वोटिंग के पहले बुरा फंसा NDA, सम्राट, ललन पर FIR!
अगर आपने गैंग्स ऑफ वासेपुर नहीं देखी है, तो इस वक्त बिहार चुनाव देख लीजिए। क्योंकि इस समय जिस तरह से बिहार चुनावों में सत्ता पक्ष के लोग खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं, वो किसी फिल्म से कम नहीं है।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः अगर आपने गैंग्स ऑफ वासेपुर नहीं देखी है, तो इस वक्त बिहार चुनाव देख लीजिए। क्योंकि इस समय जिस तरह से बिहार चुनावों में सत्ता पक्ष के लोग खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं, वो किसी फिल्म से कम नहीं है। सोचिए, माइक से केंद्रीय मंत्री खुद यह बता रहे हैं कि वोट लूटने की प्लानिंग कैसे करनी है। कैसे लोगों को डराना है, धमकाना है, कैसे उन्हें घरों में बंद करके जबरन वोट डलवाने हैं।
यह सब न तो किसी अपराधी गैंग की मीटिंग का हिस्सा है और न ही किसी फिल्म की स्क्रिप्ट । बल्कि यह देश के एक राज्य के चुनाव की सच्चाई है। और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि चुनाव आयोग, जिसे इन सब पर कार्रवाई करनी चाहिए, वह गहरी नींद में सोया हुआ है। वहीं, अगर विपक्ष का कोई छोटा नेता या कार्यकर्ता ज़रा भी कुछ बोल दे, तो चुनाव आयोग फौरन नोटिस थमा देता है। गोदी मीडिया भी इस पूरे खेल में एक अहम किरदार बन चुकी है। मीडिया का काम सत्ता से सवाल पूछना होता है, लेकिन आज वह भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने का औजार बन चुकी है। बड़े-बड़े चैनल भाजपा नेताओं से बिहार के विकास, बेरोज़गारी, पलायन, शिक्षा या स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर एक भी सवाल नहीं पूछते। बल्कि ऐसे सवाल पूछते हैं, जिनसे सत्ता पक्ष का प्रचार मज़बूत हो और जनता के असली मुद्दे गायब हो जाएं। ऐसे माहौल में नेताओं से असली सवाल पूछने की जिम्मेदारी अब आम जनता ने खुद उठाई है। जनता अब खुद सड़क पर, सोशल मीडिया पर और जनसभाओं में सवाल पूछ रही है। आज हम आपके सामने दो ऐसी वीडियो की बात करने जा रहे हैं, जिनसे साफ समझ आता है कि एनडीए को अब अपनी हार दिखाई देने लगी है।
जब किसी सत्ता पक्ष को अपनी हार का डर सताने लगता है, तो वह लोकतंत्र के रास्ते से भटककर गुंडागर्दी के रास्ते पर उतर आता है। गुंडागर्दी की बात चली है तो हम आपको केंद्रीय मंत्री द्वारा दिए गए एक ऐसे बयान के बारे में बताते हैं जो आप सोच नहीं सकते की 21वीं सदी में हमारे नेता इस तरह का बयान भी दे सकते हैं। बड़ी हैरानी की बात है कि एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष के जंगल राज के आरोप लगाते हैं और कट्टा दुनाली करते हैं। तो वहीं उनके मंत्री खुलेआम लोगों को जबरदस्ती घरों में बंद करने डराने धमकाने की बात कर रहे हैं और चुनाव आयोग इस पर अभी तक कोई एक्शन नहीं ले पाया है़। यहां हम बात कर रहे हैं केंद्रीय मंत्री ललन सिंह के बारे में। जी हां वही ललन सिंह जो पटना में मोदी के रोड शो में उनके बगल में खड़े हुए थे। आज उनका एक वीडियो सामने आया है,जिसमें वो बता रहे हैं कि कैसे आम वोटरों को डराना धमका कर अपने लिए वोट बटोरना है। जीं हां इस वीडियो में मंत्री जी खुलेआम अपने कार्यकर्ताओं को आदेश देते हुए कह रहे हैं कि गरीबों को वोटिंग के दिन घर से निकलने नहीं देना है! घर में बंद कर देना है, अगर ज्यादा हाथ पैर जोड़ेगा तो अपने साथ ले जा कर वोट गिराने देना है। सोचिए वोटिंग से पहले सत्तापक्ष के बड़े नेता को ऐसी बात कहनी पड़ रही है। अगर आपको कही हुई बातों पर यकीन हो रहा है तो आप खुद इनका ये बयान सुन लीजिये।
