झारखंड में बीजेपी का सूपड़ा साफ, चंपई ने तो और बुरा फंसा दिया!
केंद्र में बैठी मोदी सरकार का हमेशा से इतिहास रहा है... कि अपने फायदे के लिए वो कभी किसी पार्टी को तोड़ती है...
4पीएम न्यूज नेटवर्कः दुश्मन न करे… दोस्त ने वो काम किया है… यूं तो ये लाइने एक फिल्मी गाने की है… लेकिन ये लाइने इस समय की राजनीति के लिए सटीक बैठ रही है… केंद्र में बैठी मोदी सरकार का हमेशा से इतिहास रहा है… कि अपने फायदे के लिए वो कभी किसी पार्टी को तोड़ती है… कभी किसी बड़े नेताओं को तोड़ती है… इसी क्रम में मोदी ने झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व सीएम चंपई सोरेन को अपने खेमें में शामिल कर लिया है… जिससे सिसासत तेज हो गई है…. मोदी के द्वारा चंपई सोरेन को अपने खेमें शामिल करने से क्या फायदा मिलता है… यह तो आने वाले समय में पता चल जाएगा… वहीं बीते कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनावों पर नज़र डालेंगे तो बीजेपी का एक पैटर्न नज़र आएगा…. विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बदल देती है या विपक्षी दलों के नामी नेताओं को पार्टी से जोड़ लेती है… बता दें कि बीजेपी ऐसा पहली बार नहीं कर रही है… ऐसा पहले से करती चली आ रही है… वहीं इससे पहले के विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी….. गुजरात में विजय रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल….. कर्नाटक में येदियुरप्पा की जगह बासवराज बोम्मई….. उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी…. त्रिपुरा में विप्लब कुमार देव की जगह माणिक साहा को सीएम बनाया गया…. ठीक इसी तरह बंगाल में शुभेंदु अधिकारी, महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण, पंजाब में सुनील जाखड़ और कैप्टन अमरिंदर सिंह, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया, असम में हिमंत बिस्वा सरमा… ऐसे कई नाम हैं जो बीजेपी में तब शामिल किए गए जब चुनावी मौसम था….
वहीं कहा जाता है कि बीजेपी ऐसा करके सत्ता विरोधी लहर से बचने की कोशिश करती है…. और नए नेतृत्व की संभावनाओं की चर्चाओं को विस्तार दे देती है…. वहीं अब इस लिस्ट में नया नाम झारखंड के पूर्व सीएम और जेएमएम नेता चंपाई सोरेन का जुड़ गया है…. चंपई सोरेन शुक्रवार को बीजेपी में शामिल हो गए हैं…. चंपई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने पर अब सवाल उठ रहा है कि चंपई सोरेन की सियासी ज़मीन कितनी मज़बूत है… और बीजेपी के चंपई सोरेन को पार्टी में शामिल करने की क्या वजह रही है…. आपको बता दें छब्बीस अगस्त को हिमंत बिस्वा सरमा के सोशल मीडिया पर एक तस्वीर शेयर की गई…. इस तस्वीर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, सरमा के अलावा चंपाई सोरेन भी दिख रहे थे… सरमा झारखंड में बीजेपी के चुनाव प्रभारी भी हैं…. सरमा ख़ुद भी दो हजार पंद्रह में असम चुनाव से पहले कांग्रेस से बीजेपी में आए थे…. अब सरमा ही झारखंड चुनाव से पहले चंपई सोरेन को बीजेपी से जोड़ने में अहम भूमिका में थे….. झारंखड बीजेपी में फ़िलहाल कोई वैसा नेता नहीं है…. जिसकी अपील हर तबके में हो…. दिसंबर दो हजार चौदह में झारखंड में जब बीजेपी जीती तो रघुबर दास के रूप में पहली बार राज्य को ग़ैर-आदिवासी सीएम मिला….
