अपने ही बिछाए जाल में फंसे मोदी, राहुल दे रहे मोदी को चुनौती

लोकसभा चुनाव को लेकर चल रहा महासंग्राम खत्म हो गया है... अब सभी की निगाहें रिजल्ट पर टिकी है... लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने मोदी की लंका लगा दी है... करारी हार के डर से मोदी बहुत परेशान है... देखिए खास रिपोर्ट... 

4पीएम न्यूज नेटवर्कः लोकसभा चुनाव 2024 के आखिरी चरण के मतदान तक आते आते एक बात साफ हो गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी…. और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच चुनावी प्रचार में सीधा मुकाबला हुआ है…. हालांकि दोनों ओर से कई दूसरे महारथी भी मैदान में डटे रहे लेकिन अगर चेहरों की बात करें तो आखिर तक आते आते चुनाव मोदी बनाम राहुल पर आकर ही खत्म हुआ है… भले ही भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए खेमे में मोदी के बाद अमित शाह, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ, नीतीश कुमार, चिराग पासवान, मोहन यादव और शिवराज सिंह चौहान भी चुनावी प्रचार युद्ध में सत्ता पक्ष की कमान संभाले रहे  थे… तो दूसरी तरफ विपक्षी इंडिया समूह में राहुल गांधी के अलावा मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, एम.के.स्टालिन, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, डीके शिवकुमार और रेवंत रेड्डी ने भी मोर्चा संभाला…. अब चार जून को नतीजे बताएंगे कि कौन किस पर भारी पड़ा और किसकी बात पर जनता ने ज्यादा भरोसा किया….

आपको बता दें कि लोकसभा चुनावों के पहले से ही भाजपा और एनडीए के नेता विपक्षी कांग्रेस और इंडिया समूह से एक ही सवाल पूछते रहे हैं… कि हमारे पास नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत प्रखर और लोकप्रिय नेता है… उनके मुकाबले विपक्ष के पास कौन सा नाम और चेहरा है…. इसका जवाब विपक्षी खेमे की ओर से यही आता रहा है कि हमारे पास एक नहीं कई नेता हैं …. और नेता का फैसला चुनाव में जीतने के बाद मिल बैठकर आपसी सहमति से होगा…. लेकिन जनता में भी कई लोग यह सवाल करते हैं कि विपक्ष के पास नरेंद्र मोदी का विकल्प कौन है… भाजपा की कोशिश चुनाव को मोदी बनाम राहुल बनाने की रही है…. और विपक्ष इससे बचना चाहता रहा है…. लेकिन चुनाव के आखिरी दौर तक पहुंचते पहुंचते खुद ब खुद यह चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी हो गया है…. भले ही विपक्षी इंडिया खेमे और कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी को मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया…. लेकिन जिस तरह से पूरे चुनाव प्रचार में विपक्ष की तरफ से राहुल गांधी सबसे बड़े स्टार प्रचारक बन कर उभरे हैं….. उससे मोदी के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर उनका ही नाम और चेहरा स्थापित हो गया है….

दरअसल, भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए नेता आधारित ऐसा गठबंधन है…. जिसमें भाजपा समेत सारे दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऊर्जा और लोकप्रियता से ताकत पाते हैं… और जीत के लिए पूरी तरह उन पर ही निर्भर हैं, जबकि कांग्रेस की अगुआई में बना विपक्षी इंडिया गठबंधन नेताओं का गठबंधन है…. जिसमें हर नेता अपने अपने राज्य और क्षेत्र का राज्यपाल है…. और भाजपा व एनडीए के सामने मुख्य चुनौती हैं…. मसलन तमिलनाडु में एम के स्टालिन, बिहार में तेजस्वी यादव, महाराष्ट्र में शरद पवार उद्धव ठाकरे, झारखंड में हेमंत सोरेन, प.बंगाल में ममता बनर्जी, दिल्ली-पंजाब में अरविंद केजरीवाल, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव भाजपा के लिए मुख्य चुनौती हैं… और कांग्रेस इनकी सहयोगी की भूमिका में है… जबकि एनडीए में आंध्र प्रदेश को छोड़कर जहां चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम के सहारे भाजपा है, बाकी हर राज्य में भाजपा के सहारे उसके सहयोगी दल हैं…. लेकिन इंडिया गठबंधन में क्षेत्रीय दलों और उनके राज्यपालों की कई राज्यों में कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा ताकत होने के बावजूद कांग्रेस की अखिल भारतीय उपस्थिति उसे अगुआ भूमिका में रखती है…. यही वजह है कि भाजपा विरोधी मतदाताओं में क्षेत्रीय राज्यपालों के मुकाबले राहुल गांधी की स्वीकार्यता अखिल भारतीय स्तर पर है… जबकि इन राज्यपालों की स्वीकार्यता सिर्फ उनके राज्यों तक सीमित है….