तो सुना आपने किस तरह से एक केंद्रीय मंत्री अपने कार्यकर्ताओं को गुंडागर्दी करने के लिए हरी झंडी दिखा रहा है। साफ तौर पर यहाँ मंत्री जी बिहार को उसी अराजकता की ओर ढकेलने की कोशिश कर रहे हैं जिससे बिहार बड़ी मुश्किल से उभरा था। सोचिए मोदी-शाह अपने हर बयान में लालू के जंगल राज की बात करते नहीं थकते हैं और उन्हीं के मंत्री खुलेआम गुंडागर्दी करने की बात कह रहे हैं। और चुनाव आयोग है कि चूं भी नहीं करता है। सोचिए, देश का एक केंद्रीय मंत्री, जो संविधान की शपथ लेकर सत्ता में बैठा है, वह खुद गुंडागर्दी का निर्देश दे रहा है। क्या यही लोकतंत्र है? क्या यही वह “अच्छे दिन” हैं, जिनका वादा किया गया था? और इस सबके बावजूद चुनाव आयोग चुप्पी साधे बैठा है। यह वही आयोग है, जो विपक्ष के नेताओं के एक ट्वीट या बयान पर तुरंत एक्शन ले लेता है, लेकिन जब सत्ता पक्ष के मंत्री लोकतंत्र को खुलेआम धता बताते हैं, तब वही आयोग खामोश हो जाता है। आरजेडी ने इस वीडियो को अपने एक्स हैंडल पर शेयर करते हुए चुनाव आयोग से सवाल किया है कि आखिर ललन सिंह पर कब कार्रवाई होगी। लेकिन अब तक न आयोग ने कोई जवाब दिया, न सरकार ने कोई सफाई दी।
अब बात करते हैं दूसरी वीडियो की, जिसमें बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी का विरोध जनता खुद करती नज़र आती है। यह विरोध विपक्ष के किसी नेता या कार्यकर्ता द्वारा नहीं, बल्कि आम जनता द्वारा किया गया है। सम्राट चौधरी वही व्यक्ति हैं, जिन्हें मोदी शाह बिहार का अगला मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। लेकिन इस चुनाव में उनकी हालत ऐसी हो चुकी है कि वे जनता के बीच जाने से भी डरते हैं। जनता अब उनसे उनकी 10वीं की मार्कशीट मांग रही है, लेकिन जवाब में वह सिर्फ धर्म और नफरत की बातें करते हैं। उनसे अगर कोई विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य या पलायन के मुद्दों पर सवाल करता है, तो वे तुरंत हिंदू-मुस्लिम की बहस छेड़ देते हैं। अब इन्हीं सवालों को लेकर एक जब एक आम आदमी उनके रोड शो में घुस गया तो देखिए सम्राट चौधरी का मुंह तक नहीं खुला।
इस वीडियो में देखा जा सकता है कि जब एक आम व्यक्ति उनके रोड शो में घुसकर सवाल पूछता है, तो सम्राट चौधरी के पास एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं होती। वो चुपचाप खड़े रह जाते हैं, और उनके सुरक्षा कर्मी उस व्यक्ति को घेर लेते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस वीडियो में सम्राट चौधरी के साथ ललन सिंह भी मौजूद हैं। यानी दोनों बड़े नेता, जिनके ऊपर बिहार में शासन और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी है, वे जनता के सवालों से भाग रहे हैं।