बता दें कि रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाने को बीजेपी के राजनीतिक प्रयोग के रूप में देखा गया….. वहीं झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से ग़ैर-आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने का जोखिम किसी पार्टी ने नहीं उठाया था…. यह कुछ ऐसा ही था…. जैसे बीजेपी हरियाणा में ग़ैर जाट, महाराष्ट्र में ग़ैर मराठा और गुजरात में ग़ैर-पटेल पर दांव लगा चुकी थी…. हरियाणा में बीजेपी का यह प्रयोग सफल भी रहा लेकिन महाराष्ट्र और झारखंड में ऐसा नहीं हुआ…. बता दें कि दो हजार उन्नीस के झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी हार गई…. यहां तक कि रघुबर दास अपनी सीट भी नहीं बचा पाए और उन्हें बीजेपी के ही बाग़ी सरयू राय ने हराया था…. इस हार के बाद रघुबर दास झारखंड बीजेपी में हाशिए पर आते गए… और आखिर में वह ओडिशा के राज्यपाल बना दिए गए…. झारखंड बीजेपी में अर्जुन मुंडा भी बड़े नेता रहे हैं…. वह प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री भी रहे…. लेकिन इस बार वह लोकसभा चुनाव हार गए…. अर्जुन मुंडा भी झारखंड मुक्ति मोर्चा से ही बीजेपी में आए थे…. आपको बता दें कि रघुबर दास, अर्जुन मुंडा की कैबिनेट में वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री भी रहे….. और दो हजार चौदह में भी बीजेपी अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ रही थी… लेकिन अर्जुन मुंडा खरसांवा से ख़ुद ही चुनाव हार गए…. इसके बाद मुख्यमंत्री का उनका दावा कमज़ोर पड़ा…. और रघुबर दास को मौक़ा मिल गया… लेकिन दो हजार उन्नीस के विधानसभा चुनाव में रघुबर दास भी अपनी सीट हार गए….
आपको बता दें कि हो हजार उन्नीस के विधानसभा और दो हजार चौबीस के लोकसभा चुनावों में अनुसूचित जनजाति के लिए रिज़र्व सीटों पर हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा को फ़ायदा हुआ…. बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने थे…. वह प्रदेश में बीजेपी के अहम चेहरे थे… लेकिन पार्टी में और ज़मीन पर उनकी पकड़ भी ढीली पड़ती गई…. मरांडी ने बीजेपी छोड़कर झारखंड विकास मोर्चा नाम से नई पार्टी बनाई थी… लेकिन दो हजार उन्नीस के झारखंड चुनाव के बाद बीजेपी ने मरांडी की वापसी कराई…. अब मरांडी झारखंड में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं….. बीजेपी कमज़ोर पड़ी तो मरांडी के पास गई…. लेकिन मरांडी को झारखंड की जनता आजमा चुकी है…. रघुबर दास राज्यपाल बना दिए गए…. अर्जुन मुंडा चुनाव हार गए… और मरांडी की वापसी से बीजेपी बहुत लोकप्रिय नहीं लग रही है…. ऐसे में चंपई सोरेन को बीजेपी में शामिल कर लिया गया है… बता दें कि मोदी चंपई सोरेन के माध्यम से झारखंड में अपनी खोई लोकप्रियता को पटरी पर लाने की कोशिश करेंगे…
वहीं अब सवाल उठता है कि क्या चंपई सोरेन बीजेपी को झारखंड में फिर से सत्ता दिलवा सकते हैं…. बीजेपी में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा…. क्या बीजेपी इस बार भी ग़ैर-आदिवासी पर दांव लगाएगी…. शायद अभी इन सवालों का जवाब बीजेपी के पास भी नहीं होगा…. बीजेपी ने पिछले एक दशक में राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति बदली है….. कई बार होता है कि जिसके नेतृत्व में बीजेपी चुनाव लड़ती है…. उसे पार्टी मुख्यमंत्री नहीं बनाती है…. और जो लोकप्रिय चेहरा नहीं होता है…. उसे मुख्यमंत्री बना देती है…. मिसाल के तौर पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में जिन चेहरों को सीएम बनाया गया…. उनके नाम की चर्चा कहीं नहीं थी…. वहीं अब सवाल ये है कि चंपई सोरेन की सियासी ज़मीन क्या वाक़ई इतनी मज़बूत है कि बीजेपी अतीत में हुए नुक़सान की भरपाई कर पाएगी…. अपनी खोई जमीन को पाने के लिए मोदी और बीजेपी किसी भी हद तक जा सकते हैं… लेकिन मोदी की केंद्र में रहते हुए जनता पिछले दस सालों से मोदी की राजनीति को देख रही है… देश के तमाम राज्य महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों से जल रहा है… मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है… मोदी ने आज तक मणिपुर को लेकर एक बार भी नहीं बोला है… और एक बार भी वहां का दौरा नहीं किया है…. मोदी राज्यों में चुनाव से पहले बड़ी पार्टियों को तोड़ने की कोशिश करते हैं… और अगर उनका पार्टी तोड़ने का फार्मूला सफल नहीं होता है… तो पार्टी के बड़े नेताओं को अपने खेमें में शामिल कर लते हैं… यह मोदी और बीजेपी पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है….