वहीं राहुल गांधी अपनी इस ताकत को समझते हैं… इसलिए उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के राष्ट्रीय स्तर पर खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी…. और भाजपा के खिलाफ लड़ाई में झोंक दिया…. अपनी भारत जोड़ो पद यात्रा से राहुल ने न सिर्फ अपनी छवि बदली… बल्कि उन मुद्दों को भी धार दी जो अब विपक्ष के प्रमुख चुनावी मुद्दे बन चुके हैं…. अपनी दूसरी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में राहुल गांधी ने उन दलों को भी अपने साथ जोड़ा जो पिछली यात्रा में साथ आने से कतराते रहे थे…. नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने के नारे के साथ शुरू हुआ उनका सफर चुनाव आते आते बेरोजगारी, महंगाई, अग्निवीर, महिला सशक्तीकरण और संविधान बचाने के धारदार मुद्दों में बदल गया…. जहां कांग्रेस के प्रभाव वाले क्षेत्रों में तो राहुल चुनाव प्रचार की कमान संभाले रहे वहीं बिहार में तेजस्वी, उत्तर प्रदेश में अखिलेश, तमिलनाडु में स्टालिन, झारखंड में चंपई सोरेन, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे… और शरद पवार के साथ चुनाव प्रचार साझा करके राहुल गांधी विपक्षी दलों का केंद्र बिंदु बन गए…. और जाने अनजाने मोदी के मुकाबले जनता ने राहुल गांधी को खड़ा कर दिया… और इसमें छत्रपों की ताकत भी शामिल हो गई….

आपको बता दें कि भाजपा और मोदी ने भी अपने ज्यादातर हमलों में राहुल गांधी को ही निशाने पर लेकर उन्हें अपना मुख्य प्रतिद्वंदी बना दिया…. राहुल गांधी ने जिस तरह अपनी हर चुनावी सभा में भारतीय संविधान के लाल किताब वाले गुटका संस्करण को हाथ में लेकर लगातार भाजपा पर यह आरोप लगाया कि तीसरी बार सत्ता में आने पर वह संविधान को नष्ट कर देगी… और वह व इंडिया गठबंधन उसे ऐसा नहीं करने देंगे…. उसने संविधान बचाने को विपक्ष का प्रमुख चुनावी मुद्दा बना दिया… और समाज के उन दलित, आदिवासी पिछड़े वंचित तबकों में यह बात बहुत गहराई तक नीचे चली गई… जिसने भाजपा के उन सामाजिक समीकरणों को काफी हद तक प्रभावित किया… जो उसने अपनी सोशल इंजीनियरिंग की ईंटों और हिंदुत्व की सीमेंट से 2014 से लेकर अब तक हुए हर चुनाव में बनाए और उन्हें जीता….

