये जाते हैं.. इसके अलावा ब्राह्मण बाहुल्य सीट होने के बावजूद भाजपा द्वारा बिन्द जाति के उम्मीदवार को टिकट देने से भी वो भाजपा से दूर जा सकते हैं.. ललितेश को ब्राह्मणों के अलावा मुस्लिमों का साथ भी मिल रहा है.. सपा एवं कांग्रेस के वोटर भी टीएमसी उम्‍मीदवार के साथ है..

इसके अलावा घोसी सीट भाजपा के साथ ओपी राजभर की सुभासपा के खेमे में गई है.. लेकिन यहां भी मामला फंसा हुआ है.. क्योंक राजभर नेताओं के बड़बोलेपन के चलते मतदाताओं में गुस्‍सा है.. पिछली बार भी बीजेपी को यहां हार का सामना करना पड़ा था.. इसीलिए बीजेपी ने इस बार इस सीट को सुभासपा को दिया है.. कहीं न कहीं बीजेपी को भी ये लग रहा है कि यहां इस बार भी डगर बहुत कठिन ही है.. सपा उम्‍मीदवार राजीव राय बढ़त पर हैं.. स्‍थानीय एवं बाहरी का मुद्दा भी इस सीट पर हावी है.. चंदौली सीट पर भी केंद्रीय मंत्री डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय को लेकर जनता में नाराजगी रही है, जिसका लाभ सपा प्रत्‍याशी वीरेंद्र सिंह को मिलता दिख रहा है.. वहीं पूर्वांचल की बस्‍ती सीट पर भी भाजपा पिछड़ती दिख रही है..

क्योंकि बीजेपी प्रत्‍याशी हरीश द्विवेदी से जनता नाराज दिख रही है.. माना जा रहा था कि भाजपा यहां से प्रत्‍याशी बदल देगी, लेकिन बिहार-झारखंड के संगठन मंत्री नागेंद्रनाथ त्रिपाठी की कृपा से हरीश तीसरी बार टिकट पा गये.. बसपा यहां से दयाशंकर मिश्र को प्रत्‍याशी बनाकर भाजपा के वोट में सेंधमारी कर रही थी.. लेकिन जौनपुर की तरह इस सीट पर भी मायावती ने अचानक प्रत्‍याशी बदलकर कुर्मी समाज के लवकुश पटेल को उम्‍मीदवार बना दिया.. लवकुश सपा के कुर्मी उम्‍मीदवार राम प्रसाद चौधरी के वोटों में सेंधमारी करेंगे.. सपा ने दयाशंकर मिश्र को पार्टी में शामिल कर ब्राह्मण वोटों को पाले में लाने की कोशिश की है..

साफ है कि लाख प्रयासों के बाद भी बीजेपी के लिए पूर्वांचल की लड़ाई मुश्किल ही बनी हुई है.. और अंतिम दो चरणों में आने वाली यूपी की 27 सीटें बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा रही हैं.. बेशक इन 27 सीटों में ही वाराणसी की वो सीट भी शामिल है जहां से प्रधानमंत्री मोदी खुद चुनाव मैदान में हैं.. लेकिन इसके अलावा अधिकांश सीटों पर बीजेपी का गेम फंसता दिख रहा है.. ऐसा लगता है कि यूपी में अब जनता सिर्फ मोदी के नाम पर ही वोट करने को तैयार नहीं है.. बल्कि वो अपना प्रत्याशी और अपने मुद्दों को भी ध्यान में रख रहा है.. जो ये साबित करता है कि इस बार कोई मोदी लहर या मोदी मैजिक नहीं है.. 2014 और 19 में सिर्फ मोदी मैजिक चला था.. जिसके चलते मतदाताओं ने मोदी के नाम पर कमजोर-मजबूत सभी प्रत्‍याशियों को जीत दिला दी..

लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है.. भाजपा ने मोदी लहर के नाम पर फिर से उन्‍हीं प्रत्याशियों को जनता पर थोप दिया, जिनको लेकर जनता में भारी नाराजगी थी.. जबकि दूसरी ओर विपक्षी एकजुटता और इंडिया गठबंधन की आक्रामकता ने लोगों को काफी हद तक प्रभावित किया है.. अब इसका कितना लाभ इंडिया गठबंधन को वोट के रूप में मिलेगा इसका पता तो 4 जून को चुनाव परिणाम के बाद ही चलेगा.. लेकिन इतना तो तय है कि अंतिम दो चरणों में पूर्वांचल की 27 सीटें भाजपा के लिए एक चुनौती बनी हुई हैं.. अब पूर्वांचल में छठे एवं सातवें चरण में 25 मई और 1 जून को होने वाला मतदान ही तय करेगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा..

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