भाजपा से टक्कर लेने के लिए सदन से सड़क तक दिखने वाली राजनीति करेंगे अखिलेश

लखनऊ। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का यूपी केंद्रित राजनीति का फैसला सबसे ज्यादा बसपा और कांग्रेस की चुनौतियां बढ़ाएगा। उनकी यह रणनीति अपना वोट बैंक बचाए रखने और प्रदेश में भाजपा के मुख्य विकल्प की छवि बरकरार रखने का प्रयास माना जा रहा है। ऐसे में मायावती और प्रियंका गांधी को अपनी राजनीतिक जमीन सहेजने में कठिनाई होगी। अखिलेश ने लोकसभा के बजाय विधानसभा में बने रहने के निर्णय से राजनीति के जानकारों को चौंका दिया है। सपा के वर्ष 2017 में सत्ता से बाहर होने पर वह कुछ समय विधान परिषद में रहे, पर वहां नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी अहमद हसन को दी। बाद में आजगमढ़ से लोकसभा पहुंचे। ऐसे में माना जा रहा था कि अभी भी वह प्रदेश के बजाय केंद्र की राजनीति को तरजीह देंगे।

इधर कुछ वर्षों में यूपी में सीएम रह चुके नेता के लिए यही परंपरा मानी जाती है। हालांकि 2007 में मायावती के मुख्यमंत्री बनने के शुरुआती दो साल तब के निवर्तमान मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नेता प्रतिपक्ष रहे। उसके बाद उन्होंने भी यह जिम्मेदारी अपने छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव को सौंप दी। अखिलेश के यूपी विधानसभा में बने रहने के फैसले पर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक व राजनीतिक विश्लेषक डॉ. लक्ष्मण यादव कहते हैं कि अखिलेश समझ चुके हैं कि भाजपा से टक्कर लेने के लिए सदन से सड़क तक लड़ते हुए दिखना जरूरी है। रूहेलखंड विश्वविद्यालय में कार्यरत विश्लेषक एसी त्रिपाठी मानते हैं कि लोकसभा चुनाव आने तक सपा के वोट बैंक के राष्ट्रीय राजनीति में किसी अन्य विकल्प की तलाश की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। यह भी एक वजह है कि अखिलेश यूपी की राजनीति पर फोकस रखना चाहते हैं, जिससे अपने वोट बैंक को अपने साथ बनाए रख सकें।

एमएलसी चुनाव में मैदान छोड़ने वालों पर सपा सख्त

लखनऊ। विधान परिषद प्राधिकार क्षेत्र चुनाव में सपा के जिन उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस लिए हैं, उन पर पार्टी हाईकमान सख्त हो गया है। पार्टी के छह उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस लिए हैं। इनमें से एक तो भाजपा में शामिल भी हो गया है। अब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इनके खिलाफ कार्रवाई में जुट गया है। इसी क्रम में सपा ने मिर्जापुर-सोनभद्र के उम्मीदवार रमेश सिंह व उनके सहयोगी सुनील यादव को पार्टी से निष्काषित कर दिया है। जल्द ही अन्य पर भी कार्रवाई की तैयारी है। सपा ने विधान परिषद स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र की 36 सीट में 34 पर उम्मीदवार उतारे थे। दो सीटों पर रालोद चुनाव लड़ रहा था। सपा शासन में हुए चुनाव के दौरान इन 36 सीट में से 33 पर सपा ने कब्जा जमाया था। लेकिन हालात बदले तो विधान सभा चुनाव से ठीक पहले सात एमएलसी भाजपा में चले गए। बाकी बचे 26 में 15 ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। सिर्फ 11 ने दोबारा मैदान में उतरने का एलान किया।

निवर्तमान एमएलसी के चुनाव लड़ने से मना करते ही पार्टी के अंदरखाने हलचल मच गई। कई तरह के सवाल भी उठे। हालांकि बाद में सपा शीर्ष नेतृत्व ने 34 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की। बुलंदशहर और मेरठ रालोद के खाते में गई। बुलंदशहर से रालोद ने सुनीता शर्मा को उम्मीदवार बनाया। सुनीता सपा से ब्लॉक प्रमुख रह चुकी हैं। गाजे बाजे के साथ नामांकन करने वाली सुनीता ने बाद में नाम वापस ले लिया। इसी तरह बदायूं से सिनोज कुमार शाक्य, हरदोई से रजीउद्दीन, मिर्जापुर-सोनभद्र से रमेश सिंह, बांदा-हमीरपुर से आनंद कुमार त्रिपाठी एवं गाजीपुर से भोलानाथ शुक्ला ने नाम वापस ले लिया। मैनपुरी-एटा के उम्मीदवार उदयवीर सिंह और राकेश एवं लखीमपुर खीरी के उम्मीदवार अनुराग एवं अलीगढ़ के जसवंत सिंह का पर्चा खारिज हो गया। ऐसे में यहां भाजपा उम्मीदवार निर्विरोध हो गए हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button