बता दें कि मंहगाई, बेरोजगारी और अग्निवीर के मुद्दों ने राहुल की इस मुहिम को और ज्यादा धार दे दी…. रही बची कसर कांग्रेस के घोषणा पत्र जिसे न्याय पत्र का नाम दिया गया…. उसमें किए गए वादों ने पूरी कर दी…. राहुल गांधी ने जिस खटाखट अंदाज में गरीब परिवार की एक महिला को साल में एक लाख रुपए दिए जाने, बेरोजगार नौजवानों को साल भर की अप्रेंटिस और एक लाख रुपए देने, किसानों को न्यूनतम खरीद मूल्य की कानूनी गारंटी, किसानों का कर्ज माफ करने, अग्निवीर योजना को समाप्त करने… और रसोई गैस का सिलेंडर सस्ता करने जैसी घोषणाएं हर चुनावी सभा में की… उसने भी न सिर्फ सत्ता पक्ष को विचलित किया… बल्कि राहुल की लोकप्रियता में भी इजाफा किया…. राहुल के बाद कांग्रेस में प्रियंका गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी जमकर चुनाव प्रचार किया…. जहां प्रियंका की अखिल भारतीय स्तर पर यह पहली राजनीतिक परीक्षा रही…. जिसमें उन्होंने पूरे देश में जबर्दस्त अपना प्रभाव छोड़ा… लेकिन अमेठी और रायबरेली में उनकी अनथक मेहनत ने भाजपा के लिए कड़ी चुनौती पेश की है…. वहीं अपनी उम्र और वय के बावजूद खरगे ने जिस तरह इस चुनावी मौसम और गरमी में खुद को प्रचार में झोंका और मेहनत की है…. उसने उन्हें देश के अग्रणी राजनेताओं की कतार में खड़ा कर दिया है…. दलितों आदिवासियों और वंचितों के बीच अगर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन ने जो भी सेंधमारी की है…. उसमें खरगे का भी चुनाव प्रचार में आगे होना भी एक बड़ा कारण है…. क्योंकि लंबे समय बाद पहली बार कोई ऐसा नेता देश की राजनीति की पहली पंक्ति में आया है… जो उनके अपने बीच का है….

वहीं एक समय देश की राष्ट्रीय राजनीति में डा.भीमराव आंबेडकर के बाद दलित राजनीति के अगुआबाबू जगजीवन राम की तूती बोलती थी…. इनके अलावा रामधन, बुद्धप्रिय मौर्य जैसे प्रखर दलित नेताओं की एक नई पीढ़ी तैयार हुई…. जिसमें रामविलास पासवान, संघप्रिय गौतम जैसे नाम भी जुड़े….. लेकिन जगजीवन राम के बाद राष्ट्रीय राजनीति में दलित राजनीति को सर्वाधिक आक्रामक तेवर कांशीराम और मायावती ने दिए…. कांशीराम के निधन और मायावती के राजनीतिक पतन के बाद पिछले दस सालों से भारत के दलित समाज को राष्ट्रीय स्तर पर कोई नेता नहीं मिला…. लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद दलितों में उनके प्रति स्वाभाविक आकर्षण पैदा हुआ…. और लोकसभा चुनावों में खरगे की सक्रियता ने उन्हें देश की राजनीति में राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्व स्वीकार्य दलित नेता बना दिया है…. हालांकि खरगे खुद को सिर्फ दलित नेता के रूप में नहीं देखते हैं…. लेकिन मौजूदा दौर में वह एक ऐसा दलित चेहरा हैं… जो अन्य वर्गों को भी स्वीकार्य है….. इसलिए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को मिलने वाली किसी भी सफलता में मल्लिकार्जुन खरगे के योगदान को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए… दरअसल, राहुल गांधी के मुद्दे और खरगे का चेहरा दोनों ने ही दलित वंचित पिछड़े और आदिवासियों के बीच विपक्ष को साख और समर्थन दिलाने का काम किया है…. वहीं उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव ने भी अपने अपने राज्यों में इंडिया गठबंधन के रथ को खींचने और गति देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है….

आपको बता दें कि इंडिया गठबंधन के नेताओं ने जनता के उन हर मुद्दों को उजागर किया है… जो आज के समय में जनता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है… जिसका राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन को फायदा मिला है… और आने वाले समय में इंडिया गठबंधन को बीजेपी की अपेक्षा अधिक सीटें मिलने की संभावना है… वहीं अब जो भी होगा वह चार जून को जनता के सामने आ जाएगा… वहीं इस बार जनता किसके दिल्ली की गद्दी सौंपती है… यह चार जून को साफ हो जाएगा…

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