आपको बता दें कि झारखंड में विधानसभा की इक्यासी और लोकसभा की चौदह सीटें हैं…. दो हजार उन्नीस के विधानसभा चुनावों में जेएमएम गठबंधन सैंतालीस सीटें जीतने में सफल रहा था…. और बीजेपी को चुनाव में महज़ पच्चीस सीटें मिली थीं…. जानकारी के अनुसार झारखंड में आदिवासी आबादी क़रीब छब्बीस फ़ीसदी है… दो हजार चौबीस के लोकसभा चुनाव में बीजेपी आदिवासियों के लिए आरक्षित पांचों सीटों पर हार गई थी…. चंपई सोरेन झारखंड में राजनीतिक रूप से असरदार संथाल जनजाति के बड़े नेता हैं…. हेमंत सोरेन भी इसी जनजाति से हैं…. ऐसे में चंपई सोरेन जो कभी ख़ुद हेमंत सोरेन…. और शिबू सोरेन के भरोसेमंद रहे थे…. वो बीजेपी के लिए अहम हो गए हैं…. चंपई सोरेन कोल्हान क्षेत्र से आते हैं…. दो हजार ग्यारह की जनगणना के मुताबिक़, कोल्हान से आदिवासी आबादी सबसे ज़्यादा यानी क़रीब बयालीस फ़ीसदी है…. दो हजार उन्नीस विधानसभा चुनाव में जेएमएम गठबंधन ने इस क्षेत्र की चौदह विधानसभा सीटों में से तेरह विधानसभा सीटें जीती थीं…. दो हजार चौदह के विधानसभा चुनाव में कोल्हान प्रमंडल में रघुवर दास इकलौते प्रत्याशी थे…. जो सत्तर हज़ार वोट से जीते थे…. वहीं इस प्रमंडल में झारखंड की चौदह सीटें हैं…. और इनमें रघुवर दास ही एकमात्र उम्मीदवार थे…. जिन्हें एक लाख से अधिक वोट मिले थे…
जानकारी के मुताबिक चंपई सोरेन साल उन्नीस सौ इक्यानवे में सरायकेला सीट पर हुए उपचुनाव में पहली बार जीते…. चंपाई सोरेन तत्कालीन बिहार विधानसभा के सदस्य बने क्योंकि तब झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था….और उन्नीस सौ पंचानबे में चंपई इस सीट से फिर जीते…. लेकिन साल दो हजार में हार गए…. वहीं इस हार के बाद चंपाई सोरेन विधानसभा चुनाव हारे नहीं हैं…. दो हजार पांच, दो हजार नौ, दो हजार चौदह और दो हजार उन्नीस के चुनाव में चंपई इसी सीट से विधायक चुने गए…. आपको बता दें कि किसान के बेटे चंपाई ने दसवीं तक पढ़ाई की है… लेकिन झारखंड की राजनीति में वो किसी से पीछे नहीं हैं…. बता दें कि चंपाई को कोल्हान का टाइगर भी कहा जाता है…. जिसको लेकर झारखंड बीजेपी अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी ने हाल ही में कहा था कि झारखंड आंदोलन से चंपई सोरेन मज़बूत नेता रहे हैं…. अगर वो बीजेपी में शामिल होते हैं… तो पार्टी मज़बूत होगी…. चंपई का कुछ सीटों पर प्रभाव है…. कोल्हान में बीजेपी भी मज़बूत है….
आपको बता दें कि हेमंत सोरेन को बीजेपी के जाल में फंस कर इस साल जेल जाना पड़ा था… और इसी दौरान चंपई सोरेन सीएम बने थे…. वहीं अब हेमंत सोरेन बाहर हैं और फिर से सीएम बन गए हैं…. जिसके बाद विरोधी दल हेमंत सोरेन को जेल भेजे जाने को आदिवासी अस्मिता से जोड़कर मुद्दा बना रहे हैं…. वहीं जनता के बीच ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि हेमंत सोरेन आदिवासी थे…. इस कारण बीजेपी ने जेल भेज दिया…. लेकिन जानकारों का कहना है कि हेमंत सोरेन के मामले में जनता की सहानुभूति जेएमएम के साथ हो सकती है…. हालांकि लोकसभा चुनाव के नतीजे कुछ और गवाही देते हैं…. वहीं झारखंड में बीजेपी आठ सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी है…. जेएमएम तीन, कांग्रेस दो और एजेएसयूपी एक सीट जीत सकी थी…. बता दें कि बीजेपी का वोट फ़ीसद भी क़रीब चौव्वालीस फ़ीसदी रहा… वहीं कांग्रेस का वोट फ़ीसदी उन्नीस और जेएमएम का चौदह फ़ीसदी रहा था….