महाकुंभ संगम स्नान के बाद इन स्थानों की करें सैर
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4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
प्रत्येक 12 वर्ष में महाकुंभ का आयोजन होता है। महाकुंभ संगम नगरी प्रयागराज में मनाया जा रहा है। इस दौरान करोड़ों लोग पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगाते है। कुंभ के मौके पर देश-विदेश से लोग प्रयागराज गंगा में स्नान के लिए पहुंचते हैं। अगर महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज जाने की योजना बना रहे हैं तो इस यात्रा को धार्मिक के साथ ही पर्यटन यात्रा भी बना सकते हैं। प्रयागराज में सिर्फ धार्मिक स्थल ही नहीं हैं बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल भी हैं, जो आपको घूमने के लिए शानदार मौका देते हैं। प्रयागराज कई महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों से भरा हुआ है, जिन्हें आप महज दो दिनों की छुट्टी में घूम सकते हैं। तीर्थराज प्रयाग, जहां 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है, महाकुंभ के दौरान विशेष महत्व रखता है।
आनंद भवन
यह भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का पैतृक आवास था, जिसे अब संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। यहां स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी महत्वपूर्ण वस्तुएं और दस्तावेज देखे जा सकते हैं। एंट्री के लिए टिकट लगता है हालांकि प्रवेश शुल्क नाममात्र का ही है। यहां घूमने के लिए एक से दो घंटे का समय लग सकता है।
खुसरो बाग
यह मुगल स्थापत्य कला का सुंदर नमूना है जहां जहांगीर के पुत्र खुसरो का मकबरा स्थित है। बाग की सुंदरता और शांति इसे एक आदर्श पिकनिक स्थल बनाती है। सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक कभी भी घूमने जा सकते हैं।
इलाहाबाद किला
इस किले को अकबर ने 1583 में बनवाया था और आज भारतीय सेना के अधीन है। किले में स्थित अशोक स्तंभ और सरस्वती कुंड प्रमुख आकर्षण हैं। पर्यटकों को किले का सीमित हिस्सा देखने की अनुमति है।
हनुमान मंदिर
प्रयागराज में लेटे हुए हनुमान जी की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध एक प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि गंगा जी की बाढ़ का जल सबसे पहले यहां आता है और हनुमान जी के चरण छूकर वापस लौट जाता है। संगम के पास स्थित यह मंदिर कुंभ या महाकुंभ के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।
त्रिवेणी संगम
यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी का संगम होता है। संगम स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है। आप यहां नौका विहार का आनंद भी ले सकते हैं। त्रिवेणी संगम को घूमने के लिए सुबह-सुबह या सूर्यास्त के समय के जाएं। संगम स्नान को अत्यधिक फलदायी कहा गया है, लेकिन यह तभी पूर्ण माना जाता है जब श्रद्धालु त्रिवेणी स्नान के बाद अक्षय वट के दर्शन
करते हैं।
ललिता देवी
ललिता देवी का यह शक्तिपीठ मंदिर भारत में इलाहबाद के प्रयागराज जिले में स्थित है। देवी सती के 51 शक्तिपीठो में से एक माता ललिता देवी का यह प्राचीन मंदिर माता सती के शक्ति रूप को समर्पित है। इस स्थान पर देवी सती के हाथ की उंगलियां गिरी थी। इस मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में स्थित ललिता देवी, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं। इसीलिए इस देवी को त्रिपुर सुन्दरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां की शक्ति रूप को ललिता देवी तथा भैरव को भव कहा गया है। ललिता देवी मंदिर के पास में ही ललितेश्वर महादेव का भी मंदिर है। गंगा, यमुना और सरस्वती इन तीन नदियों के संगम तट से लगभग 5 द्मद्व दूर मां ललिता देवी का मंदिर स्थित है।
अक्षयवट
महाकुंभ में पहली बार अक्षय वट के दर्शन कॉरिडोर के जरिए संभव होंगे। हाल ही में अक्षय वट कॉरिडोर का उद्घाटन किया गया, जिसके बाद इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया। त्रिवेणी संगम गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम के तट पर स्थित यह 300 साल पुराना वटवृक्ष धार्मिक आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि अक्षय वट के दर्शन से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। महाकुंभ से पहले ही हजारों श्रद्धालु रोज लंबी कतारों में लगकर इस दिव्य स्थल के दर्शन कर रहे हैं। यह श्रद्धा और परंपरा का प्रतीक है।