अब देखिए सम्राट चौधरी और ललन सिंह का विवाद सिर्फ इन्हीं दो वीडियो तक सीमित नहीं है। असली विवाद तब शुरू हुआ जब ये दोनों नेता,ललन सिंह और सम्राट चौधरी,अनंत सिंह के समर्थन में प्रचार कर ने के लिए बिहार के मोकामा पहुंचे। जी हां, वही अनंत सिंह जो कुछ दिन पहले दिनदहाड़े हुए गोलीकांड के मामले में गिरफ्तार हुआ है और अब जेल से ही चुनाव लड़ रहा है। सोचिए, एक ऐसे व्यक्ति के लिए दो बड़े मंत्री प्रचार करने जाते हैं, जिसके खिलाफ हत्या और अपराध के गंभीर आरोप हैं। क्या यही भाजपा का “सुशासन” है? क्या यही “भ्रष्टाचार और अपराध मुक्त भारत” का दावा है? विपक्ष ने जब इस पूरे मामले को उठाया, तो सोशल मीडिया पर मोदी-शाह और उनकी पार्टी की जमकर फजीहत हुई। जनता ने सवाल पूछा कि आखिर कैसे भाजपा के नेता एक अपराधी के लिए प्रचार कर सकते हैं। जब दबाव बढ़ा, तो दिखावे के लिए पुलिस को हरकत में आना पड़ा।
पटना के एसएसपी कार्तिकेय शर्मा ने संज्ञान लिया और एक औपचारिक एफआईआर दर्ज की गई। लेकिन यह कार्रवाई सिर्फ दिखावे की थी। क्योंकि जब ललन सिंह और सम्राट चौधरी मोकामा में प्रचार कर रहे थे, तब वे अनंत सिंह की जमकर तारीफ कर रहे थे। ललन सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि अनंत सिंह को फंसाया गया है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि अनंत सिंह के रोड शो में सिर्फ ज्यादा गाड़ियां होने की वजह से एफआईआर हुई है। यह सब सुनकर सवाल उठता है कि जब देश के मंत्री खुद कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं, तो आम आदमी से कानून पालन की उम्मीद कैसी? जब सरकार के नेता ही अपराधियों को मसीहा बता रहे हैं, तो फिर अपराध के खिलाफ चलने वाली नीति महज एक दिखावा नहीं है क्या? भाजपा जो पार्टी खुद को “भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ लड़ने वाली” बताती है, वह अब उन्हीं अपराधियों की गोद में बैठी नजर आ रही है।
अगर आप बिहार चुनाव के इस पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देखें, तो साफ दिखाई देता है कि अब यह चुनाव लोकतंत्र का उत्सव नहीं बल्कि सत्ता का प्रदर्शन बन गया है। यह वही बिहार है, जिसने लोकतंत्र की जड़ें मजबूत की थीं। लेकिन आज वहीं लोकतंत्र को कुचला जा रहा है। सत्ता पक्ष के नेता खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं, धमका रहे हैं, जनता को घरों में बंद रखने की बातें कर रहे हैं, और इसके बावजूद चुनाव आयोग मौन साधे बैठा है। यह मौन लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। लोकतंत्र में चुनाव जनता की आवाज़ होते हैं, लेकिन बिहार में इस समय वही आवाज़ दबाई जा रही है।
केंद्रीय मंत्री से लेकर स्थानीय नेताओं तक, सभी ने मिलकर लोकतांत्रिक मर्यादाओं की हत्या कर दी है। मोदी और भाजपा लगातार विपक्ष पर “जंगलराज” का आरोप लगाते हैं, लेकिन जब उनके अपने मंत्री जनता को डराने और धमकाने की बातें करें, तो यह किस राज की परिभाषा में आता है? क्या यह लोकतंत्र है या फिर एक संगठित सत्ता तंत्र, जो हर विरोधी आवाज़ को कुचल देना चाहता है? जब चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था इस सब पर कार्रवाई करने की जगह चुप्पी साध लेती है, तो यह चुप्पी किसी सहमति से कम नहीं होती। यह न सिर्फ राजनीतिक पाखंड है बल्कि लोकतंत्र का मजाक भी है।
कुल मिलाकर, बिहार चुनाव अब केवल वोटों की लड़ाई नहीं रह गई है। यह अब एक ऐसी परीक्षा बन गई है जिसमें तय होगा कि लोकतंत्र में जनता की ताकत ज़्यादा है या सत्ता का दबदबा। इस पूरे मामले को लेकर आप क्या सोचते हैं? इस पर आपकी क्या राय है? हमें कमेंट में ज़रूर बताइए।



