हिंदुत्व-राष्ट्रवाद के मुद्दे को बिहार में भाजपा दे रही धार
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। देश की राजनीति में बिहार का एक अलग ही अंदाज रहता है। बिहार की राजनीति ने कई बार देश की राजनीति में भी अहम भूमिका निभाई है। कभी बिहार की सत्ता के सिंघासन पर बैठने वाली भाजपा इस समय सत्ता से दूर है। बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी सत्ता की कुर्सी से पूरी तरह दूर है। भाजपा को सत्ता से दूर करने वाला कोई और नहीं बल्कि वो ही नीतीश कुमार हैं, जिनको भाजपा ने ही सिर्फ 45 सीटें आने के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था। मगर बाद में उन्हीं नीतीश कुमार ने अपनी फितरत दिखाते हुए पासा बदलकर एक बार फिर आरजेडी से हाथ मिला लिया और भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया। जबकि अपने आप नीतीश अभी भी प्रदेश के मुख्यमंत्री ही बने हुए हैं। नीतीश के इस कदर भाजपा को सत्ता से बाहर करने के कारण भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर है और उनके फैसले को जनता के जनादेश का अपमान बता रही है।
हाल ही में बिहार पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नीतीश पर जमकर हमला बोला और राज्य के विकास में बाधा के लिए नीतीश कुमार को कसूरवार ठहराया है। इस बीच नड्डा ने ये भी दावा किया कि भाजपा इस बार प्रदेश में अपने दम पर सरकार बनाएगी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के कालयजी नेतृत्व में देशभर में जारी विकास यात्रा में कहीं हार पीछे न छूट जाए, इसके लिए यह जरूरी है कि यहां भी पूर्ण बहुमत से विशुद्ध बीजेपी की सरकार बने। अब नड्डा के इस दावे के बाद लगातार ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या वाकई में भाजपा बिहार में अकेले दम पर सत्ता हासिल कर सकती है। इसको लेकर हालांकि, लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं, वहीं भाजपा के लिए भी इस मुकाम को पाना कोई आसान काम नहीं है।
जनता के बीच जोर-शोर से किया जा रहा प्रचार
दरअसल, किसी भी पार्टी के लिए इस तरह के दावे करना कोई नहीं बात नहीं है। हर पार्टी हर जगह अपनी ही सरकार बनने का दम्भ भरती रहती है। भले ही परिणाम इन दावों से पूरी तरह से भिन्न नजर आएं। लेकिन बिहार में ये सम्भव है कि नड्डा का दावा सच साबित हो जाए। बिहार में भाजपा की तरफ कुछ समीकरण भी बन रहे हैं। पिछली बार जब विधानसभा चुनाव हुआ, लोगों का पूरी तरह से गुस्सा सवर्ण के खिलाफ था। यही वजह थी कि सभी जातियों ने मिलकर एक साथ बीजेपी के खिलाफ मतदान किया था। लोगों की यह धारणा था कि बीजेपी नीतीश कुमार के चक्कर में दूसरों को महत्व देती है। इसके अलावा, नीतीश ने राज्य की जनता में यह मैसेज दिया कि लोग बीजेपी के खिलाफ हैं। लेकिन आज आलम ये है कि नीतीश और लालू के जुडऩे के बाद क्राइम लगातार तेजी के साथ बढ़ रहा है, अव्यवस्था बढ़ी है। यही वजह है कि लोगों का बीजेपी की तरफ झुकाव हुआ है। दूसरी वजह जेडीयू के नेताओं की बढ़ती महात्वाकांक्षा भी भाजपा के लिए राह आसान करेगी।
जदयू से गठबंधन टूटने के बाद शुरू की कवायद
कहीं भी सत्ता पाने के लिए भाजपा के पास सबसे बड़ा हथियार है हिंदुत्व। भाजपा आज अपने इसी हथियार के दम पर केंद्र समेत कई राज्यों में काबिज है। भाजपा खुद को हिंदुओं की एकमात्र पार्टी बताती है। अब इसी राष्ट्रवाद और हिंदुत्तव के दम पर भाजपा बिहार की सत्ता को भी अकेले दम पर कब्जाना चाहेगी। बिहार में लालू प्रसाद के परिवार को परास्त किया, राम विलास को शिकस्त दी, लेकिन नीतीश अपनी नामसझी के चलते लालू के साथ गए और आरजेडी जिंदा हो गयी। जनता ने इन्हें नकार दिया था। लेकिन बीजेपी को केंद्र की तरह मुखर और प्रखर होना पड़ेगा। बिहार में कभी भी क्षेत्रवाद नहीं रहा। राष्ट्रवाद का मुद््दा हावी रहा। नगर निकाय के चुनाव, विधानसभा चुनाव के उपचुनाव में जिस तरह के नतीजे आए हैं, उससे साफ है कि आगे क्या संकेत है। मुख्यमंत्री नीतीश को लेकर उनकी पार्टी के नेता नाराज है। कयास तो ये भी लगाए जा रहे हैं कि नीतीश की पार्टी के ही 2 नेताओं ने कहा कि वो बीजेपी में शामिल होना चाहते हैं।
नीतीश के बार-बार पाला बदलने को बना रही मुद्दा
बिहार के कुढऩी विधानसभा उप-चुनाव में बीजेपी की जीत ने भी नड्डा को काफी आत्मविश्वास दिलाया है। क्योंकि इस बात की उम्मीदें काफी कम थीं कि भाजपा यहां पर अपना कमल खिला पाएगी। इसी तरह गोपालगंज विधानसभा में बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की है। ऐसे में बीजेपी अध्यक्ष का जो दावा है वह बहुसंख्य लोग है और धरातल से मेल खाती है। लेकिन इसके लिए बीजेपी को बहुत परिश्रम की आवश्यकता है। राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी के आने के बाद हर राज्य की बीजेपी बदल गई, लेकिन बिहार की बीजेपी नहीं बदली। अब कुछ अच्छे चेहरे को लाना पड़ेगा। बीजेपी ने विजय सिन्हा को पहले विधानसभा अध्य बनाया और इसके बाद विधान मंडल दल का नेता घोषित किया। इसी तरह बीजेपी को कुछ चेहरे लाने पड़ेंगे। बिहार में लालू यादव के अलावा नीतीश कुमार ही एकमात्र ऐसे नेता थे जिनकी लोकप्रियता चरम पर थी। भाजपा ने इसी का फायदा उठाकर कई सालों तक सत्ता पर राज भी किया। मगर अब जब नीतीश की लोकप्रियता में भारी गिरावट हो रही है, वहीं भाजपा भी इसी वजह से नीतीश से किनारा करना चाह रही थी। ऐसे में भाजपा को एक बार फिर अब लालू-नीतीश के खिलाफ 90 के दशक वाली लडऩी होगी। ये धारण थी कि केंद्र में बगैर गठबंधन की सरकार नहीं बनेगी। लालकृष्ण आडवाणी की भी यही सोच थी। लेकिन मोदी की नेतृत्व में सर्वाधिक मुखर और प्रखर पार्टी ने इस मिथक को तोड़ा। यूपी में भी यह करिश्मा कर दिखाया। सपा-बसपा मिलकर लड़े, तब भी बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की और मोदी-शाह के नेतृत्व में यह मिथक टूटा है। महाराष्ट्र जैसी जगह पर लोगों ने बीजेपी को ही बहुमत दिया था।