चुनाव खत्म होते ही बढ़ा सियासी पारा सामने आए आंकड़े, टेंशन में सरकार!
4PM न्यूज नेटवर्क: राजस्थान की कुल 25 सीटों पर दो चरण में मतदान पूरे हो चुके हैं। सभी 25 सीटों पर चुनाव होने के बाद अब अटकलों का बाजार गर्म है। चुनावी प्रचार भले ही समाप्त हो गए हों लेकिन सभी राजनेता अब चुनावी परिणामों का इंतजार कर रहे हैं। वहीं वोटिंग प्रतिशत को लेकर भी लोग अटकलें बिठा रहे हैं। कौन सी सीट पर कितने प्रतिशत मतदान हुए हैं इसे लेरक भी अटकलें जारी हैं। कुछ सीटों पर मतदान प्रतिशत बहुत कम हुए हैं तो कुछ सीटों पर वोटिंग प्रतिशत का ग्राफ बढ़ा है जिससे चर्चाओं का बाजार गर्म है। लेकन वहीँ इस बार के चुनाव में प्रचार की अगर हम बात करें तो भाजपा, कांग्रेस द्वारा जमकर प्रचार किया गया मगर कई ऐसे बड़े नेता हैं जिन्होंने यहां बहुत कम प्रचार किया है। विस्तारपूर्वक अगर हम बात करें तो… बसपा की सुप्रीमो मायावती, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी ताकत नहीं दिखाई है. राजस्थान में हुए लोकसभा चुनाव के पहले चरण में कांग्रेस के दर्जन से अधिक स्टार प्रचारक आये ही नहीं. हालांकि, इसमें सोनिया गांधी जब राज्यसभा राजस्थान से चुन गई तो यहां पर कांग्रेस का कहना था कि वो चुनाव में यहां ज्यादा आएगी. मगर, वो सिर्फ एक जनसभा जयपुर में करके चली गई. उनके अधिक दौरे नहीं हो पाए. जबकि, विधान सभा चुनाव में उन्होंने यहां पर ताकत दिखाई थी.
वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सिर्फ अलवर में रोड शो किया है. जालोर और बांदीकुई में जनसभा को सम्बोधित किया था. राहुल गांधी ने भी एक दिन में दो सभाएं की थीं. बसपा सुप्रीमो मायावती सिर्फ अलवर में एक जनसभा को सम्बोधित किया था. जो पहले चरण के चुनाव से पहले आई थीं. जबकि, बसपा के नेता भरतपुर, धौलपुर-करौली, नागौर सीटों पर जनसभा करवाना चाह रहे थे. ये वो सीटों हैं जहां पर बसपा का बड़ा असर रहता है. अब भले ही इन नेताओं ने प्रचार न किया हो लेकिन वोटिंग प्रतिशत ठीक-ठाक रहा है। अगर हम सिलसिलेवार तरीके से बात करें तो यहां की 25 सीटों पर अच्छा मुकाबला बना रहा। पिछले दो लोकसभा चुनाव में 25 में से 22 सीट पर बीजेपी का जीत का मार्जिन काफी था। इस बार सभी सीटों पर मार्जिन घट सकता है। इस बार कम वोटिंग से भी इसका नुकसान होगा।बाड़मेर-जैसलमेर सीट की बात की जाए तो इस सीट का इतिहास रोचक रहा है। यहां पर 2014 में वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को दरकिनार करके कांग्रेस से आए कर्नल सोनाराम को प्रत्याशी बनाया गया था। दरकिनार करने पर जसवंत सिंह ने निर्दलीय ताल ठोंक दी। स्वाभिमान का नारा दिया। ऐसे में चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच होने के बजाय निर्दलीय और भाजपा में शिफ्ट हो गया। कांग्रेस प्रत्याशी हरीश चौधरी तीसरे नंबर पर रहे।
अब उनके बेटे मानवेंद्र भाजपा में आ गए, लेकिन समर्थकों के मन में टीस वैसी ही रही और इसे रविन्द्र सिंह भाटी ने हवा दी। इस बार भी यही कहा जा रहा है कि चुनाव दो पार्टियों में नहीं बल्कि निर्दलीय और एक पार्टी के बीच रहेगा। भाजपा के प्रत्याशी रहे कर्नल सोनाराम अब कांग्रेस में हैं। यहां पर भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की चुनौती बढ़ी हुई है। निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी ने समाज के साथ मूल ओबीसी के वोटों में सेंधमारी की है, जो बीजेपी को कोर वोटर्स था। शिव विधानसभा में पूर्व विधायक अमीन खान के खुले में रविंद्र सिंह भाटी को समर्थन देने से भाटी को फायदा होने की उम्मीद है। इससे रविंद्र सिंह भाटी टक्कर में तो है। हालांकि जैसलमेर शहर में और मुस्लिम वोटों में रविन्द्र सिंह ज्यादा सेंधमारी नहीं कर पाए। बीजेपी ने कमबैक करते हुए अपने कोर वोटर के वोट लेने के प्रयास किए और किसी हद तक सफल भी रही है।
