नागरिक संहिता : देश और परिवार अलग-अलग, इसे थोपा नहीं जा सकता: पी. चिदंबरम
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत किए जाने के बाद अब इस मुद्दे पर राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। इस मसले पर कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम की प्रतिक्रिया सामने आई है। चिदंबरम ने कहा कि समान नागरिक संहिता को उचित ठहराने के लिए एक परिवार की तुलना एक देश से करना ठीक नहीं है। सामान्यतौर पर दोनों की तुलना सही लग सकती है, लेकिन वास्तविकता बहुत अलग है।
कांग्रेस नेता ने ट्वीट करते हुए कहा, एक परिवार में खून के रिश्ते होते हैं जिससे सभी एक सूत्र में बंधे होते हैं जबकि एक राष्ट्र को संविधान के जरिए एक साथ लाया जाता है जो कि एक राजनीतिक-कानूनी दस्तावेज है। एक परिवार में भी विविधता होती, देश के संविधान ने भारत के लोगों के बीच विविधता को मान्यता दी है। जहां तक बात समान नागरिक संहिता की है तो यह एक आकांक्षा है। इसे एजेंडा चलाने वाली सरकार द्वारा लोगों पर थोपा नहीं जा सकता है।
चिदंबरम ने कहा, पीएम मोदी इस तरह से इसे पेश कर रहे हैं जैसे यूसीसी एक सरल अभ्यास है, लेकिन उन्हें लॉ कमीशन की रिपोर्ट पढऩी चाहिए जिसमें बताया गया है कि इस समय यह संभव नहीं है। बीजेपी की कथनी और करनी की वजह से देश आज बंटा हुआ है। उन्होंने कहा, लोगों पर यूसीसी को थोपा गया तो यह केवल विभाजन को बढ़ाएगा। यूसीसी का वकालत करने के पीछे पीएम का मूल उद्देश्य महंगाई, बेरोजगारी, घृणा अपराध, भेदभाव जैसे मुद्दे से ध्यान भटकाना है। सुशासन में फेल होने के बाद बीजेपी आगामी चुनाव को जीतने के लिए समान नागरिक संहिता का मुद्दा लेकर आई है। दरअसल, मंगलवार को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बीजेपी बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने समान नागरिक संहिता की वकालत की। पीएम ने लोगों से पूछा, क्या एक परिवार में दो नियम चलते हैं क्या? कुछ लोग वोट बैंक की राजनीति के लिए इसका विरोध कर रहे हैं। तीन तलाक का भी विरोध किया था। ये लोग अपने वोट बैंक के लिए मुस्लिम भाई-बहनों को भडक़ाने का काम कर रहे हैं।