बिहार का अनोखा गांव! यहां हर परिवार के पास है कम से कम एक नाव
बिहार में कई अद्भुत गांव है जो अलग-अलग कारणों से चर्चा में बने रहते है। इस कड़ी में हम सीवान जिला के एक ऐसे गांव की हम बात करने जा रहे हैं। जहां परिवार की संख्या से भी अधिक नाव है। दरअसल, यह गांव कोई और नहीं बल्कि तीर बलुआ गांव है। यह गांव गंडक नदी और सरयू नदी के तट पर स्थित है। यहां के लोगों के लिए नाव रखना शौक नहीं बल्कि मजबूरी है। यह गांव अपने आप में भी काफी अजूबा है। यहां के लोगों की पूरी दिनचर्या नाव पर ही व्यतीत हो जाता है। नहाने-धोने से लेकर बर्तन मांजने तक का काम नाव पर ही होता है। तीर बलुआ गांव के रहने वाले कलिंदर बताते हैं कि इस गांव में कुल परिवारों की संख्या 120 है। हालांकि यहां नाव की 150 के आस-पास है। यानि कि यहां परिवार की संख्या से अधिक नावों की संख्या है। यहां के लोगों के पास बाइक, कार या घोड़ा सहित अन्य साधन भले ना मिले, लेकिन प्रत्येक घर में नाव जरूर मिल जाएगा। इस गांव के लोगों की डोर नाव बन गयी है। सभी दैनिक कार्य नाव के सहारे हीं होता है। चाहे वे नहाने, कपड़ा धोने, बर्तन मांजने, खेती बाड़ी करने जाना, पशुओं के चारा लाने, फसलों को लाने, जीविका के लिए मछली पकडऩे या फिर जीवन बचाना हो, सभी काम नाव से हीं होता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां प्रत्येक वर्ष नदियों में पानी बढऩे से बाढ़ आ जाता है। इस वजह से नाव ही एक सहारा बचता है। अगर नदी के तट पर रिंग बांध बन जाए तो बाढ़ की समस्या से निजात मिलेगा और बाढ़ के साथ-साथ नाव रखने की समस्या से भी निजात मिल जाएगा। ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ के समय आपदा विभाग या जिला प्रशासन की ओर से कोई राहत नहीं दी जाती है। बाढ़ के दिनों में फसल भी पूरी तरीके से बर्बाद हो जाता है। खाने-पीने तक के लाले पडऩे लगते हैं। जैसे-तैसे व्यवस्था की जाती है। इसके बावजूद राहत सामग्री नहीं मिल पता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ग्रामीण अपने हाथों से हीं नाव को तैयार करते हैं। नाव के लिए आवश्यक समान बाजार से खरीद के लाने के एक सप्ताह में नाव को तैयार हो जाता है । नाव बनाने में ग्रामीण निपुण है। एक नाव बनाने में उन्हें 25 से 30 हजार तक का खर्च आ जाता है। हालांकि लोग अपने जरूरत के लिए नाव बनाते हैं। नाव बनाकर बेचने का काम नहीं करते हैं।