दौसा सीट राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री किरोड़ी मीणा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। यहां पर कांग्रेस ने दौसा से विधायक मुरारीलाल मीणा को टिकट दिया है। सचिन पायलट खेमे के नेता होने के कारण गुर्जर वोट बैंक का उन्हें सहारा मिला है। बीजेपी ने बस्सी से पूर्व विधायक कन्हैया लाल मीणा को मैदान में उतारा है। किरोड़ीलाल मीणा ने अंतिम समय तक अपना दम यहां पर झोंका लेकिन गुर्जर, मीणा, दलित और मुस्लिम वोटर्स के समीकरणों की वजह से ये सीट फंसी हुई है। भीतरघात की भी आशंका है।कोटा में लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला मैदान में हैं। उनके सामने भाजपा से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल हैं। कोटा दक्षिण में कम वोटिंग रही है। दक्षिण बीजेपी का या यूं कहे बिरला का गढ़ रहा है। यहां ब्राह्मण वोट साइलेंट होने से कुछ चुनौती है। हालांकि ओवरऑल वोटिंग प्रतिशत ठीक रहने को भाजपा अच्छा मान रही है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अंडर करंट से वोट कांग्रेस को मिला है। कोटा-बूंदी हिंदुत्ववादी सीट या सनातनी सीट रही है। कांग्रेस यहां अपवाद के रूप में ही जीती है, लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है। एंटी इनकंबेसी और पर्सनल नाराजगी, जातिवाद का कितना असर होगा, आने वाला समय ही बताएगा। हालांकि एक पॉइंट ये भी है कि बिड़ला पिछले दो बार से दो लाख से अधिक मतों से जीतते आए हैं। ऐसे में ये मार्जिन उन्हें काफी सपोर्ट कर सकता है।
वरिष्ठ नेता महेंद्र सिंह मालवीया कांग्रेस से भाजपा में आए। जिस तरह मारवाड़ में रविन्द्र सिंह भाटी की हवा है, उसी तरह बांसवाड़ा बीएपी के प्रत्याशी राजकुमार रोत का प्रभाव देखने को मिलता है। यहां पर भी पिछली बार भाजपा 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीती थी। ऐसे में मालवीय को जीत की उम्मीद है। कांग्रेस ने यहां बीएपी से गठबंधन कर दिया था, लेकिन तब तक वह सिंबल दे चुकी थी और कांग्रेस के प्रत्याशियों ने नाम वापस नहीं देकर पार्टी को संकट में डाल दिया था। रोत को लेकर युवाओं में उत्साह है।नागौर सीट पर कांग्रेस का गठबंधन आरएलपी मुखिया हनुमान बेनीवाल के साथ हुआ है। यहां पर मुकाबला भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा के साथ है। ये पिछले दो बार से कांग्रेस से प्रत्याशी थीं। दोनों एक ही जाति के प्रत्याशी हैं। ऐसे में यहां भी कांटे का मुकाबला दिख रहा है। कम वोटिंग प्रतिशत बेनीवाल अपने पक्ष में बता रहे हैं, तो भाजपा का मानना है कि बेनीवाल के पक्ष में ज्यादा वोटिंग नहीं हुई।
इतना ही नहीं चर्चित सीटों की अगर हम बात करें तो इनमें से एक अजमेर लोकसभा सीट भी है और इस सीट से इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने जाट उम्मीदवार उतारा है। 12 अन्य कैंडिडेट चुनाव मैदान में हैं। अजमेर में आठ विधानसभा क्षेत्र में से किशनगढ़ को छोड़ सभी जगह बीजेपी के विधायक हैं। दूदू से उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा आते हैं। अजमेर उत्तर से विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी विधायक हैं। सभी विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र में अधिक से अधिक मतदान के लिए सक्रिय नजर आए। इस बार वोटिंग परसेंटेज कम है। एक ही जाति के कैंडिडेट में मुकाबला होने से मतदाताओं में उत्साह नहीं था। वहीं एक सीट और है जो की चर्चा में बनी हुई है दरअसल हम बात कर रहे हैं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत जालोर-सिरोही सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां पर पिछला जीत का अंतर 2.61 लाख था। इस इलाके में माली प्रभाव के करीब सवा लाख वोटर हैं। कुल आठ विधानसभाओं में से चार में कांग्रेस और चार में भाजपा का प्रभाव देखने को मिला। भाजपा का कट्टर वोट बैंक माने जाना वाला राजपूत, माली समाज कुछ हद तक कांग्रेस के साथ जाता दिखा।
अब सभी सीटों पर चुनाव संपन्न हो गए हैं और लगातार अटकलों का बाजार गर्म है, वहीं अब राजनेता दूसरे राज्यों में पहुँच कर अपनी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं। वोटरों को साधने के लिए तरह-तरह की कोशिश की जा रही है। यहाँ तक कि खुद सीएम मोहन यादव दूसरे राज्यों में पहुँच कर चुनावी माहौल क्लो भांप रहे है और वोटरों से अपील कर रहे हैं। अब देखना ये होगा कि इस बार प्रदेश की 25 सीटों में से ज्यादा सीटें कौन जीतता है। इतना ही नहीं ऐसा माना जा रहा है कि राजस्थन भी इस बार के लोकसभा चुनाव में अहम किरदार निभाने वाला है क्योंकि भले ही पिछली बार के चुनाव में भाजपा ने यहां से बड़ी जीत दर्ज की हो लेकिन इस बार जिस तरह का माहौल है इससे एक बात तो तय है कि प्रदेश में सीटों का अंतर बढ़ने वाला है जिस तरह से पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस का ग्राफ उठा है इससे यह साफ़ जाहिर होता है कि इस बार के चुनाव में बदलाव होगा। खैर अब किसे कितनी सीटें मिलेंगी ये तो आने वाला समय ही तय करेगा।