आखिर क्यों ‘सम्मेद शिखरजी’ को लेकर मचा है देश में बवाल

  • तीर्थ स्थल और धर्म स्थल में क्या होता है अंतर

आराध्य त्रिपाठी@4पीएम
रांची। पूरे देश में इस समय सम्मेद शिखरजी को लेकर हंगामा मचा हुआ है। मीडिया में भी सम्मेद शिखर की ही खबरें छाई हुई हैं। ये पूरा शोर-शराबा झारखंड सरकार द्वारा जैन धर्म के तीर्थराज सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने पर मचा हुआ है। देशभर में झारखंड सरकार के इस फैसले के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। मगर ये मामला उस समय और भी गरमा गया जब 3 जनवरी को सम्मेद शिखरजी की रक्षा के लिए अन्न-जल त्याग कर अनशन पर बैठे दिगंबर जैन मुनि सुज्ञेय सागर महाराज का निधन हो गया। उसके बाद देश में पहली बार जैन समाज के लोग सडक़ों पर उतर आए और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। दरअसल, जैन समाज की मांग है कि ‘श्री सम्मेद शिखर’ को धार्मिक स्थल ही रहने दिया जाए। इसके पर्यटन स्थल बनने से इस धार्मिक स्थान की पवित्रता भंग हो जाएगी।
जैन समाज का कहना है कि यहां लोग मांस-शराब का सेवन करेंगे, जिससे इसकी पवित्रता नष्ट हो जाएगी। जिसके चलते जैन धर्म के ऐतिहासिक तीर्थ स्थलों पर खतरा बढ़ेगा। जैन समुदाय का ये भी कहना है कि वो अपने तीर्थ स्थलों का व्यापारीकरण नहीं होने देंगे और ऐसे फैसले बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं हैं। सम्मेद शिखरजी को लेकर जैन धर्म के लोगों के विरोध-प्रदर्शन के बीच इसे लेकर सियासी बवाल भी छिड़ गया है। ऐसे में अब सबके जेहन में एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर पर्यटन स्थल और तीर्थ स्थल में क्या अंतर होता है? और आखिर सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने पर जैन समाज द्वारा इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है। तो यहां आपको बताते हैं कि आखिर क्या है तीर्थ स्थल और पर्यटन स्थल में अंतर और क्यों इसे लेकर देश में मचा है इतना बवाल।

पवित्र स्थल कहलाता है तीर्थ

अलग-अलग धर्मों के लिए कुछ जगहें अपने पौराणिक महत्व को लेकर समुदायों के बीच आस्था के केंद्रों के रूप में बहुत पवित्र स्थान रखती हैं। इन्हें ही तीर्थ स्थल कहा जाता है। इन तीर्थ स्थलों पर खान-पान, आचरण और पहनावे को लेकर कुछ नियम-कायदे होते हैं। पर्यटन स्थलों से अलग तीर्थ स्थलों में आध्यात्मिक माहौल में मानसिक शांति पाने के लिए आते हैं।

समाज के लिए सम्मेद शिखरजी के मायने

झारखंड के गिरिडीह जिले में आने वाली राज्य के सबसे ऊंचे पहाड़ पारसनाथ पहाड़ी को सम्मेद शिखरजी के नाम से जाना जाता है। सम्मेद शिखरजी पर जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने देह त्याग कर निर्वाण यानी मोक्ष प्राप्त किया था। इस पहाड़ी का नाम जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पारसनाथ के नाम पर है। जैन धर्म के लिए सम्मेद शिखर सर्वोच्च तीर्थ स्थल है। पारसनाथ पहाड़ी की तराई में मधुबन नाम का कस्बा बसा हुआ है।

क्या है झारखंड सरकार का फैसला

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने 23 जुलाई 2022 को राज्य के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नई झारखंड पर्यटन नीति जारी की। इसके तहत पारसनाथ पहाड़ी (सम्मेद शिखर), मधुबन और इटखोरी को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया गया। झारखंड सरकार पारसनाथ पहाड़ी के एक हिस्से को वाइड लाइफ सेंचुरी और ईको सेंसिटिव जोन बनाने को लेकर कोशिशें कर रही थीं। इसे लेकर ही बवाल मचा हुआ है।्र

तीर्थ स्थल के लिए क्या करती हैं सरकारें

अलग-अलग धर्मों के तीर्थस्थलों के लिए राज्य सरकारें संरक्षण से लेकर उनकी धार्मिक शुचिता को बनाए रखने के प्रयास करती है। यूपी सरकार ने बीते कुछ वर्षों में अयोध्या, काशी और मथुरा को तीर्थ क्षेत्र घोषित किया है। इन इलाकों शराब और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर पवित्रता और आस्था को संरक्षित किया है। दुनियाभर में ऐसे तीर्थ स्थल हैं, जहां तमाम तरह के प्रतिबंध लागू होते हैं। उदाहरण के तौर पर इस्लाम धर्म के पवित्र तीर्थ स्थल मक्का में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है।

कैसे बनाए जाते हैं पर्यटन स्थल

पर्यटन स्थलों का निर्माण राज्य सरकारें अपने प्रदेश के नागरिकों को रोजगार और व्यवसायों को बढ़ावा देने के लिए करती हैं। किसी इलाके को पर्यटन स्थल घोषित करने के बाद सरकारें विकास योजनाओं के सहारे वहां का सौंदर्यीकरण समेत उस स्थान को पर्यटकों की पहुंच में लाने के लिए सडक़, रेल, हवाई मार्ग जैसी चीजों को विकसित करती है। इससे राज्य सरकार की आमदनी भी बढ़ती है।

किसे कहते हैं पर्यटन स्थल

आमतौर पर पर्यटन स्थलों को टूरिस्ट प्लेस के तौर पर जाना जाता है। पर्यटन स्थल के रूप में लोगों के पास हिल स्टेशन, बीच से लेकर ऐतिहासिक इमारतों तक की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट होती है। दरअसल, इन जगहों पर लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव को कम करने और अपने परिवार के साथ मौज-मस्ती के कुछ पल बिताने या अकेले ही ये तमाम चीजें करने के लिए जाते हैं। पर्यटन स्थलों पर लोगों पर किसी तरह की कोई खास पाबंदी नहीं होती है। आसान शब्दों में कहें, तो खान-पान से लेकर कपड़ों तक को लेकर कोई नियम नहीं होते हैं।

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