हाजीपुर से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे चिराग, भाजपा से मिली हरी झंडी, चाचा पारस को छोडऩी पड़ेगी सीट!

नई दिल्ली। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में एंट्री मिलने के साथ ही एलजेपी (पासवान) के चीफ चिराग पासवान 2024 में लोकसभा चुनाव जमूई से नहीं बल्कि हाजीपुर सीट से लड़ेंगे। बीजेपी से चिराग को हरी झंडी मिल चुकी है। सूत्रों के मुताबिक चिराग हाजीपुर संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतरने को लेकर मजबूती से तैयारी कर रहे हैं। इसके चलते केंद्रीय मंत्री पशुपतिनाथ पारस के लिए कोई और लोकसभा सीट तलाशना ही एकमात्र विकल्प रह गया है। चाचा-भतीजे के बीच सियासी वर्चस्व की जंग में पहले राउंड में चाचा भले ही पार्टी के सांसदों को मिलकर केंद्र में मंत्री बन थे, लेकिन अब भतीजा भारी पड़ता नजर आ रहा है।
दरअसल बीजेपी चिराग को बिहार में बेहद महत्वपूर्ण सहयोगी मान रही है। बीजेपी अपने इंटरनल सर्वे के जरिए भी जान चुकी है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी के समर्थकों की असली पसंद चिराग पासवान ही हैं और सियासी वारिस भी वही हैं, इसलिए 6 फीसदी पासवान समाज को जोड़े रखने के लिए चिराग का साथ रखना एनडीए की मजबूती के लिए अहम है, जिसके चलते हाजीपुर सीट का भी करार हो गया है।
हाजीपुर लोकसभा सीट चिराग के पिता और दिवंगत नेता रामविलास पासवान का चुनावी क्षेत्र रहा है। यहां से रामविलास पासवान कई बार रिकॉर्ड मार्जिन से जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। इसीलिए पिता के निधन के बाद चिराग पासवान पिता की सियासी विरासत को मजबूती से अपनी पकड़ बनाए रखने की चाहत रखते हैं। चिराग हाजीपुर से चुनावी मैदान में उतरकर ये मैसेज साफ तौर पर देना चाहते हैं कि वो ही दिवंगत नेता रामविलास पासवान के असली राजनीतिक वारिस हैं। इतना ही नहीं चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत की राजनीति पर सिर्फ और सिर्फ खुद की पकड़ मजबूत करना चाह रहे हैं।
चाचा पशुपतिनाथ पारस की हाजीपुर से छुट्टी कर चिराग हाजीपुर लोकसभा सीट पर एलजेपी (रामविलास) का वर्चस्व कायम भी करना चाहते हैं। चिराग ऐसा करके पशुपतिनाथ पारस और उनके सहयोगियों को रामविलास पासवान के नाम पर सियासी लाभ लेने से वंचित करना चाहते हैं जो एलजेपी में टूट का कारक बने थे। यही वजह है कि चिराग शुरू से ही हाजीपुर सीट को लेकर अपनी दावेदारी दिखा रहे थे।
चिराग पासवान अपने पुराने लोकसभा क्षेत्र जमूई लोकसभा से एलजेपी(रामविलास) की पार्टी से ही कोई अन्य उम्मीदवार को मैदान में उतारेंगे। कहा जा रहा है कि ये उम्मीदवार भी उनके परिवार का ही होगा जो पार्टी में टूट के बाद मुश्किल वक्त में चिराग के साथ खड़ा रहा है। इस तरह चिराग अपने पिता की सीट पर खुद लड़ेंगे और जिस जमुई सीट से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी, उस सीट पर अपने करीबी को लड़ाकर सियासी संदेश देने की रणनीति बनाई है।
केन्द्र में मंत्री पशपतिनाथ पारस भी हाजीपुर से ही चुनाव लडऩे का दावा कर रहे हैं। चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस इस बात को लेकर मीडिया में कई बार बयान भी दे चुके हैं। कल यानि रविवार को भी चिराग ने हाजीपुर के मुद्दे पर मंत्री पारस को गठबंधन के भीतर बोलने की नसीहत दे डाली थी। ऐसे में पशुपति पारस को खुद के चुनाव लडऩे के लिए किसी अन्य सीट पर विकल्प करना होगा?
