अरविंद शर्मा के बढ़े कद ने बता दिया अब यूपी की कमान रहेगी दिल्ली के हाथ में
योगी मंत्रिमंडल को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं
- केशव को महत्वहीन और स्वतंत्र देव को महत्वपूर्ण विभाग दिलवाकर सीएम योगी को भी ख़ुश करने की कोशिश
- अरविंद शर्मा, जितिन प्रसाद और बृजेश पाठक को माना जाता है दिल्ली दरबार का करीबी
- भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे महेन्द्र प्रताप सिंह को किसी कीमत पर मंत्री बनाने को तैयार नहीं हुआ दिल्ली दरबार
संजय शर्मा
लखनऊ। योगी सरकार के मंत्रियों के कामकाज के बंटवारे ने सभी को चौंका दिया। अरविंद शर्मा और जितिन प्रसाद का बढ़ा हुआ कद बता रहा है कि इस प्लान में अधिकांश दिल्ली की ही चली है। यह बात दीगर है कि स्वतंत्र देव सिंह को ताकतवर मंत्रालय दिलाकर और केशव मौर्य को कम महत्व का मंत्रालय दिलवा कर सीएम योगी ने अपना भी रुतबा दिखाने की कोशिश की है मगर दोनों डिप्टी सीएम योगी की पसंद के नहीं है तो 2024 से पहले संतुलन बनाये रखना दिल्ली दरबार और यूपी दरबार के लिये आसान नहीं होगा।
पिछले लगभग एक साल से भाजपा की राजनीति में दिल्ली और यूपी के बीच शीतयु्द्घ की चर्चा सुर्खियों में बनी हुई थी। यह विवाद तब और बढ़ गया था जब पीएम मोदी के सबसे करीबी और सबसे ताकतवर नौकरशाह अरविंद शर्मा को नौकरी से त्यागपत्र दिलवा कर यूपी भेजा गया। सीएम योगी ने उनसे कई दिनों तक मुलाकात नहीं की और उनको मंत्री बनाने या कोई महत्वपूर्ण पद देने से मना कर दिया था। इसके बाद यह विवाद इतना बढ़ गया था कि यूपी भाजपा के ट्विटर अकाउंट से मोदी की फोटो ही हटा दी गयी थी। इस तनातनी को संघ ने संभाला और संघ के शीर्ष नेताओं ने यूपी और दिल्ली दोनों में संतुलन बनाया। चुनाव के बीच यह चर्चा चलती रही कि अगर 220 से कम सीटें आयी तो योगी का सीएम बनना आसान नहीं होगा पर भाजपा ने सहयोगियों के साथ 273 सीटें जीत ली।
इतनी बड़ी जीत के बाद भी यूपी भाजपा में सब कुछ आसान नहीं था। सूत्रों के मुताबिक योगी किसी भी कीमत पर डिप्टी सीएम बनाने को तैयार नहीं थे और दिल्ली बिना डिप्टी सीएम के उन्हें सीएम बनाने को तैयार नहीं था। संघ में योगी की पैरवी करने वाले नेताओं को भी समझा दिया गया था कि 2024 के लिये ऐसे नहीं चलाया जा सकता। तर्क दिये गये कि सपा की ढाई गुना सीटें बढ़ी और लगभग बारह प्रतिशत मत बढ़ गया। यह कम खतरा नहीं है। ऐसे में अब दिल्ली को यूपी में हस्तक्षेप करना ही होगा। बताया जाता है कि शुरुआत में योगी भी इसके लिये तैयार नहीं थे पर इस बार दिल्ली किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं था। योगी के दो सबसे करीबी मंत्री महेन्द्र प्रताप सिंह और सुरेश राणा को लेकर योगी नरम थे पर दिल्ली सख्त था। राणा और महेन्द्र प्रताप पर भ्रष्टाचार के बहुत आरोप थे। आप सांसद संजय सिंह ने महेन्द्र प्रताप सिंह का सारा कच्चा चिट्ठा सभी के सामने रख दिया था। राणा हार चुके थे और महेन्द्र को बाहर का रास्ता दिखाना चाहता था दिल्ली दरबार। कौन मंत्री क्या संभालेगा यह चार्ट योगी को दे दिया गया था। इस चार्ट में सबसे ताकतवर उसी मंत्री को बनाया गया जिसे मिलने को योगी ने समय नहीं दिया था। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक योगी ने इसमें दखल देते हुए इच्छा जाहिर की कि दो बातें उनके मन की भी की जाएं। स्वतंत्र देव को जलशक्तिदिया जाए और केशव को महत्वपूर्ण विभाग न दिया जाए। यहां पर थोड़ा दिल्ली दरबार भी झुका और दोनों बातें मान ली गयीं।
इस मंत्रिमंडल में दिल्ली दरबार के सबसे करीबी रहे अरविंद शर्मा को सबसे महत्वपूर्ण विभाग ऊर्जा और नगर विकास विभाग देकर पूरे यूपी की नौकरशाही को संदेश दे दिया कि योगी सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री अरविंद शर्मा है। दूसरा झटका पीडब्ल्यूडी को लेकर दिया गया। यह विभाग अप्रत्याशित रूप से जितिन प्रसाद को दिया गया जो भाजपा में आने से पहले योगी के धुर विरोधी थे और उन पर ब्राह्मïणों की हत्या कराने का आरोप लगाते थे। यह भी सबसे महत्वपूर्ण विभागों में से एक है। इसी तरह चिकित्सा स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा को एक साथ करके उसका मंत्री बृजेश पाठक को बनाकर भी संदेश दिया गया कि अमित शाह के सबसे करीबी होने का इनाम पाठक को मिला है। शुरूआती दौर में गृह को भी अलग किसी मंत्री को देने की बात हो रही थी पर योगी इसके लिये एकदम तैयार नहीं हुए। इस प्रकार 34 विभाग योगी ने अपने पास रखकर संतुलन का संदेश देने की कोशिश जरूर की है पर इसे योगी का कम और अमित शाह का मंत्रिमंडल ज्यादा कहा जा रहा है।