अखिलेश से तलाक के बाद अब राजभर का नया हमसफर कौन!

  • तलाक के बाद अब किससे सियासी निकाह करेंगे राजभर
  • बसपा और भाजपा को लेकर जाने को लेकर अटकलें तेज
  • सुभासपा प्रमुख ने अभी नहीं खोले पत्ते, ऑफर का इंतजार

दिव्यभान श्रीवास्तव

लखनऊ। सपा गठबंधन से आजाद हुए सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के अगले कदम को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं। बसपा के साथ जाने के उनके बयान को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इसके उलट यह कयासबाजी तेज हो गई है कि राजभर भाजपा से ही जुड़ेंगे। जबकि राजभर इन दोनों दलों के खिलाफ नरम पड़ गए हैं। वर्ष 2024 आम चुनाव से पहले प्रदेश में वह सत्ता में भागीदारी पा सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि राजभर को लेकर ताजा अटकलें यह हैं कि अगले एक सप्ताह के अंदर उनकी मुलाकात भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से होने वाली है, जिसमें यह तय होगा कि आम चुनाव 2024 में साथ-साथ चलने के लिए राजभर की किस तरह प्रदेश की सत्ता में समायोजित किया जाए। बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ साथ आए सपा प्रमुख अखिलेश यादव और सुभासपा चीफ ओमप्रकाश राजभर की दोस्ती टूट गई है। सपा से गठबंधन टूटने के बाद ओमप्रकाश राजभर के अगले सियासी कदम को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। ऐसे में राजभर अब अपनी सियासी पारी को अपने दम पर बढ़ाएंगे या फिर किसी मजबूत राजनीतिक कंधे के सहारे आगे बढ़ेंगे। ऐसे राजभर के सामने फिलहाल तीन ही सियासी विकल्प बचे हैं? फिलहाल चर्चा यह भी है कि अखिलेश से तलाक के बाद अब राजभर का नया हमसफर कौन होगा। आखिर सपा से तलाक के बाद अब वह किससे सियासी निकाह करेंगे। इस मुद्ïदे पर सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

राजभर की पहली पसंद बसपा
अखिलेश यादव के साथ ब्रेकअप के बाद राजभर के प्राथमिकता की बात की जाए तो उनकी पहली पसंद बसपा नजर आ रही है। राजभर खुलकर दलितों और पिछड़ों के मुद्दे उठाते हुए सपा को दलित विरोधी बताने में जुट गए हैं। उनको मालूम है कि अखिलेश की सबसे बड़ी राजनीतिक शत्रु बसपा है। ऐसे में वह बसपा को प्राथमिकता दे रहे हैं। राजभर ने कहा कि हमें सपा से तलाक कुबूल हैं। साथ ही उन्होंने बसपा के साथ गठबंधन करने के संकेत देते हुए कहा कि बहुजन समाज पार्टी जिंदाबाद। अब हम गठबंधन के लिए बसपा अध्यक्ष मायावती का दरवाजा खटखाटएंगे। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल में उनकी पार्टी का मजबूत संगठन हैं। ऐसे में अगर बसपा के साथ उनके समाज का वोटर जुड़ जाएगा तो बसपा और मजबूत होकर उभरेगी। 2024 के पहले अभी बहुत गोलबंदी होगी देखते जाइए। इस तरह राजभर साफ तौर पर बसपा के साथ गठबंधन की कवायद में है।

बीजेपी के साथ फिर मिलाएंगे हाथ
ओम प्रकाश राजभर अपनी तरफ से बसपा के साथ जाने की बात कर रहे है लेकिन मायावती और उनकी पार्टी की ओर से कोई तवज्जो नहीं दिया गया है( ऐसे में राजभर के सामने दूसरा विकल्प बीजेपी है( 2022 चुनाव के बाद से राजभर के तेवर बीजेपी को लेकर नरम है और राष्टï्रपति चुनाव में भी उन्होंने एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट किया था। इतना ही नहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और केन्द्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से राजभर की पिछले दिनों मुलाकात हो चुकी है। साथ ही वह फिर से बीजेपी के केंद्रीय और प्रदेश के नेताओं के संपर्क में बताए जा रहे हैं। ऐसे में योगी सरकार ने हाल ही में उन्हें वाईश्रेणी की सुरक्षा भी मुहैया कराई है, जिसके बाद से बीजेपी के साथ उनके गठबंधन की चर्चा तेज है।

यूपी में तीसरा मोर्चा बनाएंगे!
ओमप्रकाश राजभर की बसपा और दोस्ती नहीं होती है तो उनके सामने तीसरा विकल्प अपना अलग तीसरा मोर्चा बनाने की होगी। सपा के किनारे किए जा चुके शिवपाल यादव और राजभर के बीच रिश्ते ठीक-ठाक है। ऐसे में सपा को अलग-थलग कर ओपी राजभर तीसरी मोर्चा बनाने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं, जिसमें शिवपाल यादव, कांग्रेस, मौलाना तौकीर रजा और जातीय आधार वाले कुछ छोटे दल शामिल हो। सपा से नाता टूटने के एक बड़े मुस्लिम संगठन ने भी राजभर को खत लिखकर नया मोर्चा बनाने की सलाह दी है।

अलगाव की पटकथा पहले से लिखी गई
सपा से अलगाव की पटकथा विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद से लिखी जाने लगी थी। दिल्ली में भाजपा नेता धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात के बाद राजभर की नजदीकियां फिर से भाजपा के केंद्रीय और प्रदेश के नेताओं से बढ़ने लगीं। इन नजदीकियों की हर सूचनाएं सपा मुखिया अखिलेश को हो गई थी, जिसके बाद से उन्होंने अहम फैसलों में राजभर को साथ लाने से परहेज करना शुरू कर दिया। राष्टï्रपति चुनाव में सपा और सुभासपा की दूरियां सतह पर दिखने लगीं। इस चुनाव ने अलगाव की इबारत लिख दी थी, जिसकी इतिश्री सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने राजभर को गठबंधन से आजाद कर दिया।

निगाहें एमएलसी की एक सीट पर
गठबंधन टूटने से सुभासपा के नेता व कार्यकर्ता खुश हैं। उन्हें महसूस हो रहा है कि जल्द ही उनकी भागीदारी सत्ता में होगी। नजरें एमएलसी की दो सीटों में से एक पर है। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व राजभर को साथ लाने के लिए एक सीट दे भी सकता है। इसके अलावा निगमों, बोर्डों, आयोगों में इनके कुछ नेताओं को जगह दिया जा सकता है। सपा से दूरी के बाद राजभर के बयान में एक अहम बदलाव आया है। द्रौपदी मुर्मू के हवाले से उन्होंने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि राजभर बिरादरी भी एससीएसटी में आने के लिए संघर्ष कर रही है। सपा को दलित, पिछड़ा विरोधी कहना भी शुरू कर दिया है। राजभर अब राज्य में खुद को अति पिछड़ी जातियों के साथ ही दलितों के नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।

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