दरअसल बीजेपी के कई नेता दबी जुबान में इस बात की तस्दीक करते हैं कि एलजेपी का वोट बैंक पूरी तरह से चिराग पासवान के साथ है, इसलिए 6 फीसदी वोट पर निगाह लगा रखी हुई है। बीजेपी राजनीतिक हैसियत के तौर पर चिराग पासवान को ही दिवंगत नेता रामविलास पासवान का असली वारिस मानती है। जाहिर तौर पर चिराग पासवान की राजनीतिक हैसियत गठबंधन में इसी वजह से परिवार के अन्य सदस्यों से कहीं उपर है।
चिराग पासवान एलजेपी में टूट के बाद लगातार बिहार का दौरा करते रहे हैं। पिता की विरासत पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए चिराग साल 2020 के विधानसभा चुनाव से ही बिहार में नीतीश सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। चिराग की पार्टी के पांच सांसदों ने चिराग का साथ चाचा पशुपति नाथ पारस के नेतृत्व में छोड़ दिया था। चाचा पशुपतिनाथ पारस के साथ एलजेपी में टूट के बाद चिराग का रिश्ता बेहद खराब हो चुका है। इसीलिए हाजीपुर से चुनाव लडक़र एक तीर से कई शिकार करने की रणनीति बनाई है। एक तरफ चिराग चाचा पारस की छुट्टी कर पिता की विरासत को संभालना चाहते हैं तो दूसरी तरफ चाचा पारस की विदाई कर उनके किए की सजा भी मुकर्रर करना चाहते हैं।
चिराग पासवान की जमुई सीट छोडऩे के पीछे भी सियासी वजह छिपी है। साल 2020 में जेडीयू के विरोध में उतरे चिराग पासवान के लिए नीतीश कुमार ने जमूई में विधायक सुमित सिंह को मंत्री बनाकर उनकी राह में पहले से मुश्किलें पैदा कर दी थी। ये भी सर्वविदित है कि चिराग पासवान और सुमित सिंह के बीच अदावत साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दरमियान क्षेत्र में वर्चस्व को लेकर हुई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू,एलजेपी और बीजेपी एक साथ गठबंधन में थी, लेकिन साल 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही एलजेपी(रामविलास) और जेडीयू में छत्तीस का आंकड़ा हो गए थे। जेडीयू के विरोध में चिराग द्वारा प्रत्याशी हर सीट पर उतारे जाने से जेडीयू साल 2020 के विधानसभा चुनाव में 43 सीटों पर सिमट थी। जेडीयू पर भी चिराग से राजनीतिक बदला चिराग की पार्टी एलजेपी को तोडक़र लिए जाने का आरोप लगा था। एलजेपी के पांच लोकसभा सांसदों ने चिराग का साथ छोडक़र पशुपतिनाथ पारस के नेतृत्व में अलग हो गए थे। इसके बाद चिराग के लोकसभा क्षेत्र जमूई में जेडीयू ने सुमित सिंह को मंत्री बनाकर चिराग पासवान के कद को छोटा करने की चाल चली थी। सुमित सिंह इलाके के निर्दलिय विधायक हैं और कद्दावर नेता नरेन्द्र सिंह के सुपुत्र हैं। जाहिर तौर पर जमूई में चिराग को घेरने की तैयारी जेडीयू ने साल 2020 से ही कर रही है। इसलिए कहा जाता है कि चिराग पासवान के लिए जमूई से लडऩा इस बार आसान नहीं है, क्योंकि जबरदस्त तरीके से घेराबंदी विपक्ष ने किया है। ऐसे में चिराग जमुई के बजाय हाजीपुर सीट से ताल ठोकने का ऐलान कर दिया है और बीजेपी से भी उन्हें हरी झंड्डी मिल चुकी है। ऐसे में देखना है कि पशुपतिनाथ पारस क्या करते हैं?

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