नीतीश के सामने खड़ा हो सकता है चुनौतियों का पहाड़

उपेंद्र कर सकते हैं नयी पार्टी बनाने की घोषणा!

  • जेडीयू से खुद नहीं निकलेंगे कुशवाहा!
  • रणनीतिकारों का पार्टी के नाम पर विचार-विमर्श शुरू
  • नीतीश के अंदाज में ही उन्हें घेरने की कोशिश करेंगे कुशवाहा

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। साल 2025 में बिहार में चुनाव होने वाले हैं। नीतीश कुमार ने कई दफे कहा है कि तेजस्वी इस दौरान नेतृत्व करेंगे। इस पर उपेंद्र कुशवाहा ने नाराजगी व्यक्त की और उनका कहना रहा कि क्या जेडीयू पार्टी में ऐसा कोई नहीं है जो आगे बिहार को लीड कर सके? वैसे कहा जाता है कि बिहार की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से चर्चित चेहरा बने उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी में नहीं जाएंगे। उनकी अपनी पार्टी होगी। नयी पार्टी में उनके समर्थक ज्यादातर जेडीयू के लोग ही रहेंगे।
उपेंद्र कुशवाहा ने इसी हफ्ते साफ कर दिया था कि इस जीवन में वे बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे। तब कुछ लोगों को अचरज हुआ था। कई लोग तो यह मान कर चल रहे थे कि कुशवाहा लोगों को भ्रम में रख रहे हैं। कुशवाहा के रणनीतिकारों की मानें तो वह बीजेपी की मदद कर सकते हैं, लेकिन बीजेपी के साथ सच में नहीं जाएंगे। दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा सीएम नीतीश कुमार के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने दो तरह की रणनीति बनायी है। पहला तो जेडीयू में रह कर ही नीतीश और उनके इर्दगिर्द के नेताओं को कठघरे में वह खड़ा करते रहेंगे। विरोध के लिए उन्होंने आरजेडी से नीतीश की डील और पार्टी के कमजोर होने का मुद्दा पहले से उठा दिया है। अब रोज-रोज नीतीश के खिलाफ नये मुद्दे उठाते रहेंगे।
कुशवाहा और जेडीयू नेतृत्व को भी पता है कि ऐसा बहुत दिन तक नहीं चलने वाला। आजिज होकर जेडीयू उन्हें निकालेगा ही। ऐसे में शहीद होने का लाभ कुशवाहा को मिल जाएगा और तब वह नयी पार्टी बनाने की घोषणा करेंगे। उपेंद्र कुशवाहा अगर नयी पार्टी बनाते हैं तो उसका नाम क्या होगा, इस पर उनके रणनीतिकारों ने विमर्श शुरू कर दिया है। सूचना यह है कि कुशवाहा की नयी पार्टी के नाम में जनता दल या समता पार्टी में से कोई एक नाम प्रमुख रूप से रहेगा। ऐसा करने पर लोगों को आसानी से पता चल जाएगा कि पार्टी वही है, फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें नीतीश कुमार के मारे-सताए या जेडीयू के उपेक्षित लोग ही हैं। खुद को असली जनता दल बताने का पार्टी प्रयास करेगी। यानी आरजेडी का विरोध कुशवाहा की पार्टी का मूल मकसद होगा। यह ठीक वैसा ही कदम होगा, जैसा नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होने के बाद लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की सरकार के विरोध के लिए समता पार्टी बनायी थी। यानी नीतीश के अंदाज में ही उन्हें घेरने की कुशवाहा कोशिश करेंगे।

‘जेडीयू पार्टी किसी के कंट्रोल में है’

