राहुल गांधी के खिलाफ साजिश को बयां करती किताब
राहुल गांधी : सांप्रदायिकता दुष्प्रचार और तानाशाही से ऐतिहासिक संघर्ष
दयाशंकर मिश्र ने शब्दों मे पिरोया कांग्रेस नेता का पूरा चरित्र
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। ऐसे वक्त में आई है, जब मीडिया आत्मसमर्पण कर चुका है। लोकतंत्र और संविधान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह किताब राहुल गांधी के विरुद्ध 2011 से छलपूर्वक रचे गए षडयंत्रों पर विस्तार से बात करते हुए सांप्रदायिकता, दुष्प्रचार और तानाशाही से उनके ऐतिहासिक संघर्ष का तथ्यात्मक दस्तावेज है। 11 खंडों की यह किताब 752 पेज में मोदी सरकार के 10 साल का पूरा हिसाब-किताब पेश करती है। इसके साथ ही राहुल गांधी पर फैलाए गए झूठ का ठोस, तथ्यात्मक प्रतिवाद है। किस तरह नागरिकों के दिमाग को हाईजैक करने की कोशिश की जा रही है, किताब में इसकी की विस्तृत व्याख्या है। यह अन्ना आंदोलन के नाम पर झूठ और प्रोपेगेंडा की आँधी से लेकर मीडिया के गोदी मीडिया बनने और नफरत के चलते उपजी असहिष्णुता पर बात करती है।
दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश के साथ नागरिकों की मॉब लिंचिंग पर बात करते हुए आगे बढ़ती है। मोदी सरकार ने किस तरह स्वच्छ भारत के नाम पर महात्मा गांधी को ‘कचरा’ पेटी पर बिठा सफाई अभियान तक सीमित करने का अभियान चलाया। किस तरह बार-बार गांधी के योगदान को कमतर करने और सार्वजनिक रूप से उनका अपमान कर भारतीय जनमानस में बसी उनकी छवि को खंडित करने का प्रयास किया। किताब इस ओर भी पाठकों का ध्यान आकर्षित करती है। किताब में सांप्रदायिकता पर एक बड़ा खंड है, जो बताता है कि किस तरह नफरत को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। मोदी के मंत्री द्वारा मॉब लिंचिंग के आरोपियों का स्वागत करने से लेकर सेंगोल के नाम पर झूठ और मोदी की टिप्पणियों का सिलसिलेवार जिक्र है, मणिपुर हिंसा के पीडि़तों के दुख दर्द को साझा करने पहुंचे राहुल गांधी के संवाद और विचार को सामने रखते हुए किताब नफरत के बाजार में, मोहब्बत की दुकान के दर्शन से पाठकों को रूबरू कराती है। संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जे को समझाते हुए किताब इलेक्टोरल बॉन्ड, नोटबंदी, पेगासस, पीएम केयर्स और चुनाव आयोग के आत्मसमर्पण पर विस्तार से बात करती है। न्यायपालिका के खंड में सुप्रीम कोर्ट के जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस, प्रधानमंत्री का सीजेआई के दफ़्तर में जाना, जकिया जाफरी की याचिका का खारिज होना, मोदी उपनाम मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा और बाद में सुप्रीम कोर्ट का गुजरात की निचली अदालतों को फटकार लगाने का विस्तार से जिक्र है।
मीडिया को सरकार ने खरीदा
मीडिया के खंड में आप पढ़ेंगे, कैसे सरकार ने मीडिया को अप्रत्यक्ष तरीके से खऱीदते हुए, लोकतंत्र की आवाज़ को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किताब राहुल गांधी के खिलाफ़ दुष्प्रचार, उनके सभी झूठे वायरल वीडियो की असलियत को सरल भाषा में पाठकों के सामने लाती है। भारत जोड़ो यात्रा के हिस्से में आप पढ़ेंगे कि आरएसएस वाले जय सियाराम क्यों नहीं बोलते, राहुल गांधी ने टीवी, अख़बार को इंटरव्यू क्यों नहीं दिया और भारत जोड़ो यात्रा की ज़रूरत क्यों पड़ी। कैसे आरएसएस के हिंदू राष्ट्र के दिवास्वप्न के बीच राहुल गांधी चुनौती बनकर खड़े हैं।
राहुल गांधी के खिलाफ दुष्प्रचार का सच, लोकतंत्र का नायक और भारत जोड़ो यात्रा, यह तीन खंड किताब की पूंजी हैं, जो राहुल गांधी की जननायक की छवि को तथ्यों की बुनियाद पर स्थापित करते हैं। 2011 से 2023 के समयचक्र में ऐतिहासिक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ तक किताब उन राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्यों की पड़ताल करती है, जिनका केंद्रीय विषय राहुल गांधी हैं। किताब राहुल गांधी के विचारों, उनके मूल्यों और आइडिया ऑफ इंडिया के व्यापक फलक को पाठकों के सामने रखती है। साथ ही उस एजेंडे का भी पर्दाफाश करती है, जो हिंदुत्व की राजनीति ने कॉरपोरेट मीडिया के साथ मिलकर साजिशन खड़ा किया गया है। किताब अपने इस प्रयास में पूरी तरह सफल है और राहुल गांधी के विचारों और मूल्यों के प्रति पाठकों को समृद्ध करती है।
मोदी सरकार के दबाव में नहीं आए लेखक
अघोषित तानाशाही के इस दौर में जब हिंदी पत्रकारिता सत्ता के आगे दंडवत है। मेनस्ट्रीम मीडिया में दो दशक से ज्यादा के अनुभव के साथ आलोचनात्मक नजरिया रखने वाले दयाशंकर मिश्र की यह किताब एक महत्वपूर्ण राजनीतिक हस्तक्षेप है। यह न्यूज़रूम का प्रायश्चित भी है, जिसका गवाह लेखक ख़ुद है। किताब के प्रकाशित होने से पहले ही लेखक को इस्तीफ़ा देना पड़ा, क्योंकि मोदी सरकार और गोदी मीडिया नहीं चाहता था कि राहुल गांधी पर यह किताब प्रकाशित हो और बड़े-बड़े स्थापित प्रकाशन समूह पीछे हट गए, इस किताब के लिए लेखक ने नेटवर्क 18 के एग्जीक्यूटिव एडिटर पद से इस्तीफ़ा दिया। यह किताब आन लाइन उपलब्ध है।