तो भाजपा की मजबूरी बन चुके हैं योगी!
केंद्रीय नेतृत्व अभी चुनाव पर कर रहा फोकस इसलिए योगी का बढ़ाया कद
4पीएम की परिचर्चा में प्रबुद्धों ने उठाए कई सवाल
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना कद बढ़ा लिया है। वे हिंदुत्व का ब्रांड बन गए हैं। उन्हें दिल्ली में भाजपा की राष्टï्रीय कार्यसमिति की बैठक में बुलाया गया। यहां योगी आदित्यनाथ ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया। इससे उनका कद और बढ़ा है। सवाल यह है कि योगी के कद बढ़ाने के मायने क्या हैं? ऐसे कई सवाल उठे वरिष्ठï पत्रकार श्रवण गर्ग, हरजिंदर, हेमंत तिवारी, रंजीव, ममता त्रिपाठी, अजय शुक्ला, लेखक रविकांत और 4पीएम के संपादक संजय शर्मा के बीच चली लंबी परिचर्चा में।
हेमंत तिवारी ने कहा, योगी ने अलग तरह की राजनीति की है। पीएम मोदी को खुद इनकी प्रशंसा करनी पड़ी। बड़े-बड़े धुरंधर नेताओं का क्या हश्र हुआ, यह हम देख चुके हैं। केशव प्रसाद मौर्य को आश्चर्यजनक तरीके से 2014 में प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। हालांकि योगी भाजपा में इतने ऊपर पहुंच चुके हैं कि उन्हें किनारे नहीं लगाया जा सकेगा।
रंजीव ने कहा, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अपनी झेंप मिटा रहा है। दिल्ली दरबार और योगी के बीच चले शक्ति प्रदर्शन में योगी विजयी बनकर निकले हैं। इसके अलावा केंद्रीय नेतृत्व चुनाव की सारी जिम्मेदारी योगी को सौंपना चाहता है। ममता त्रिपाठी ने कहा, एक ओर दिल्ली दरबार और यूपी सरकार के बीच तनातनी चल रही है वहीं योगी से राजनीतिक प्रस्ताव पेश कराया गया। योगी को पूरी तरह से सामने रखने की कोशिश की जा रही थी। हालांकि अभी यह स्पष्टï नहीं है कि योगी ही सीएम चेहरा होंगे।
हरजिंदर ने कहा, स्थानीय स्तर पर ही चुनाव परिणाम आएंगे। यूपी चुनाव में साफ है कि यदि स्थानीय समीकरण की वापसी होगी तो भाजपा को परेशानी होगी। हिंदुत्व को आगे बढ़ाना है इसलिए योगी को आगे किया गया है। अजय शुक्ला ने कहा, पशु खेत के खेत बर्बाद कर रहे हैं। मंदिरों की पौराणिकता नष्टï की जा रही है। भाजपा सांप्रदायिकता पर ही चुनाव लड़ेगी। इनके पास बताने के लिए कुछ नहीं है। रविकांत ने कहा, पूर्वांचल में ठाकुर बनाम ब्राह्मïण चल रहा है। सबसे अधिक पिछड़े अपमानित हुए हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। श्रवण गर्ग ने कहा, योगी के राजनीति प्रस्ताव पढऩे को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिए। योगी के शासनकाल से भाजपा यूपी में खतरे में है। बावजूद इसके योगी भाजपा की मजबूरी हैं। शीर्ष नेतृत्व अभी चुनाव पर फोकस कर रही है।