कुशवाहा ने आगे आशंका जताते हुए कहा कि जेडीयू पार्टी किसी के कंट्रोल में है। मुख्यमंत्री खुद अपने डिसीजन नहीं ले पा रहे। वो मेरे खिलाफ कितने सारे बयान दे रहे हैं। मैं तो केवल जेडीयू को मजबूत करना चाहते हूं। मुझे तो ये भी नहीं पता कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता मुझे क्यों बार-बार पार्टी छोडऩे के लिए कह रहे हैं। मेरे खिलाफ बयान दिए जा रहे। मैं तो अभी भी पार्टी को एकजुट करने में लगा हूं।

आरजेडी के साथ हुई डील की बात पर चिंतित

कुशवाहा ने कहा कि मैं तो अपनी ही पार्टी से कुछ गंभीर सवाल करता रहता हूं। साल 2021 के मार्च में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय किया, तब वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के हिस्सा थे। इसके बाद यह महागठबंधन (आरजेडी के साथ) एक नए गठबंधन का हिस्सा बन गए। मेरे पास अभी भी बगावत करने का कोई मुद्दा नहीं था, लेकिन चिंता तब पैदा हुई जब दोनों के बीच किसी सौदे की बात हुई। कुशवाहा ने कहा कि मुख्यमंत्री ने तेजस्वी यादव को बिहार के भावी नेता के रूप में पेश करके मामले को उलझा दिया है।

पार्टी में अब पदधारी नहीं रहे कुशवाहा

आरजेडी और जेडीयू के नेता उपेंद्र कुशवाहा के बागी तेवर देख कर आरोप लगाते रहे हैं कि वे बीजेपी के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। उन्हें जहां जाना है, जायें। नीतीश कुमार और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा तो इतनी बेचैनी में हैं कि वे बार-बार कह रहे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा को जहां जाना है, वहां जितनी जल्दी हो सके, चले जाएं। इधर उपेंद्र जेडीयू से अपने आप हिलने को तैयार नहीं हैं। उन्हें परेशान करने के लिए जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि पार्टी में कुशवाहा की औकात महज एक एमएलसी की है। वे पार्टी में अब पदधारी नहीं रहे। यानी संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद से पार्टी ने हटा दिया है।

पार्टी अपने वोट बैंक के बिना नहीं चल सकती

जेडीयू नेता ने कहा कि मैंने पार्टी की सिद्धांतों के खिलाफ कुछ नहीं किया है। मैं अभी भी जेडीयू को मजबूत बनाने के लिए सोचता हूं और कार्य कर रहा हूं। कोई भी पॉलिटिकल पार्टी उनके वोट बैंक के बिना नहीं चल सकती है। जेडीयू ओबीसी, दलित और महादलितों का वोट धीरे-धीरे खो रही है। साल 2020 के चुनाव में इसका एक चेहरा भी दिखा था। बीजेपी ने किस तरह से जेडीयू को पीछे किया था। उन्होंने नीतीश कुमार के बीजेपी में डील होने की बात पर कहा कि मुझे ऐसा नहीं लगता। हां लोग जरूर इस बारे में बात कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने कह दिया था कि वो बीजेपी के साथ फिर से नहीं जाएंगे।

जेडीयू के नेता और कार्यकर्ता भविष्य को लेकर आशंकित

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि नीतीश कुमार के ऐसा करने से जेडीयू के नेता और कार्यकर्ता अपने फ्यूचर को लेकर आशंकित हो रहे हैं। दोनों ही पार्टी के विलय की बात चल रही है। मुख्यमंत्री ने तेजस्वी को लेकर मुझसे कोई बात नहीं की और अगर की होती तो मैं इसके लिए राजी नहीं होता। कहा कि मैं पार्टी का प्राथमिक सदस्य बनकर ही बहुत खुश हूं। जेडीयू आरजेडी के साथ गठबंधन करने में कुछ भी गलत नहीं है। हालांकि, तेजस्वी को भविष्य के नेता के रूप में पेश करना जेडीयू का अंत कहा जा सकता है क्योंकि जनता दल यूनाइटेड कुछ लोगों की पार्टी नहीं है।

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